
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
दिल्ली में ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए सड़कों से अतिक्रमण हटाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान दिल्ली के थानों में बेकार पड़े वाहनों और मालखानों में जब्त ड्रग्स पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जितनी ड्रग्स की तस्करी खुले बाजार में होती है, उससे कहीं ज्यादा तो पुलिस मालखानों में होती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सैकड़ों करोड़ की हेरोईन मालखानों में रहती है और चार-पांच साल बाद जब केस कोर्ट में केस आता है तो बताया जाता है कि उसे चूहे खा गये.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि थानों में जब्त खड़े वाहनों में से 60 फीसदी तो चोरी के होते हैं. ऐसे में पुलिस को जब्त वाहनों को लेकर कोई नई पॉलिसी बनानी चाहिए. ऐसा हो सकता है कि दो- तीन महीने तक कोई मालिक वाहन लेने ना आए तो उसे बेच दिया जाए. अगर अगले दो- तीन साल के बीच कोई दावा करता है तो वो रुपये उसे दे दिए जाएं. इस पॉलिसी से मालखानों में जगह भी बचेगी और भ्रष्टाचार भी कम होगा. इस पर कोर्ट की ओर से सरकार की ओर से कहा गया कि वर्षों बाद जब मुकदमा निपटता है तो वाहन की दशा ऐसी हो जाती है मालिक उसे ले जाने को तैयार नहीं होता. कोर्ट ने कहा कि अभी दिल्ली की जिला अदालतों में एक ही नाज़िर यानी कोर्ट के मालखाने का इंचार्ज है. लिहाज़ा उस पर काम का बोझ ज़्यादा होता है.
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कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि और नाज़िर की नियुक्ति की जाय. अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को होगी. इस दिन दिल्ली के तीनों नगर निगम, पीडब्लयूडी, डीडीए, पुलिस और डीटीसी के नुमाइंदों की उपस्थिति अनिवार्य की. पिछली सुनवाई में दिल्ली पुलिस, PWD और एजेंसियों को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई थी. कोर्ट ने कहा दिल्ली के हालात सुधारने के लिए कुछ नहीं हो रहा.
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कोर्ट को टाइमलाइन चाहिए कि कब तक अतिक्रमण हटाया जाएगा और यातायात सुचारू होगा. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर से कहा कि पुलिस थानों के अंदर व बाहर गाडियां व दूसरा सामान पडा है, उनके लिए क्या पॉलिसी है? अगर नहीं है तो बनाई जाए और चार हफ्ते में बताएं कि क्या किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने एजेंसियों से कहा है कि वो चार हफ्ते में बताएं कि दिल्ली में यातायात सुचारू करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि थानों में जब्त खड़े वाहनों में से 60 फीसदी तो चोरी के होते हैं. ऐसे में पुलिस को जब्त वाहनों को लेकर कोई नई पॉलिसी बनानी चाहिए. ऐसा हो सकता है कि दो- तीन महीने तक कोई मालिक वाहन लेने ना आए तो उसे बेच दिया जाए. अगर अगले दो- तीन साल के बीच कोई दावा करता है तो वो रुपये उसे दे दिए जाएं. इस पॉलिसी से मालखानों में जगह भी बचेगी और भ्रष्टाचार भी कम होगा. इस पर कोर्ट की ओर से सरकार की ओर से कहा गया कि वर्षों बाद जब मुकदमा निपटता है तो वाहन की दशा ऐसी हो जाती है मालिक उसे ले जाने को तैयार नहीं होता. कोर्ट ने कहा कि अभी दिल्ली की जिला अदालतों में एक ही नाज़िर यानी कोर्ट के मालखाने का इंचार्ज है. लिहाज़ा उस पर काम का बोझ ज़्यादा होता है.
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