कोरोना पॉजिटिव मरीजों के घर के बाहर पोस्टर लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केन्द्र सरकार ने कसा कि हमारी सरकार का ऐसी कोई गाइडलाइन नहीं है, कुछ राज्यों ने किया, वो इसलिए कि कोई अनजान व्यक्ति घर म़े एंट्री ना कर पाए. याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली ,पंजाब ओडीशा ने ऐसा करने से रोक लगा दी है. कोर्ट ने सालिसिटर जनरल से पूछा कि क्या केन्द्र सरकार राज्यों को ऐसा न करने के लिए एडवाइजरी जारी कर सकती है. केंद्र ने बताया कि उसने राज्यों को पत्र लिखा है. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित किया.
बता दें कि पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने कहा था कि जमीनी स्तर पर हकीकत यह है कि एक बार कोविड रोगी के घर के बाहर नोटिस लगाने के बाद, उसे दूसरों द्वारा अछूत माना जाता है. इससे पहले दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया था कि उसने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे किसी भी घर के बाहर COVID-19 आइसोलेशन के पोस्टर ना लगाएं. सरकार ने कहा था कि सभी ऐसे मरीजों के निवास के बाहर जो पोस्टर पहले से लगाए गए हैं, उन्हें तत्काल हटाने के लिए कहा गया है
वहीं दिल्ली सरकार ने ये भी कहा कि अधिकारियों को कोई निर्देश नहीं है कि वे RWA या किसी अन्य व्यक्ति के साथ COVID-19 पॉजिटिव मरीजों के नाम साझा करें. इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने COVID-19 पॉजिटिव व्यक्तियों के घरों के बाहर पोस्टर चिपकाने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए जनहित याचिका का निपटारा कर दिया.
इससे पहले हाईकोर्ट ने कुश कालरा द्वारा दायर याचिका पर दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था. याचिका में कहा गया था क दिल्ली सरकार को अपने अधिकारियों, कर्मचारियों, एजेंटों, प्रतिनिधियों को निर्देश जारी किए जाएं ताकि COVID-19 व्यक्तियों के नामों को किसी भी व्यक्ति विशेषकर आरडब्ल्यूए, व्हाट्सएप समूहों, आदि से प्रसारित ना किया जा सके. जनहित याचिका में कहा गया है कि व्यक्तियों के घरों के बाहर पोस्टर चिपकाना, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित निजता के मौलिक अधिकार का एक गंभीर उल्लंघन है.
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