तलाक, गोद लेने, संरक्षकता, रखरखाव और गुजारा भत्ता, उत्तराधिकार तथा विरासत के समान नियमों की मांग करने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है. सुप्रीम कोर्ट पहले यह तय करेगा कि बीजेपी नेता व वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर यह याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज हम इस मामले की सुनवाई नहीं कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ डीवाई जस्टिस चंद्रचूड़ ने अश्विनी उपाध्याय से कहा, यह विधायिका का मामला है, अदालत कैसे हस्तक्षेप कर सकती है. आखिरकार यह संसद का मामला है. यह संसदीय संप्रभुता के क्षेत्र में है. क्या यह अदालत संसद को कानून बनाने के लिए कह सकती है?
उन्होंने कहा कि, आप पहले भी इसी तरह की याचिकाएं दाखिल कर चुके हैं. पहले हम यह तय करेंगे कि ये याचिकाएं सुनवाई योग्य हैं या नहीं?
गोपाल शंकर नारायण ने याचिकाकर्ता की वकालत करते हुए कहा कि इस्लाम में तलाक के पांच तरीके हैं. अधिकतर में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है. CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हालांकि इस बारे में नीतिगत निर्णय लेना विधायिका का काम है.
मुस्लिम पक्ष की ओर से सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी ने कहा कि यह पर्सनल लॉ से जुड़ा मामला है. जो आधार याचिका में बताए गए हैं, उनका कोई औचित्य नहीं है.
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि वे तलाक के चार तरीकों को लेकर एक शीट के जरिए अदालत को बताना चाहते हैं. सितंबर में अदालत ने केंद्र को नोटिस जारी कर विस्तृत जवाब मांगा था. चीफ जस्टिस ने कहा कि आखिरकार फैसला संसद को ही करना है.
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