सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने संयुक्त सचिव स्तर और उससे ऊपर के सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तारी से छूट के मामला को लेकर अहम फैसला सुनाया है.जिसके अनुसार,2014 से पहले के मामलों में भी अफसरों को संरक्षण नहीं मिलेगा . सुप्रीम कोर्ट का 2014 का फैसला पहले से लंबित मामलों पर भी लागू होगा. DPSE एक्ट की धारा 6 A को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है. 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने संयुक्त सचिव स्तर और उससे ऊपर के सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तारी से छूट के प्रावधान को रद्द कर दिया था. लेकिन बेंच ने ये भी बताया था कि ये आदेश 2014 के पहले के लंबित केसों पर भी लागू होगा या नहीं.
2016 में, डॉ किशोर के मामले में बेंच ने मामले को 5-न्यायाधीशों की बेंच को यह तय करने के लिए भेजा था कि क्या संयुक्त सचिव स्तर पर केंद्र सरकार के कर्मचारियों को संरक्षण हटाना पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा.
करीब 16 साल पहले 2007 में आया ये मामला
दिल्ली स्पेशल पुलिस स्टेब्लिशमेंट एक्ट की धारा 6A (1) की सही समुचित व्याख्या क्या है. क्या इस बारे में संविधान के अनुच्छेद 20 के संदर्भ में दिया गया कोर्ट का कोई पुराना फैसला किसी पुराने ऑपरेशन पर असर डाल सकता है? ये मामला जनवरी करीब 16 साल पहले 2007 को सुप्रीम कोर्ट में आया .जस्टिस संजय किशन कौल की अगुआई वाली इस संविधान पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल हैं. संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर दो नवंबर 2022 यानी 10 महीने पहले फैसला सुरक्षित रखा था.
क्या है दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम?
दरअसल, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6ए में कहा गया है कि जब भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत कोई अपराध किया जाता है , तो दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना केंद्र सरकार की पूर्व मंज़ूरी के बिना मामले की जांच या जांच नहीं कर सकती है. खासकर यदि अपराध केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव स्तर के अफसर द्वारा किया जाता है.धारा 6ए(2) में कहा गया है कि यदि रिश्वत लेते समय या प्रयास करते समय मौके पर ही गिरफ्तारी हो जाती है तो पूर्व मंज़ूरी की जरूरत नहीं है .
दिल्ली सरकार के अधिकारी पर घूस मांगने का आरोप
इस मामले में दिल्ली सरकार के मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ आरआर किशोर पर घूस मांगने का आरोप लगाया गया था. जब वह कथित तौर पर घूस ले रहे थे तो सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. डॉ किशोर ने गिरफ्तारी को इस आधार पर चुनौती दी कि गिरफ्तारी के लिए पहले नियोजित योजना बनाई गई थी, जिससे धारा 6ए(2) के तहत छूट का लाभ नहीं मिला .
सीबीआई ने गिरफ्तारी से पहले शुरू की जांच
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि सीबीआई ने गिरफ्तारी से पहले जांच शुरू कर दी थी और इसलिए यह धारा 6ए(2) अपवाद के अंतर्गत नहीं आता है. हालांकि, गिरफ्तारी की अवैधता का मतलब यह नहीं होगा कि डॉ किशोर को बरी कर दिया जाएगा. सीबीआई को केंद्र सरकार की मंज़ूरी लेने और फिर से जांच शुरू करने का निर्देश दिया गया. 3 जनवरी 2007 को, सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका दायर की. वहीं 2014 में सुप्रीम कोर्ट की 3-न्यायाधीशों की पीठ ने अधिनियम की धारा 6ए(1) को असंवैधानिक ठहराया.
हालांकि, यह स्पष्ट नहीं किया गया कि क्या निर्णय न्यायालय के समक्ष लंबित धारा 61ए के तहत मामलों पर लागू होगा या क्या यह केवल आगे बढ़ने वाले मामलों पर लागू होगा. इसके अलावा, संविधान पीठ को यह तय करना है कि अनुच्छेद 20, जिसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है जो 'कार्य के समय लागू कानून' का उल्लंघन करता है, मामले में कैसे लागू होगा.
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