
- SC ने डिजिटल अरेस्ट और साइबर फ्रॉड मामलों पर स्वतः संज्ञान लेकर केंद्र और हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया है
- अदालत ने कहा कि न्यायपालिका के नाम का दुरुपयोग करने वाले डिजिटल ठगी के मामले सामान्य साइबर अपराध नहीं हैं
- मामला एक वरिष्ठ नागरिक दंपति की शिकायत से जुड़ा है, जिन्हें डिजिटल अरेस्ट स्कैम से करोड़ों का नुकसान हुआ है
सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाते हुए ‘डिजिटल अरेस्ट' और साइबर फ्रॉड पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले में दखल दिया है. इसे लेकर केंद्र और हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया गया है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि ये मामला “न्यायपालिका के नाम और मुहर का दुरुपयोग” से जुड़ा है और इसे साधारण साइबर अपराध की तरह नहीं देखा जा सकता. ऐसे गंभीर अपराधों को सामान्य या नियमित अपराध नहीं माना जा सकता. अदालत ने कहा कि यह सिर्फ एक मामला नहीं है. ऐसे ‘डिजिटल अरेस्ट' ठगी के कई मामले देशभर से मीडिया में सामने आ चुके हैं, जिनमें खासकर वरिष्ठ नागरिकों को निशाना बनाया गया है.अदालतों के नाम, आदेश और हस्ताक्षर की जालसाजी न्यायपालिका में जनता के विश्वास की नींव को हिला देते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में तेजी से बढ़ रहे ‘डिजिटल अरेस्ट' फ्रॉड और साइबर ठगी के मामलों पर बड़ा कदम उठाते हुए स्वतः संज्ञान मामले में अदालत ने केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार, सीबीआई और अंबाला साइबर क्राइम विभाग को नोटिस जारी किया है. पीठ ने बताया कि यह मामला एक वरिष्ठ नागरिक दंपति की शिकायत से जुड़ा है, जिन्होंने आरोप लगाया कि 1 से 16 सितंबर के बीच उन्हें ‘डिजिटल अरेस्ट स्कैम' के जरिए उनके जीवनभर की जमा-पूंजी ₹1.5 करोड़ को ठग लिया गया. शिकायत के मुताबिक, कुछ लोगों ने सीबीआई, आईबी और न्यायिक अधिकारियों के नाम पर वीडियो कॉल और फोन कॉल के जरिए संपर्क किया. उन्होंने व्हाट्सएप और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर सुप्रीम कोर्ट के फर्जी आदेश दिखाकर उन्हें डराया और गिरफ्तारी की धमकी देकर पैसों का ट्रांसफर करवाया. जांच में सामने आया कि फर्जी आदेश, सील और जजों के हस्ताक्षर का इस्तेमाल किया गया था. यहां तक कि एक फर्जी फ्रीज़ ऑर्डर (1 सितंबर दिनांकित) तैयार किया गया था, जिस पर PMLA के तहत कार्रवाई का दावा किया गया और उस पर ईडी अधिकारी व जज के हस्ताक्षर भी जाली रूप में लगाए गए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वतः संज्ञान तब लिया जब यह पता चला कि अंबाला की एक महिला को ₹1.5 करोड़ का नुकसान हुआ है, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के फर्जी आदेश दिखाकर धमकाया गया था. शीर्ष सूत्रों के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत ने जब इस गंभीर मामले की जानकारी ली तो उन्होंने इसे मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के संज्ञान में लाकर स्वतः संज्ञान मामला दर्ज करने की अनुशंसा की.
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