
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, समलैंगिक पुरुषों और यौनकर्मियों आदि द्वारा रक्तदान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि क्या हम सभी ट्रांसजेंडर को जोखिम भरा कहने जा रहे हैं? जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि इस मुद्दे पर विशेषज्ञ ही उचित सलाह दे सकते हैं.
जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह ने चिंता व्यक्त करते हुए पूछा कि क्या यह दृष्टिकोण अप्रत्यक्ष रूप से इन समुदायों को कलंकित नहीं करता है? जब तक आप कुछ चिकित्सा साक्ष्य के साथ यह नहीं दिखाते कि ट्रांसजेंडर और इन बीमारियों के बीच किसी तरह का संबंध है तब तक आप यह नहीं कह सकते कि सभी ट्रांसजेंडर इस तरह की गतिविधियों में शामिल हैं. यहां तक कि कई बार सामान्य व्यक्ति भी इसमें शामिल होते हैं. जस्टिस सूर्यकांत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यह ऐसा विषय है, जिस पर केवल विशेषज्ञ ही समुचित टिप्पणी या सलाह दे सकते हैं.
जस्टिस सूर्यकांत ने एएसजी ऐश्वर्या भाटी से कहा कि इस विषय पर कृपया विशेषज्ञों से बात करें ताकि एक समुदाय के रूप में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कलंकित न किया जाए. साथ ही सभी चिकित्सा सावधानियां भी बहाल रह सकें. केंद्र की ओर से पेश एएसजी भाटी ने शीर्ष अदालत को बताया कि इसे व्यक्तिगत नागरिक अधिकारों के नजरिए से नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के नजरिए से देखा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि यह डॉक्टरों द्वारा जोखिम व्यवहार्यता के आधार पर लिया गया निर्णय है. उसमें राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद नेशनल काउंसिल ऑफ Blood transfusion के विशेषज्ञ डॉक्टर भी शामिल हैं. कोई यह नहीं कह सकता कि मुझे रक्तदान करने का अधिकार है. ऐसा कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि रक्त बैंकों को दान किया गया रक्त सभी को उपलब्ध कराया जाता है. याचिकाकर्ताओं ने यूरोपीय देशों का उदाहरण दिया जहां ये समूह उच्च जोखिम वाले समूहों के रूप में मौजूद नहीं हैं.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि मान लीजिए रक्त की जरूरत वाले व्यक्ति को जोखिम के बारे में सूचित किया जाए उसके बाद भी वे रक्त चाहें तो. एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि एक व्यक्ति से सीधे दूसरे व्यक्ति को खून देने लेने के स्तर पर कोई कठिनाई नहीं है. वो तो वृहत परिवार के सदस्य हैं, लेकिन जो रक्त बैंक में जाएगा और वहां से किसी को मिलेगा समस्या उस अनजान खून से है.
कोर्ट ने केंद्र सरकार से कुछ ऐसा सोचने का आग्रह किया ताकि चिकित्सा सुरक्षा से समझौता किए बिना भेदभाव के तत्व को समाप्त किया जा सके. एएसजी ने कहा कि हमें भारतीय वास्तविकता को देखना होगा. किस तरह की जांच प्रणाली उपलब्ध है. दिशा-निर्देश व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करने के इरादे से नहीं हैं.वे केवल सुरक्षित रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए हैं.
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