अपने अंतिम कार्य दिवस पर सुप्रीम कोर्ट की तीन महिला जजों में से एक जस्टिस आर बानुमति ने कहा कि पुराने समय में वे भी न्यायिक देरी की शिकार हुई थीं. उन्होंने कहा कि अब सरकार और न्यायपालिका ने न्यायिक देरी को कम करने के लिए कदम उठाए हैं. जस्टिस बानुमति की बड़ी उपलब्धि है ये है कि वे जिला जज से लेकर शीर्ष अदालत की जज तक पहुंची जो कि एक दुर्लभ उपलब्धि है.
न्यायमूर्ति बानुमति 19 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होंगी और आज उनका अंतिम कार्य दिवस था. एक रिवाज के रूप में वे शुक्रवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ मामलों की सुनवाई के लिए बैठीं.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा वेबिनार के माध्यम से आयोजित विदाई में. जस्टिस बानुमति ने अपने पुराने दिनों को याद किया. उन्होंने बताया कि उनके पिता की एक बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी और उनका परिवार मुआवजा पाने के लिए न्यायिक देरी का शिकार हुआ था.
जस्टिस बानुमति ने तीन दशक से अधिक समय तक न्यायाधीश के रूप में काम किया. सन 1988 में तमिलनाडु में जिला न्यायाधीश के रूप में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की. उन्हें अप्रैल 2003 में मद्रास उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में और फिर 2013 में झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया. अगस्त 2014 में उन्हें उच्चतम न्यायालय में नियुक्त किया गया. जस्टिस बानुमति का सुप्रीम कोर्ट में सबसे बड़ा फैसला निर्भया के हत्यारों को फांसी देने के आदेश का रहा. उन्होंने पी चिदंबरम मामले में सुनवाई कर उन्हें जमानत भी दी.
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि शीर्ष अदालत एक अच्छे न्यायाधीश को खो देगी और वो मध्यस्थता के माध्यम से कानूनी काम जारी रखें. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि जस्टिस बानुमति एक रूढ़िवादी और निडर न्यायाधीश हैं, जिन्होंने कई असहमतिपूर्ण राय और निर्णय लिखे हैं.
जस्टिस बानुमति ने विदाई समारोह में सुप्रीम कोर्ट का कवरेज करने वाले मीडिया कर्मियों की भी तारीफ की. उन्होंने कहा कि प्रेस सुप्रीम कोर्ट की कवरेज में हमेशा समय पर और सटीक रहता है.
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