सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को नए वक्फ कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई हुई. केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश पारित करने के लिए सुनवाई को तीन चिह्नित मुद्दों तक सीमित रखा जाए. इन मुद्दों में 'अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड' घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने का अधिकार भी शामिल है. वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी ने इन दलीलों का विरोध किया कि अलग-अलग हिस्सों में सुनवाई नहीं हो सकती. इस दौरान कोर्ट में बेहद रोचक बहस देखने को मिले. सिब्बल की दलील पर सीजेआई ने भी सवाल पूछे.
CJI- बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल पर बहुमत कैसे हुआ?
कपिल सिब्बल- संसद के सदस्यों और न्यायाधीशों को भी मुस्लिम होना चाहिए. अब, मुसलमानों का कोई संदर्भ नहीं है. कुल 7 मुस्लिम और 12 गैर-मुस्लिम हैं. प्रशासन को अपने हाथ में ले लिया गया है.
CJI- आप कैसे कहते हैं कि बहुमत होगा?
कपिल सिब्बल- वह पदेन है.

CJI- इसमें कहां लिखा है कि केंद्रीय मंत्री गैर-मुस्लिम होगा, कैबिनेट एक जैसी नहीं रहती.
सिब्बल- यह सभी बंदोबस्तों के लिए एक जैसी नहीं रहती.
CJI- मान लें कि दो सदस्य गैर-मुस्लिम हैं, इसलिए पदेन को छोड़कर, ये केवल 2 गैर-मुस्लिम होंगे.
सिब्बल- अगर हम यह मान लें, तो यह अभी भी पिछले कथन से अलग है जिसमें कहा गया है कि यह मुस्लिम होना चाहिए. किसी अन्य धर्म में ऐसा नहीं है. कोई भी गैर-हिंदू हिंदू बंदोबस्ती का सदस्य नहीं है, न ही यह सिख बंदोबस्ती के लिए मामला है.
CJI- बोधगया के बारे में क्या? सभी हिंदू हैं.
सिब्बल- ऐसा इसलिए है क्योंकि पूजा स्थल हिंदुओं और बौद्धों दोनों के लिए हैं. बोधगया अधिनियम में यह कहा गया है. मुझे पता था कि आप यह पूछेंगे. ये संशोधन धर्म का पालन करने, धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने, शैक्षिक धर्मार्थ संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन के अधिकार का उल्लंघन है.

कपिल सिब्बल ने कोर्ट को वक्फ काउंसिल के गठन के बारे में बताया कि पहले इसमें केवल मुसलमान सदस्य थे और अब इसमें बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम हैं. ये सभी आपस में जुड़े हुए प्रावधान हैं, संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए, कानून की प्रक्रिया के बिना, लेकिन कानून के माध्यम से. उन्होंने कहा कि हम यह मानकर चल रहे हैं कि बोर्ड में ऐसे गैर मुस्लिम भी हो सकते हैं जिनकी नियुक्ति पर रोक नहीं है. अधिकतम हम एक बार में 8 की गारंटी दे सकते हैं.
CJI- पिछले कानून और इसमें एकमात्र अंतर यह है कि दो पदेन और दो अन्य हो सकते हैं.
सिब्बल- नहीं, सांसदों को यह कहने की जरूरत नहीं है कि वे मुसलमान होंगे. यदि न्यायालय जो कह रहा है वह सही है. इसमें 4 लोग गैर मुस्लिम हो सकते हैं तो यह पहले की व्यवस्था से अलग है. जहां सभी का मुस्लिम होना आवश्यक था.
CJI- आपका तर्क मुख्य रूप से यह था कि बोर्ड या परिषद में बहुसंख्यक गैर मुस्लिम होंगे.
सिब्बल- हो सकता है. ये तो अभी भी सच है.
CJI- अगर यह कहा जाए तो कम से कम आपकी दलील सही होगी. हम इसकी व्याख्या इस तरह कर सकते हैं कि पदेन के अलावा दो और भी गैर मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं.
सिब्बल- हमारी आपत्ति भी यही है कि किसी भी हिंदू धर्मस्थान की बंदोबस्ती में एक भी व्यक्ति गैर हिंदू नहीं है. यदि आप अन्य धार्मिक समुदाय को विशेषाधिकार दे रहे हैं तो यहां क्यों नहीं?

ट्रस्ट का अपना क्षेत्र है और वक्फ अलग- राजीव धवन
वहीं एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि बहुत से वक्फ ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर्ड हैं. इस पर SC ने पूछा कि आप कह रहे हैं कि कोई भी ट्रस्ट वक्फ नहीं होगा? राजीव धवन ने कहा कि ट्रस्ट का अपना क्षेत्र है और वक्फ अलग है. अगर कोई ट्रस्ट वक्फ की प्रकृति के समान है तो उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाएगा. यह पहली बार है कि धार्मिक अधिनियम के तहत धर्म को पुनः परिभाषित किया गया है. इतने बड़े पैमाने पर बदलाव की क्या जरूरत थी. हम एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं मेरे एक मुवक्किल सिख हैं. उनका कहना है कि मैं वक्फ में योगदान देना चाहता हूं और मेरा मानना है कि यह संपत्ति नहीं छीनी जानी चाहिए. सवाल धर्मनिरपेक्षता की जड़ तक भी जाता है.
हर धर्म में धर्माथ व्यवस्था होती है- अभिषेक मनु सिंघवी
धवन के बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलील रखी. उन्होंने कहा कि यह संशोधन हमेशा वक्फ रजिस्ट्रेशन के लिए दफ्तर के चक्कर लगाने के लिए मजबूर करने के लिए किया गया है. यह सिर्फ़ लोगों में डर पैदा करने के लिए है और इस तरह कोई भी युक्ति साबित नहीं हो सकती. हर धर्म में धर्माथ व्यवस्था होती है. कौन सा धर्म आपसे यह साबित करने के लिए कहता है कि आप पिछले 5 सालों से इसका पालन कर रहे हैं? इस तरह से धर्म का सबूत कौन मांगता है?

सिंघवी ने कहा कि यह कहा जा रहा है कि वक्फ रजिस्ट्रेशन में भारी उछाल आया है. जबकि सच्चाई ये है कि पोर्टल 2013 में खोला गया था. पोर्टल पर अपलोड की प्रक्रिया चल रही है इसको वक्फ प्रॉपर्टी में वृद्धि के रूप में बताया जा रहा हैं, जबकि यह एक अपडेटिंग प्रॉसेस है. उन्होंने जेपीसी रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि 28 में से 5 राज्यों का सर्वेक्षण किया गया. 9.3 प्रतिशत क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया और फिर कहते हैं कि कोई रजिस्टर्ड वक्फ नहीं था.
किन अहम मुद्दों पर चल रही दलीलें -
- पहला मुद्दा 'अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड' घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के अधिकार का है.
- दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमानों को ही इसमें काम करना चाहिए.
- तीसरा मुद्दा एक प्रावधान से संबंधित है, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.
सुनवाई करने वाली बेंच में कौन कौन?
- प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई
- न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह
वकील कौन-कौन?
- कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी- कानून की वैधता को चुनौती देने वालों की ओर से पक्ष रख रहे हैं.
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता- केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
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