चुनाव से पहले फ्री-बी का वादा बोलने की आज़ादी : सुप्रीम कोर्ट में बोली आम आदी पार्टी

आम आदमी पार्टी ने चुनावी भाषण और वादों को समीक्षा के दायरे से बाहर रखने की मांग की है और कहा कि चुनाव से पहले किए गए वादे, दावे और भाषण बोलने की आजादी के तहत आते हैं. उन पर रोक कैसे लगाई जा सकती है?

चुनाव से पहले फ्री-बी का वादा बोलने की आज़ादी : सुप्रीम कोर्ट में बोली आम आदी पार्टी

चुनावों से पहले फ्री बी यानी मुफ्त उपहार का वादा करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. आम आदमी पार्टी ने चुनावी भाषण और वादों को समीक्षा के दायरे से बाहर रखने की मांग की है और कहा कि चुनाव से पहले किए गए वादे, दावे और भाषण बोलने की आजादी के तहत आते हैं. उन पर रोक कैसे लगाई जा सकती है? अनिर्वाचित उम्मीदवारों द्वारा दिए गए चुनावी भाषण भविष्य की सरकार की बजटीय योजनाओं के बारे में आधिकारिक बयान नहीं हैं और न ही हो सकते हैं. वास्तव में वे नागरिक कल्याण के विभिन्न मुद्दों पर किसी पार्टी या उम्मीदवार के वैचारिक बयान मात्र हैं, जो तब नागरिकों को सचेत करने के लिए हैं ताकि वो मतदान में फैसला कर सके कि किसे वोट देना है. एक बार निर्वाचित सरकार बनती है तो ये उसका काम है कि वह चुनाव के दौरान प्रस्तावित विभिन्न योजनाओं या जो वादे किए गए उनको संशोधित करने, स्वीकार करें, अस्वीकार करें या बदल दें. 

लिहाजा, विशेषज्ञ समिति को चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वादों पर विचार करने से अलग रखा जाए. सरकार बनने के बाद की नीति पर ही विशेषज्ञ विचार करें, क्योंकि सरकार ही किसी नीति, वायदे और परियोजना को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है.

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा 

- इस प्रकार नीतियों के दायरे पर किसी भी विधायी मार्गदर्शन के अभाव में जिसे 'फ्री बी' माना जा सकता है या चुनावी अभियानों में ऐसी नीतियों का वादा करने के परिणामों पर इस संबंध में एक संभावित विशेषज्ञ निकाय द्वारा लिया गया कोई भी फैसला संवैधानिक रूप से बिना प्राधिकरण के होगा.
- इस तरह के निकाय के लिए तैयार की जा सकने वाली संदर्भ की शर्तों में चुनावी भाषणों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए.
- वास्तव में वर्तमान कार्यवाही का मुद्दा, चुनावी भाषण को लक्षित करना है और इसकी सुनवाई करना एक जंगली हंस का पीछा से ज्यादा कुछ नहीं होगा.
- राजनीतिक पार्टियों के चुनावी भाषण पर हमला करके राजकोषीय घाटे के मुद्दों को संबोधित करने की कोशिश सही नहीं है.
- ये चुनावों की लोकतांत्रिक गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाएगा 
-राजकोषीय उत्तरदायित्व के हित में अदालत को सरकारी खजाने से धन के वास्तविक खर्च के बिंदु पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि ये बजटीय मामला है 
- ये सुनवाई चुनी हुई सरकारों द्वारा खर्च को लेकर उन उपायों तक सीमित हो, जो वास्तविक लक्ष्य को लक्षित करके राजकोषीय घाटे को कम कर सकती है
 - इस मामले में एक्सपर्ट बॉडी का गठन हो तो  वो भारत के संविधान द्वारा समर्थित विकास के व्यापक समाजवादी-कल्याणवादी मॉडल के भीतर हो 
- बुधवार को होनी है सुनवाई 
 

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