
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को खनन माफिया और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए गुरुवार को कड़ी फटकार लगाई. इन अधिकारियों पर वन कानूनों का उल्लंघन करने और नूंह में अरावली से निकाले गए पत्थरों को अवैध रूप से राजस्थान ले जाए जाने में मदद करने का आरोप है. मामले में अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी. CJI बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस मामले में हरियाणा के मुख्य सचिव द्वारा दायर हलफनामे की कड़ी आलोचना की.
क्या है मामला
हरियाणा के नूंह जिले में अरावली की पहाड़ियों में अवैध खनन का गंभीर मामला सामने आया है, जहां खनन माफिया ने न केवल एक पूरी पहाड़ी को नष्ट कर दिया, बल्कि 45 मीटर चौड़ी और 1.5 किलोमीटर लंबी अवैध सड़क भी बना दी. इस सड़क के जरिए करीब 80 लाख टन खनिज को गैरकानूनी रूप से राजस्थान पहुंचाया गया. इस मामले ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया है, जिसने हरियाणा सरकार और मुख्य सचिव को कड़ी फटकार लगाई है.
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं. पीठ ने मामले में हरियाणा सरकार की निष्क्रियता पर गहरी नाराजगी जताई. CJI गवई ने कहा, “ऐसा लगता है कि माफिया न केवल अपने सदस्यों की रक्षा करता है, बल्कि उन अधिकारियों की भी सुरक्षा करता है जो उनके साथ मिलीभगत में शामिल हैं.” कोर्ट ने मुख्य सचिव के हलफनामे की आलोचना करते हुए कहा कि यह पर्यावरण और वन कानूनों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार माफिया और अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई को स्पष्ट नहीं करता.
FIR न दर्ज होने पर सवाल: कोर्ट ने नूंह के पुलिस अधीक्षक से जवाब मांगा कि रेंज वन अधिकारी के अनुरोध के बावजूद अवैध खनन के खिलाफ FIR क्यों नहीं दर्ज की गई. CJI ने कहा, “हम यह समझने में असमर्थ हैं कि माफिया और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई.”
कड़ी कार्रवाई की चेतावनी: पीठ ने चेतावनी दी कि यदि राज्य सरकार और मुख्य सचिव सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने और अरावली की सुरक्षा में लापरवाही बरतते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
अगली सुनवाई: कोर्ट ने मुख्य सचिव को माफिया और दोषी अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने और 16 जुलाई 2025 तक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.
अवैध सड़क और खनन का खेल
अवैध सड़क का निर्माण: नूंह जिले के बसई मेव गांव में खनन माफिया ने भारी मशीनरी का उपयोग कर 1.5 किलोमीटर लंबी और 45 मीटर चौड़ी सड़क बनाई, जो राजस्थान की सीमा से सटे क्षेत्रों को जोड़ती थी. इस सड़क का उपयोग अवैध रूप से निकाले गए खनिजों को राजस्थान पहुंचाने के लिए किया गया.
पहाड़ी का विनाश: केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) की रिपोर्ट के अनुसार, खनन माफिया ने अरावली की एक पूरी पहाड़ी को नष्ट कर दिया, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचा और स्थानीय ग्रामीणों की कृषि भूमि पर अतिक्रमण हुआ.
मिलीभगत का आरोप: कोर्ट ने पाया कि इस अवैध गतिविधि में बसई मेव के सरपंच, राजस्व विभाग के अधिकारी, और पुलिस की मिलीभगत थी. सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2024 के आदेश के बाद सरपंच को निलंबित कर दिया गया.
हरियाणा सरकार की कार्रवाई
सड़क को खराब किया गया: हरियाणा सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ने कोर्ट को बताया कि अवैध सड़क को गड्ढे खोदकर बेकार कर दिया गया है।
FIR और चालान: नूंह के जिला मजिस्ट्रेट ने बताया कि चार FIR दर्ज की गई हैं और अवैध खनन से जुड़े ट्रकों के 400 चालान जारी किए गए हैं.
जांच भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को सौंपी: मामले की जांच हरियाणा के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) को सौंप दी गई है, जो अधिकारियों और माफिया की मिलीभगत की गहराई से पड़ताल करेगा.
पर्यावरणीय प्रभाव
अवैध खनन और सड़क निर्माण ने अरावली की पारिस्थितिकी को गंभीर नुकसान पहुंचाया है. CEC की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सड़क अवैध खनन गतिविधियों का प्रमुख मार्ग थी, जिसने न केवल पहाड़ी को नष्ट किया, बल्कि स्थानीय जल स्तर और कृषि भूमि को भी प्रभावित किया. पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली का विनाश क्षेत्र में बारिश की कमी और रेगिस्तानीकरण का कारण बन सकता है.
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुख्य सचिव नौकरशाही के प्रमुख हैं और केवल वन विभाग को दोष देकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते. कोर्ट ने कहा, “यदि राज्य सरकार ने हमारे पिछले आदेशों के अनुसार राजस्व विभाग से वन भूमि को वन विभाग को हस्तांतरित किया होता, तो ऐसी स्थिति नहीं उत्पन्न होती.” कोर्ट ने 2002 से अरावली में खनन पर लगी रोक का उल्लेख करते हुए कहा कि इस तरह की गतिविधियां सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना हैं.
किसानों के लिए प्रभाव
कृषि भूमि पर अतिक्रमण: अवैध सड़क और खनन ने स्थानीय किसानों की कृषि भूमि को नुकसान पहुंचाया, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हुई।
जल स्तर में कमी: अरावली का विनाश क्षेत्र में भूजल स्तर को प्रभावित कर सकता है, जो मॉनसून पर निर्भर खेती के लिए हानिकारक है।
मॉनसून पर असर: विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली की पहाड़ियों का विनाश बारिश के पैटर्न को बिगाड़ सकता है, जिससे नूंह और आसपास के क्षेत्रों में मॉनसून प्रभावित हो सकता है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं