इस बार का मानसून सीजन पहाड़ी इलाकों के लिए मुसीबत का सबब बनकर आया. अब मानसून के दौरान लोकप्रिय पर्यटन स्थलों वाले हिल स्टेशनों में भारी तबाही पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है. साथ ही तबाही के कारणों की जांच करने पर भी सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है. अध्ययन के लिए कमेटी बनाने पर विचार किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र में स्थित सभी 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों, हिल स्टेशनों, उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों, बड़े टूरिस्ट क्षेत्रों और पर्यटन स्थलों की वहन क्षमता का पता लगाने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल बनाने का संकेत दिया है.
सीजन में पहाड़ी क्षेत्रों में होती है भारी भीड़
याचिकाकर्ता को सुनवाई की अगली तारीख 28 अगस्त को सुझावों के साथ वापस आने का निर्देश दिया गया कि पैनल में कौन-कौन विशेषज्ञ हो सकते हैं और संदर्भ की शर्तें क्या हो सकती हैं. यह मुद्दा पूर्व आईपीएस अधिकारी अशोक कुमार राघव ने उठाया था, जिन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों और उसके आसपास अनियोजित बुनियादी ढांचे के विकास की शिकायत की थी. जनहित याचिका में कहा गया है कि मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, चार धाम, जिम कॉर्बेट, बिनसर आदि जैसे गंतव्यों में चरम पर्यटन सीजन के दौरान अत्यधिक भीड़ होती है.
विशेषज्ञों की एक समिति बनाने का इरादा
स्थायी योजना, यातायात और पर्यटक प्रबंधन रणनीतियों को सक्षम करने के लिए वहन क्षमताओं की पहचान जैसे तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है. यह कहते हुए कि जनहित याचिका ने "गंभीर चिंता का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा" उठाया है, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने राघव के वकील आकाश वशिष्ठ से कहा कि वह सभी पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों, हिल स्टेशनों की वहन क्षमता का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाने का इरादा रखती है. भारतीय हिमालय क्षेत्र में स्थित सभी 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में ऊंचाई वाले क्षेत्र, अत्यधिक भ्रमण वाले क्षेत्र और पर्यटन स्थल हैं. सीजेआई का इरादा इस प्रयास में सरकारी और निजी संस्थानों को भी शामिल करने का है.
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