सुप्रीम कोर्ट ने तीन दशक से चल रहे फरीदकोट के तत्कालीन महाराजा सर हरिंदर सिंह बरार की शाही संपत्ति मामले की लंबी कानूनी लड़ाई का निपटारा कर दिया है. कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है. साथ ही 20 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति का अधिकांश हिस्सा उनकी बेटियों अमृत कौर और दीपिंदर कौर को देने का फैसला भी बरकरार रखा. सर्वोच्च न्यायालय ने संपत्तियों की देखभाल करने वाले महारावल खेवाजी ट्रस्ट को भंग कर दिया है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने संपत्ति के हिस्से से संबंधित हाईकोर्ट के आदेश में कुछ संशोधन भी किया है. सभी पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने 28 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. जुलाई 2020 में महारावल खेवाजी ट्रस्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें बरार की एक जून, 1982 को उसके पक्ष में की गई वसीयत को 'जाली' घोषित किया गया था.
अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम फैसला आने तक यथास्थिति का आदेश दिया था, जिसके तहत ट्रस्ट को केयरटेकर बने रहने की अनुमति दी गई थी. जून 2020 में हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ की अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें उनकी दो बेटियों अमृत कौर और दीपिंदर कौर को बरार की 20 हजार करोड़ की संपत्ति में अधिकांश हिस्सा दिया था. अमृत कौर ने 1992 में वसीयत को चुनौती दी थी.
अदालत ने माना कि अंतिम शासक के भाई मंजीत इंदर सिंह के वंशजों को उनकी मां मोहिंदर कौर का हिस्सा मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इस अदालत के समक्ष पड़े खातों और अन्य दस्तावेजों के सभी विवरण जल्द ट्रायल कोर्ट को भेज दिए जाएं.यह भी कहा है कि ट्रस्ट केवल 30 सितंबर, 2022 तक चैरिटेबल अस्पताल चलाने का हकदार होगा.
उसके बाद एक रिसीवर की नियुक्ति की आवश्यकता सहित प्रबंधन, वित्त और अन्य सभी पहलू पर निर्णय डिक्री पारित करने वाली अदालत के आदेश के अधीन होगा. शेष संपत्ति जो ट्रस्ट या किसी अन्य व्यक्ति के हाथों में है, वह भी उस अदालत के द्वारा उचित आदेश पारित करने तक उनके पास बनी रहेगी.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं