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This Article is From Jul 13, 2023

उम्र कैदियों की सजा में छूट के आवेदनों को लेकर यूपी सरकार की उदासीनता पर सुप्रीम कोर्ट नाराज

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुछ दोषियों की सजा में छूट के संबंध में सर्वोच्च अदालत के निर्देश के अनुपालन में राज्य सरकार लगभग एक साल से उपेक्षा बरत रही है

उम्र कैदियों की सजा में छूट के आवेदनों को लेकर यूपी सरकार की उदासीनता पर सुप्रीम कोर्ट नाराज
सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली:

यूपी सरकार के अधिकारियों के रवैए से नाराज होकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि शीर्ष के आदेशों के प्रति अफसरों के मन में लगता है थोड़ा भी सम्मान नहीं है. क्योंकि, आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुछ दोषियों की सजा में छूट के संबंध में सर्वोच्च अदालत के निर्देश के अनुपालन में राज्य सरकार लगभग एक साल से उपेक्षा बरत रही है. आदेश पर कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है.

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की  पीठ ने निर्देश दिया कि यदि यूपी के संबंधित अधिकारी याचिकाकर्ताओं की समय पूर्व रिहाई के सभी लंबित आवेदनों पर महीने भर में फैसला नहीं करेंगे तो राज्य के प्रमुख गृह सचिव को 29 अगस्त को अदालत में प्रत्यक्ष तौर पर पेश होना होगा. तब उन्हें अदालत को बताना होगा कि आखिर साल भर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन क्यों नहीं किया गया. 

अदालत की नाराजगी इस पर थी कि उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई, 2022 को आदेश दिया था कि कई उम्र कैदियों की समय पूर्व रिहाई के आवेदनों पर तीन महीने के भीतर अंतिम निर्णय लें, लेकिन इस आदेश को साल भर से भी ज्यादा यानी 14 महीने हो गए. इसके बावजूद कई कैदियों की समय से पहले रिहाई की याचिकाओं पर अभी तक फैसला नहीं किया गया है.

पीठ ने मई 2022 में दिए अपने पिछले आदेश में इस तथ्य पर जोर दिया था कि सभी याचिकाकर्ताओं ने अपनी वास्तविक सजा में 14 साल से अधिक की अवधि बिना छूट के पूरी कर ली है. वे सभी सेंट्रल जेल, बरेली में बंद हैं.

प्रदेश सरकार की सजा में रियायत नीति और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित कई निर्देशों के मुताबिक राज्य सरकार को किसी कैदी की सजा माफी याचिका उसके पात्र होने के तीन महीने के भीतर निपटारा करना ही होगा. वह ऐसा करने के लिए वह बाध्य है.

पिछले साल शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले 42 अपराधी कैदियों में से कई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी माफी याचिका के आधार पर फैसला आने तक रिहा कर दिया था या बरी कर दिया था. तब हाईकोर्ट और अन्य प्राधिकरण के सामने समय से पहले रिहाई के लिए कम से कम सात ऐसे आवेदन लंबित थे. 

अधिकारियों के ढिठाई भरे रवैए से नाराज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आपके अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के प्रति जितना अनादर दिखा रहे हैं, हमें लगता है कि हमें अब कठोर कदम उठाने ही होंगे. आपके अधिकारियों के मन में कोर्ट ऑर्डर के प्रति तनिक भी सम्मान नहीं है. क्या आपके राज्य में यही हो रहा है?

उत्तर प्रदेश सरकार के AAG अर्धेंदुमौली कुमार प्रसाद ने स्वीकार किया कि प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है. इस सिलसिले में हालांकि राज्य ने कई सकारात्मक कदम उठाए हैं. अदालत ने कहा कि मामले की जड़ यह है कि राज्य सरकार मई 2022 के निर्देश का पालन करने में विफल रही है. लेकिन आप याद रखें कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. 

जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब राज्य सरकार ने कहा कि राज्यपाल को इस निर्देश पर अमल करने के लिए बाध्य करना उचित नहीं हो सकता है. इस पर अदालत ने कहा कि संवैधानिक प्राधिकारी को कोर्ट के आदेश से निर्धारित समय सीमा में माफी याचिकाओं पर राज्य की सिफारिशों के बाद अंतिम निर्णय लेना है. इसमें राज्यपाल को सीधे क्यों लाया जा रहा है?  

कोर्ट ने कहा कि सरकार को याद रखना चाहिए कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. ऐसे लोग हैं जो लगभग 30 वर्षों से परेशान हैं. मई 2022 में हमारे समक्ष याचिकाकर्ताओं के आवेदनों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का हमारा निर्देश पारित किया गया था.

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