नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने का निर्णय निरस्त करने के आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस रुख के बाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जैसी प्रतिष्ठित केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण व्यवस्था के तहत प्रवेश की उम्मीद रखने वाले 325 छात्रों को मायूसी हाथ लगी है।
न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की अवकाशकालीन पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल गौरव बनर्जी की दलीलें सुनने के बाद दो टूक शब्दों मे कहा, हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाएंगे। न्यायाधीशों ने सरकार से सवाल किया कि अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण में से क्या धर्म के आधार पर इस तरह का वर्गीकरण किया जा सकता है?
न्यायाधीशों ने इसके साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय की याचिका पर आर कृष्णामैया तथा उन दूसरे प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए, जिनकी याचिका पर अन्य पिछड़े वर्ग के 27 फीसदी कोटे में से अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान हाईकोर्ट ने निरस्त किया था।
इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही न्यायाधीशों ने कहा कि केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण के पक्ष में उनके समक्ष बड़ी संख्या में दस्तावेज पेश किए हैं। ये दस्तावेज हाईकोर्ट में पेश करना अधिक तर्कसंगत होता। अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल गौरव बनर्जी ने इस पर कहा कि उच्च न्यायालय को यह लग रहा था कि ये आरक्षण शायद सभी अल्पसंख्यकों के लिए है। इस पर न्यायाधीशों ने कहा, आरक्षण के बारे में कार्यालय के ज्ञापन से ऐसा ही आभास होता है।
बनर्जी ने कहा कि बौद्ध और पारसी समुदाय जैसे अल्पसंख्यक 4.5 फीसदी आरक्षण की सूची में शामिल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय अन्य पिछड़े वर्गों के लिए निर्धारित 27 फीसदी आरक्षण के दायरे में शामिल हैं, जबकि 4.5 फीसदी के इस हिस्से के आरक्षण में मुस्लिम समाज के सबसे निचले तबके या धर्म परिवर्तन करने वाले ईसाइयों को शामिल किया गया है।
न्यायाधीशों का कहना था कि 4.5 फीसदी आरक्षण के बारे में 22 दिसंबर, 2011 को जारी कार्यालय ज्ञापन को कोई विधायी समर्थन भी प्राप्त नहीं था। अन्य पिछड़े वर्गों के 27 फीसदी आरक्षण में से 4.5 फीसदी आरक्षण की गणना पर सवाल उठाते हुए न्यायाधीशों ने जानना चाहा कि क्या इस आरक्षण को किसी सांविधानिक या विधायी संस्था का समर्थन प्राप्त है? न्यायाधीशों ने यह भी जानना चाहा कि क्या 4.5 फीसदी आरक्षण संबंधी कार्यालय ज्ञापन को कोई सांविधानिक या विधायी समर्थन प्राप्त है?
गौरव बनर्जी इन सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। उन्होंने न्यायाधीशों से बार-बार यह अनुरोध किया कि आईआईटी में प्रवेश के लिए हो रही काउंसलिंग के मद्देनजर उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाई जाए, क्योंकि 4.5 फीसदी आरक्षण कोटे के तहत ही इस वर्ग के 325 छात्रों की सूची तैयार की गई है। लेकिन न्यायाधीश उनकी इन दलीलों से प्रभावित नहीं हुए और उन्होंने कहा कि वे अन्य पिछड़े वर्गों के 27 फीसदी आरक्षण में से अल्पसंख्यकों को 4.5 फीसदी आरक्षण देने के निर्णय को निरस्त करने के फैसले पर रोक नहीं लगाऐंगे।
उच्च न्यायालय ने 28 मई को अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण का प्रावधान असंवैधानिक करार दे दिया था। इसके बाद ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उच्चतम न्यायालय ने 11 जून को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से 4.5 फीसदी आरक्षण से जुड़े सारे तथ्य और दस्तावेज मांगे थे। न्यायालय ने उस दिन भी स्पष्ट कर दिया था कि सरकार को इतने जटिल और संवेदनशील मसले को इस तरह से नहीं लेना चाहिए था।
यही नहीं, शीर्ष अदालत ने इस विषम स्थिति के लिए उच्च न्यायालय पर दोष मढ़ने के केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी भी जाहिर की थी। न्यायालय का कहना था कि वास्तविकता तो यह है कि केंद्र सरकार ही इस मामले में आवश्यक दस्तावेज पेश करने में विफल रही थी।
सुप्रीम कोर्ट के इस रुख के बाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जैसी प्रतिष्ठित केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण व्यवस्था के तहत प्रवेश की उम्मीद रखने वाले 325 छात्रों को मायूसी हाथ लगी है।
न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की अवकाशकालीन पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल गौरव बनर्जी की दलीलें सुनने के बाद दो टूक शब्दों मे कहा, हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाएंगे। न्यायाधीशों ने सरकार से सवाल किया कि अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण में से क्या धर्म के आधार पर इस तरह का वर्गीकरण किया जा सकता है?
न्यायाधीशों ने इसके साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय की याचिका पर आर कृष्णामैया तथा उन दूसरे प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए, जिनकी याचिका पर अन्य पिछड़े वर्ग के 27 फीसदी कोटे में से अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान हाईकोर्ट ने निरस्त किया था।
इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही न्यायाधीशों ने कहा कि केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण के पक्ष में उनके समक्ष बड़ी संख्या में दस्तावेज पेश किए हैं। ये दस्तावेज हाईकोर्ट में पेश करना अधिक तर्कसंगत होता। अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल गौरव बनर्जी ने इस पर कहा कि उच्च न्यायालय को यह लग रहा था कि ये आरक्षण शायद सभी अल्पसंख्यकों के लिए है। इस पर न्यायाधीशों ने कहा, आरक्षण के बारे में कार्यालय के ज्ञापन से ऐसा ही आभास होता है।
बनर्जी ने कहा कि बौद्ध और पारसी समुदाय जैसे अल्पसंख्यक 4.5 फीसदी आरक्षण की सूची में शामिल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय अन्य पिछड़े वर्गों के लिए निर्धारित 27 फीसदी आरक्षण के दायरे में शामिल हैं, जबकि 4.5 फीसदी के इस हिस्से के आरक्षण में मुस्लिम समाज के सबसे निचले तबके या धर्म परिवर्तन करने वाले ईसाइयों को शामिल किया गया है।
न्यायाधीशों का कहना था कि 4.5 फीसदी आरक्षण के बारे में 22 दिसंबर, 2011 को जारी कार्यालय ज्ञापन को कोई विधायी समर्थन भी प्राप्त नहीं था। अन्य पिछड़े वर्गों के 27 फीसदी आरक्षण में से 4.5 फीसदी आरक्षण की गणना पर सवाल उठाते हुए न्यायाधीशों ने जानना चाहा कि क्या इस आरक्षण को किसी सांविधानिक या विधायी संस्था का समर्थन प्राप्त है? न्यायाधीशों ने यह भी जानना चाहा कि क्या 4.5 फीसदी आरक्षण संबंधी कार्यालय ज्ञापन को कोई सांविधानिक या विधायी समर्थन प्राप्त है?
गौरव बनर्जी इन सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। उन्होंने न्यायाधीशों से बार-बार यह अनुरोध किया कि आईआईटी में प्रवेश के लिए हो रही काउंसलिंग के मद्देनजर उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाई जाए, क्योंकि 4.5 फीसदी आरक्षण कोटे के तहत ही इस वर्ग के 325 छात्रों की सूची तैयार की गई है। लेकिन न्यायाधीश उनकी इन दलीलों से प्रभावित नहीं हुए और उन्होंने कहा कि वे अन्य पिछड़े वर्गों के 27 फीसदी आरक्षण में से अल्पसंख्यकों को 4.5 फीसदी आरक्षण देने के निर्णय को निरस्त करने के फैसले पर रोक नहीं लगाऐंगे।
उच्च न्यायालय ने 28 मई को अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण का प्रावधान असंवैधानिक करार दे दिया था। इसके बाद ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उच्चतम न्यायालय ने 11 जून को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से 4.5 फीसदी आरक्षण से जुड़े सारे तथ्य और दस्तावेज मांगे थे। न्यायालय ने उस दिन भी स्पष्ट कर दिया था कि सरकार को इतने जटिल और संवेदनशील मसले को इस तरह से नहीं लेना चाहिए था।
यही नहीं, शीर्ष अदालत ने इस विषम स्थिति के लिए उच्च न्यायालय पर दोष मढ़ने के केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी भी जाहिर की थी। न्यायालय का कहना था कि वास्तविकता तो यह है कि केंद्र सरकार ही इस मामले में आवश्यक दस्तावेज पेश करने में विफल रही थी।
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