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This Article is From Dec 09, 2017

कारगिल युद्ध के नायक की जुबानी : मैं जिंदा हूं या मर गया यह जानने के लिए पाकिस्तानियों ने दाग दी मेरे ऊपर गोलियां

करगिल युद्ध  के नायक एवं परमवीर चक्र से सम्मानित वाईएस यादव का. दो दशक पहले सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव की तैनाती 18 ग्रेनेडियर्स में हुई थी और वर्ष 1999 में जब उन्होंने करगिल युद्ध लड़ा तब वह महज 19 साल के थे.

कारगिल युद्ध के नायक की जुबानी : मैं जिंदा हूं या मर गया यह जानने के लिए पाकिस्तानियों ने दाग दी मेरे ऊपर गोलियां
कारगिल युद्ध के समय वाईएस सिंह यादव की उम्र 19 साल थी ( फाइल फोटो )
नई दिल्ली: यह जानते हुए कि दुश्मन का सामना करते समय मौत निश्चित है, इसके बावजूद सैनिकों के दिमाग में अपनी सुरक्षा अंतिम होती है और राष्ट्र तथा इसके नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि होती है, यह कहना है  करगिल युद्ध  के नायक एवं परमवीर चक्र से सम्मानित वाईएस यादव का. दो दशक पहले सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव की तैनाती 18 ग्रेनेडियर्स में हुई थी और वर्ष 1999 में जब उन्होंने करगिल युद्ध लड़ा तब वह महज 19 साल के थे. यादव यहां देश के पहले सैन्य साहित्य महोत्सव में हिस्सा लेने के लिये आये थे. उन्होंने कहा कि वह कमांडो प्लाटून ‘घातक’ का हिस्सा थे, जिसे ‘टाइगर हिल’ पर सामरिक बंकरों को कब्जाने का जिम्मा दिया गया था. उन्होंने कहा, ‘‘चार जुलाई (1999) को टाइगर हिल पर चढ़ाई करनी थी और हमारे समूह में सात लोग थे. 90 डिग्री की सीध में हमें खड़ी चढ़ाई करनी थी. चारों ओर से हम पर मौत का खतरा था. हम जानते थे कि हम मरने वाले हैं लेकिन कम से कम क्षति हो इसके लिये हम दृढ़संकल्प थे और इसी इच्छाशक्ति के साथ हम आगे की ओर बढ़ रहे थे.’’ यादव ने कहा कि दुश्मन की गोलीबारी में 12 गोलियां लगने और गंभीर रूप से घायल होने के बाजवूद मैंने उन्हें (दुश्मन सेना) चकमा दिया और उनके पांच सैनिकों को मार गिराया.

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यादव ने कहा, ‘‘मेरे बाजू, पैरों में 12 जगह गोलियां लगने के निशान हैं. एक दुश्मन सैनिक ने मुझ पर निशाना साधते हुए मेरे सीने पर भी गोली चलाई थी लेकिन गोली मुझे लगी नहीं क्योंकि वह मेरे पॉकेट में रखे पांच सिक्कों से टकराकर लौट गयी थी.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ईश्वर ने मुझे जीवित रखा ताकि मैं शहीद हुए अपने साथी छह जवानों की बहादुरी की दास्तां सुना सकूं.’’ भीषण युद्ध के बारे विस्तार से बताते हुए यादव ने कहा, ‘‘जब मैं जख्मी हालत में जमीन पर पड़ा था तब दुश्मनों ने मुझे मरा हुआ मान लिया था. मैं जिंदा हूं या नहीं यह पता लगाने के लिये उन्होंने मेरे ऊपर गोलियां भी चलायीं. लेकिन मैं उन्हें यकीन दिलाना चाहता था कि मैं जिंदा नहीं हूं.’’ उन्होंने बताया, ‘‘जब उनका दूसरा दल आया तब मैंने एक ग्रेनेड लिया और उनके जवानों पर फेंक दिया, जिससे वे मारे गये. फिर मैंने उनकी राइफल लिया और गोलियां चलाने लगा जिससे उनके पांच अन्य जवान मारे गये.’’ 

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उन्होंने बताया, ‘‘मैंने लुढ़कते हुए तीन-चार ओर से गोलियां चलायीं ताकि दुश्मन को यह लगे कि अतिरिक्त सैनिक (भारतीय सैनिकों का दल) आ गये हैं. अगर उन्हें पता चलता कि मैं अकेला हूं तो वो मुझे भी मार डालते.’’यादव ने बताया, ‘‘दुश्मन ने सोचा कि उन्होंने हमारे सभी सैनिकों को जब मार गिराया तब ये अतिरिक्त सैनिक आये. लेकिन पाकिस्तान का हौसला इतना पस्त हो चुका था कि उन्होंने उसी वक्त हार मान ली.’’देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित एक अन्य नायब सूबेदार संजय कुमार ने भी करगिल युद्ध के अपने अनुभवों को साझा किया.

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परमवीर चक्र पुरस्कार से सम्मानित और वर्ष 1987 में सियाचिन सेक्टर में अपनी वीरता का जौहर दिखाने वाले कैप्टन बना सिंह भी इस सैन्य साहित्य महोत्सव के दौरान मौजूद थे.

 

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