नई संसद के उद्घाटन के अवसर पर जहां ऐतिहासिक राजदंड (सेंगोल) आकर्षण का केंद्र बना रहा तो वहीं इस समारोह में तमिलनाडु के 19 अधीनम (मठ) के पुजारियों की उपस्थिति ने सुर्खियां बटोरीं. इस मामले को जानने वाले लोग बताते हैं कि अधीनम प्रमुखों और ओडुवारों (तमिल गायकों) को लाने के लिए केंद्र ने विशेष विमान की व्यवस्था की थी. साथ ही केंद्र की ओर से तीन दिनों तक उनके दैनिक अनुष्ठानों की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई थी. इसके अतिरिक्त आगामी दिनों में उन्हें समर्थन देने का भी आश्वासन दिया गया.
19 अधीनम प्रमुखों में से छह - धर्मपुरम, मदुरै, थिरुववदथुराई, कुंद्राकुडी, पेरुर और वेलाकुरिची को विशेष रूप से रविवार को प्रधानमंत्री को सेंगोल पेश करने के लिए कहा गया था, जो गणपति होमम और तमिल मंत्रों और भजनों के पाठ से परिपूर्ण था. धार्मिकता और स्वशासन के प्रतीक सेंगोल को खुद पीएम ने नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया. प्रधानमंत्री को सेंगोल भेंट करने के लिए चुने गए छह में से चार अधीनम उन उन्नीस शैव मठों में से आठ में से हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि उनका अस्तित्व कम से कम 400 वर्षों का है या जिनकी जड़ें प्राचीन भारत में हैं.
धर्मपुरम मठ से जुड़े वरिष्ठ वकील एम. कार्तिकेयन ने कहा, "कई प्राचीन अधीनम सहयोग नहीं मिलने की वजह से गायब हो गए हैं. यही वजह है कि पीएम का हमें बुलाना और सम्मानित करना हमारे अनुयायियों को उत्साहित करने वाला है और यहां तक कि हमारी धार्मिक गतिविधियों को भी बढ़ाता है." एक अन्य शख्स ने कहा, "केंद्र ने यह स्पष्ट किया कि न केवल सबसे पुराने और लोकप्रिय अधीनम को बल्कि अन्य को भी महत्व दिया गया. हर मठ के प्रतिनिधिमंडल को न केवल अलग कार और बड़े कमरे दिए गए बल्कि सहायता के लिए सात लोगों को लाने की भी अनुमति दी गई, क्योंकि इनमें से कुछ संत बुजुर्ग हैं और उन्हें मदद की जरूरत होती है."
वेलाकुरिची अधीनम के मुख्य पुजारी सत्यज्ञान महादेव ने कहा, "1947 में सिर्फ एक अधीनम था जिसने पीएम नेहरू को सेंगोल दिया था, लेकिन अब छह हैं जिन्होंने सम्मान किया. यह शैव परंपराओं को लोगों तक ले जाने के हमारे प्रयासों को बड़ी मान्यता है." अधीनम अनिवार्य रूप से तमिल रीति-रिवाजों और पूजन पद्धतियों के साथ शिव की पूजा करने वाले मठ हैं.
यह पुजारी तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों से आए थे और उनके तीन मठ - थिरुववदुथुराई, धर्मपुरम और मदुरै को सबसे पुराने मठों में से एक के रूप में देखा जाता है. साथ ही पहले दो को सबसे धनी मठों में गिना जाता है, जिनके बड़ी संख्या में अनुयायी हैं. वहीं दिल्ली में आने वाले 19 मठों में से कई का नेतृत्व शैव पिल्लई प्रमुखों द्वारा किया जाता है, जो अगड़ी जाति समुदायों से आते हैं. कई ओबीसी मठ प्रमुखों जैसे कि पलानी बोगर समाधि को भी आमंत्रित किया गया था.
यह स्पष्ट है कि केंद्र और भाजपा का प्रयास तमिलनाडु की शैव परंपराओं को फिर से जीवंत करना है, जो कि शंकराचार्य से भी पहले की है. शंकराचार्य को भारत की मठवासी परंपराओं के लिए एक ढांचा बनाने के लिए जाना जाता है. साथ ही केंद्र और भाजपा की कोशिश डीएमके और पेरियारवादी तर्कसंगतता, नास्तिकता और राजनीति के लिए के इर्द गिर्द एकत्रित ताकतों का मुकाबला करना है, जो ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण को चुनौती देता है. शायद यही कारण है कि उच्च जाति के मठों को इस आयोजन का हिस्सा बनाया गया और ध्यान पूरी तरह से अन्य समूहों द्वारा चलाए जा रहे शैव मठों पर था.
हालांकि आलोचकों ने इस कदम को लेकर समस्याओं की ओर इशारा किया है. द्रविड़ लेखक थिरुनावुक्करासर ने कहा कि विकसित समाज की कोशिश उन प्रतीकों को अस्वीकार करना था जो अतीत में किसी भी तरह के उत्पीड़न को दर्शाते हैं. उन्होंने कहा, "वर्णाश्रम धर्म (जाति) को इंच-दर-इंच लड़ना पड़ता है. परंपरा है कि लोकतंत्र में जातिगत भेदभाव और विशिष्टता के मठ का समर्थन नहीं किया जा सकता है.
हालांकि केंद्र के इस कदम की अधीनम प्रमुखों ने केवल प्रशंसा की है. दिल्ली में बिताए तीन दिनों में वापस जाने से पहले उन्हें राजधानी के ऐतिहासिक मंदिरों में भी ले जाया गया. बैठक में भाग लेने वालों के अनुसार, संतों से अपने भाषण में पीएम ने तमिल गौरव और प्राचीन तमिल सभ्यता की महिमा को लेकर सविस्तार बातचीत की और यह भी बताया कि कैसे दक्षिण के लोग धर्म के मामलों में मदद करने के लिए वाराणसी जैसे शहरों में आते थे. बैठक में तमिलनाडु से आने वाले मोदी कैबिनेट के मंत्री वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और राज्य मंत्री एल मुरुगुन भी उपस्थित थे. बैठक में शामिल होने वालों ने कहा कि पीएम के साथ बैठक में संतों ने अपनी समस्याएं नहीं उठाईं और कार्यक्रम अराजनीतिक था. हालांकि पीएम मोदी ने उन लोगों पर जमकर निशाना साधा और कहा कि "सेंगोल को एक छड़ी में बदल दिया और म्यूजियम से सेंगोल को बाहर लाने के लिए एक सेवक की जरूरत थी."
धर्मपुरम अधीनम के प्रमुख मसिलमणि देसिका ज्ञान संपदा परमाचार्य स्वामी ने कहा कि पीएम मोदी द्वारा स्थापित सेंगोल सभी के लिए न्याय का प्रतीक है और यह देश के लिए सर्वश्रेष्ठ लाएगा. धर्मपुरम और मदुरै की हाल के दिनों में अपनी परंपराओं और कामकाज में कथित हस्तक्षेप को लेकर डीएमके सरकार के साथ अनबन हुई है, हालांकि अधिकारियों ने कहा कि उन मतभेदों को अब सुलझा लिया गया है.
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