नई दिल्ली:
एक सदी पहले जब मुंशी प्रेमचंद का नन्हा किरदार हामिद ‘ईदगाह’ जा रहा था, तो उसके जीवन की सबसे बड़ी विडंबना गरीबी और यतीम होना थी, लेकिन उसके बालसुलभ हौसले के दीये को मुंशी जी ने गुरबत की आंधी में बुझने नहीं दिया। हिंदी कहानी के युगपुरुष की 135वीं जयंती पर khabar.ndtv.com ने मुंशी जी को कुछ इस तरह याद किया... एक-एक लेख को पढ़ते जाएं और मुंशी जी की यादों में आप भी खो जाएं...
प्रेमचंद@135 : बेहतर तो होता कि आज आप प्रासंगिक न होते
दयाशंकर मिश्र का ब्लॉग : प्रेमचंद की याद में हामिद का टूटा हुआ चिमटा
प्रेमचंद@135 : समय से कितने आगे थे, 'लिव इन' पर एक सदी पहले ही लिख चुके थे
135वीं जयंती पर विशेष : रंगमंच की जान है प्रेमचंद की हिंदुस्तानी भाषा
सौ साल बाद भी प्रासंगिक हैं प्रेमचंद, रंगमंच पर भी असर बरकरार
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