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सिमरन शेख: धारावी से निकली वो क्रिकेटर जिसका बल्ला बोलता है, कैसा रहा है संघर्ष

भारत की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ियों में से एक मुंबई की धारावी में पैदा हुईं सिमरन शेख महिला प्रीमियर लीग में गुजरात जाएंट्स की ओर से खेलती हैं. यहां तक पहुंचने का उनका सफर संघर्ष से भरा रहा है. आइए जानते हैं कि वो यहां कैसे पहुंची हैं.

सिमरन शेख: धारावी से निकली वो क्रिकेटर जिसका बल्ला बोलता है, कैसा रहा है संघर्ष
मुंबई:

मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में इस साल 13 मार्च को गुजरात जाएंट्स  और मुंबई इंडियन के बीच मैच खेला जा रहा था. गुजरात की टीम मुंबई इंडियन की ओर से दिए गए 213 रन के लक्ष्य का पीछा कर रही थी.गुजरात की पारी के 15वें ओवर में व्हाइट बॉल क्रिकेट की दुनिया की बेहतरीन ऑलराउंडर नताली साइवर ब्रंट गुजरात की सिमरन शेख को गेंद कर रही थीं. सिमरन आठवें नंबर पर बल्लेबाजी करने आई थीं.

डब्लूपीएल में सिमरन की पारी

ऐसा नहीं था कि केवल गुजरात जाएंट्स के प्रशंसक ही किसी चमत्कार के लिए प्रार्थना कर रहे थे. खुद मुंबई की एक झुग्गी-झोपड़ी धारावी में सिमरन का परिवार और उनके सैकड़ों प्रशंसक और चाहने वाले सांसें रोककर यह देख रहे थे कि क्या 23 साल की धाराविकर के चमकने का समय आ गया है.

सिमरन ने नताली साइवर ब्रंट के ओवर में दो चौके और एक शानदार छक्का लगाया. इससे धारावी और उसके बाहर उनके प्रशंसकों के चेहरे पर खुशी छा गई. लेकिन कुछ गेंद बाद ही वो आठ गेद पर 17 रन बनाकर आउट हो गईं. वह उस दिन मुंबई इंडियन को हराने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाईं. लेकिन हम किसी भी पैमाने पर देख सकते हैं कि सिमरन शेख पहले से ही मुंबई में महिला क्रिकेट टीम की रॉकस्टार हैं. धारावी भारत की सबसे बड़ी झुग्गी झोपड़ी है, जहां वो पैदा हुईं और पली-बढ़ी हैं.

हमें सिमरन शेख और उनकी अविश्वसनीय कहानी का जश्न मनाना चाहिए. एक इलेक्ट्रीशियन की बेटी, जिसने धारावी में गली क्रिकेट खेलकर क्रिकेट की बारीकियां सीखीं, उसने तमाम बाधाएं पार कर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का काम किया है.

दिसंबर 2024 में सिमरन उस समय चर्चा में आ गई थीं, जब गुजरात जाएंट्स ने उन्हें डब्लूपीएल के मिनी ऑक्सन में 1.9 करोड़ रुपये में खरीदा था. उस नीलामी में वह भारत की सबसे महंगी अनकैप्ड खिलाड़ी थीं. सिमरन ने एनडीटीवी से कहा,''शुरू में मैं केवल यह उम्मीद कर रही थी कि कोई टीम मुझे खरीद लेगी. लेकिन जब कीमत एक करोड़ के पार चली गई तो मैं आश्चर्यचकित और निशब्द थी. अचानक से मेरे कठोर परिश्रम को पहचान मिल गई थी.''

सिमरन 11 लोगों के परिवार में बल-बढ़ी हैं. उनके परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी.

सिमरन 11 लोगों के परिवार में बल-बढ़ी हैं. उनके परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी.

कितना बड़ा है सिमरन का परिवार

अब जरा उस हालात पर विचार करें- सिमरन अपने सात भाई-बहनों में से तीसरी हैं. वो 11 लोगों के परिवार में पली-बढ़ी हैं. उनके पास केवल 10 गुणा 16 फिट का एक कमरा है. धारावी के लाखों अन्य निवासियों की तरह उसके पास भी नल के पानी, स्वच्छता, अच्छी स्वास्थ्य सेवा या शिक्षा या किसी भी तरह के सार्वजनिक सेवाओं की सुविधा नहीं थी. मुंबई का यह हिस्सा जहरीले प्रदूषण से घिरा हुआ है,वहां कचरा प्रबंधन के लिए भी कुछ नहीं है,शहर के इस सबसे खराब हिस्से में सिमरन ने कई अन्य साहसी धारावीकरों की तरह सफल होने का तरीका ढूंढ़ निकाला.

सिमरन ने एनडीटीवी से कहा कि उन्हें कभी भी इस बात का अहसास नहीं हुआ कि उनके सामने कितनी मुश्किलें हैं. उन्हें बस इतना पता था कि उन्हें क्रिकेट बहुत पसंद है, एक ऐसा खेल जिसमें उन्हें गेंद को जितना हो सके उतना जोर से मारना होता है. उनका ध्यान सिर्फ एक समस्या की तरफ था कि लड़के उन्हें अपने साथ खेलने देंगे या नहीं. इसे याद करते हुए वो कहती हैं, "बचपन में मैं लड़कों से हमेशा कहती रहती थी कि वे मुझे अपने साथ क्रिकेट खेलने दें. वे कहते थे कि मुझे चोट लग जाएगी, लेकिन मैं उन्हें तब तक परेशान करती रही, जब तक वे मान नहीं गए."

क्रिकेट सिमरन की जिंस में भी था. उनके पिता जाहिद अली शेख अपने जवानी के दिनों में बेहतरीन गेंदबाज थे. 1990 के दशक में वो धारावी के बाहर भी टेनिस बॉल क्रिकेट की दुनिया में मशहूर थे. लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस है कि वो अपनी प्रतिभा को और आगे नहीं ले जा पाए.

जाहिद कहते हैं,''मेरा परिवार गरीब था. उस समय लोग बात करते थे कि पैसे न होने की वजह से वो खाना नहीं खा पाए, कुछ वैसा ही हाल मेरे परिवार का भी था. अपने परिवार की मदद करने के लिए मुझे कामकाज शुरू करना पड़ा. इस वजह से मैंने क्रिकेट खेलना छोड़ दिया.''

कैसे मिली सिमरन की प्रतिभा को पहचान

लेकिन जब सिमरन ने धारावी के घरों की खिड़कियां तोड़ना और लोहे की ग्रिल को हिलाना शुरू कर दिया और क्रिकेट के मैदान पर उन्हें उनसे बड़े लड़के भी सम्मान देने लगे तो उसके माता-पिता ने उसका समर्थन करने का फैसला किया. जावेद कहते हैं, "सिमरन हमेशा क्रिकेट खेलती रहती थी. जब सिमरन के बारे में शिकायतें आने लगीं कि वह अपने बड़े शॉट से चीजें तोड़ देती है,तब मुझे एहसास हुआ कि उसमें असाधारण प्रतिभा है."

सिमरन की मां अख्तरी बानों एक और दबाव को याद करती हैं. वो कहती हैं, ''हमारे समाज में एक लड़की का क्रिकेट खेलना आम बात नहीं थी.लोग सिमरन के लिए तरह-तरह की बातें करते थे. वो हमारे पालन-पोषण के तरीके पर ही सवाल उठाने लगे थे. लेकिन मेरे पति, मैं और उसके भाई-बहन सिमरन के सपने को पूरा करना चाहते थे. वह क्रिकेट खेलना चाहती थी और उसकी मदद करना हमारी जिम्मेदारी थी.''

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सिमरन के पास कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने उसका साथ दिया. उसकी प्रतिभा को सबसे पहले आरसी माहिम स्कूल में उसकी शिक्षिका पुष्पा ने पहचाना. सिमरन की मां कहती हैं, "पुष्पा मैडम ने सुझाव दिया कि हम सिमरन को क्रिकेट पर ध्यान केंद्रित करने दें. उन्होंने कहा कि सिमरन को पढ़ना अच्छा नहीं लगता है, लेकिन वह एक बेहतरीन खिलाड़ी बन सकती है." सिमरन ने कक्षा 10 के बाद पढ़ाई छोड़ दी और पूरी तरह से क्रिकेट पर ध्यान लगा दिया.

पैसे की समस्या भी एक बड़ी बाधा थी, लेकिन यहां भी लोगों ने मदद की. इसे याद करते हुए जाहिद कहते हैं, "एक स्पोर्ट्स शॉप के मालिक ने देखा कि मुझे सिमरन के लिए क्रिकेट किट खरीदने के लिए 1500 रुपये और चाहिए, तो उसने मुझे उतने ही पैसे में किट दे दी, जितने पैसे मेरे पास थे."

धारावीकरों का सफर

सिमरन के परिवार की कहानी धारावी के लाखों निवासियों की ही तरह है. उनके दादा तैयब अली 1965 में उत्तर प्रदेश के गोण्डा जिले से काम की तलाश में बॉम्बे आए थे. उन्होंने धारावी में अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए छोटे-मोटे काम किए. जाहिद को भी अपने परिवार के गुजर-बसर के लिए संघर्ष करना पड़ा.

सिमरन की असाधारण क्रिकेट प्रतिभा से आज पूरे 60 साल बाद परिवार की किस्मत पलटी है. लेकिन यहां कुछ सवाल हैं जो पूछे जाने चाहिए, जैसे- क्या एक परिवार को सफल होने में 60 साल लगने चाहिए? गरीबी या झुग्गी-झोपड़ी में रहने का अभिशाप इतना पीछे क्यों धकेल देता है? सिमरन शेख के परिवार की तीन पीढ़ियां अपने जीवन स्तर को सुधारने में गुजर गईं. क्या यह सही है?

धारावी से WPL तक, सिमरन की यात्रा असाधारण  है. धारावी की गलियां प्रतिभाओं से भरी पड़ी हैं. बिजनेस से लेकर मैन्युफैक्चरिंग, संगीत, नृत्य, क्रिकेट और यहां तक कि अकादमिक क्षेत्र तक- धारावीवालों ने हर क्षेत्र में खुद को साबित किया है. वास्तव में मुंबई समेत भारत के शहरों में हजारों झुग्गी बस्तियां हमें कई सिमरन शेख दे सकती हैं. लेकिन क्या हम उनको सपोर्ट करने की पर्याप्त कोशिश कर रहे हैं?

भारत के करोड़ों झुग्गी-झोपड़ी वालों की देश की तरक्की में समान भागीदारी है. लेकिन अक्सर उन्हें वह सुविधाएं नहीं मिलतीं, जिनके वे हकदार हैं. निश्चित तौर पर यह हमारे लिए चिंता की बात है.

आज मीडिया धारावी में सिमरन शेख के घर पर उमड़ पड़ा है. 15 मिनट के लिए ही सही, धारावी की इस 'छिपी प्रतिभा' का जश्न मनाया जा रहा है. लेकिन जो बेहद जरूरी है वह यह है कि इस सपोर्ट को एक संस्थागत रूप दिया जाए.

जब हमने सिमरन से पूछा कि वह अपने 1.9 करोड़ रुपये का क्या करेंगी, तो उन्होंने बस कहा, ''एक बड़ा घर खरीदना है. परिवार सालों से एक बड़े घर का सपना देख रहा है.'' सिमरन जानती हैं कि उन्होंने लीक तोड़ी है. उन्हें उम्मीद है कि वह धारावी से निकलने वाली कई और क्रिकेटरों में पहली होंगी. वह कहती हैं, ''मैं धारावी की दूसरी लड़कियों को बताना चाहती हूं कि वे कुछ बड़ा हासिल कर सकती हैं. उन्हें अपने सपनों का पीछा करना चाहिए और वो जरूर साकार होंगे.''

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