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This Article is From Jul 19, 2016

केजरीवाल के खिलाफ अपने भाषणों में यह कह चुके हैं सिद्धू, आलोचक साध रहे निशाना...

केजरीवाल के खिलाफ अपने भाषणों में यह कह चुके हैं सिद्धू, आलोचक साध रहे निशाना...
नवजोत सिंह सिद्धू को 'आप' पंजाब से सीएम पद का उम्‍मीदवार बना सकती है।
नई दिल्‍ली: नवजोत सिंह सिद्धू ने अकाली नेताओं के साथ अपनी 'पटरी' नहीं बैठने की बात को कभी नहीं छुपाया। इन अकालियों की ही पंजाब में सरकार है और बीजेपी इसमें सहयोगी के रोल में है। अकाली दल पर जब तब प्रत्‍यक्ष या परोक्ष रूप से खीझ उतारने के बाद 52 वर्षीय सिद्धू ने आखिरकार अपनी पार्टी, बीजेपी से निजात पाने का फैसला कर डाला। वे अब आम आदमी पार्टी (आप) से जुड़ सकते हैं जिसके प्रमुख दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं।

सिद्धू के बीजेपी छोड़ने की अकाली दल की ओर से तल्ख प्रतिक्रिया आई। पंजाब के उप मुख्‍यमंत्री सुखबीर सिंह बादल की पत्‍नी और केंद्रीय मंत्री हर सिमरत कौर ने कहा, कि यह कदम अवसरवादिता का अच्‍छा उदाहरण हैं। उन्‍होंने कहा, 'सिद्धू इससे पहले, केजरीवाल को नाटकबाज बताया करते थे। मुझे समझ में नहीं आया कि उन्‍हें केजरीवाल की कौन सी बात पसंद आ गई हैं। सोमवार को राज्‍यसभा से इस्‍तीफा देने के कदम का जिक्र करते हुए हरसिमरत ने कहा, 'जो अपनी पार्टी, प्रधानमंत्री और अध्‍यक्ष का नहीं किया, आखिर वह देश का किस तरह होगा।'

सिद्धू के इस्‍तीफे के बाद, 'आप' के खिलाफ उनके पुराने भाषण भी सोशल मीडिया पर छाने लगे। ये भाषण उन्‍होंने दिल्‍ली के विधानसभा चुनाव से पहले  दिये थे। एक भाषण में  उन्‍हें यह कहते हुए सुना जा सकता हैं, 'केजरीवाल दोहरी बातें करने वाले व्‍यक्ति हैं। उन्‍होंने सियायत में नहीं खाने की कसम खाई और इसके बाद  आप का गठन किया। उन्‍होंने वीआईपी संस्‍कृति के खिलाफ होने की बात कही और बाद में भारी सुरक्षा कवर को स्‍वीकार किया।'

इस समय भ्रष्‍टाचार से लड़ने वाले नेता के तौर पर 'केजरीवाल ब्रांड' पंजाब में छाया हुआ है। राज्‍य में अगले साल चुनाव होने हैं और आम आदमी पार्टी को यहां बड़ी ताकत के तौर पर देखा जा रहा है। वर्ष 2014 के आम चुनाव में आप ने हर किसी को चौंकाते हुए पंजाब की चार संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी। दूसरी ओर, भ्रष्‍टाचार और युवाओं में बढ़ती ड्रग्‍स की समस्‍या के कारण राज्‍य के लोगों की नाराजगी यहां की अकाली-बीजेपी सरकार से है।

नवजोत लगातार दो बार अमृतसर संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव जुटे। बाद में वर्ष 2014 के आम चुनाव में उन्‍हें अरुण जेटली के लिए अपनी सीट छोड़नी पड़ी। यह भी कहा जाता है कि बादल के दबाव में बीजेपी ने सिद्धू को अमृतसर से नहीं उतारने का फैसला लिया। यह अलग बात है कि जेटली को भी सिद्धू की छोड़ी इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा। क्रिकेटर से राजनेता बने सिद्धू को अप्रैल में ही बीजेपी ने राज्‍यसभा सीट के लिए नामित किया था।

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