हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार को भाजपा की तरफ से "मित्रों की सरकार" बताने पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के प्रधान मीडिया सलाहकार नरेश चौहान ने सवाल किया है कि जो दोस्त संकट के समय आपके साथ खड़े हैं, उनकी मदद करने में क्या बुराई है. भाजपा बार-बार 'मित्रों की सरकार' की बात कर रही है. क्या दुश्मनों को सरकार में जगह दी जानी चाहिए? भाजपा का तंज मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पर है, जिन्होंने कई ऐसे सहयोगियों को कैबिनेट स्तर के पद दिए हैं, जो विधायक भी नहीं हैं.
चौहान के अलावा इस सूची में आईटी और इनोवेशन के लिए मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार गोकुल बुटेल, राजनीतिक सलाहकार सुनील कुमार बिट्टू और हिमाचल प्रदेश राज्य वन विभाग विकास के उपाध्यक्ष केहर सिंह खासी शामिल हैं.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि चौहान मुख्यमंत्री के पुराने सहयोगी हैं. गोकुल बुटेल लंबे समय से कांग्रेसी हैं और उन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता है, जबकि खासी को प्रियंका गांधी वाड्रा का करीबी माना जाता है.
सुक्खू ने चार विधायकों को भी कैबिनेट रैंक दिया है. नगरोटा विधायक आरएस बाली को एचपीटीडीसी का अध्यक्ष बनाया गया, रामपुर विधायक नंद लाल को 7वें राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष, फतेहपुर विधायक भवानी सिंह पठानिया को राज्य योजना आयोग का उपाध्यक्ष और मुख्य सचेतक शाहपुर विधायक केवल सिंह पठानिया को बनाया गया है.
पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर ने दावा किया कि राज्य पर 80,000 करोड़ रुपये का कर्ज है. उन्होंने आरोप लगाया, "इस स्थिति में, क्या यह अच्छा है कि एक मुख्यमंत्री अपने दोस्तों के बीच कैबिनेट रैंक बांटकर वित्तीय बोझ बढ़ा रहा है? राज्य में खनन नीति में संशोधन किया गया ताकि सुक्खू के सहयोगियों को फायदा हो." उन्होंने आरोप लगाया कि इसके अलावा, सरकार ने 2023 की बाढ़ के बाद कई स्टोन क्रशरों के खिलाफ कार्रवाई की, लेकिन कांग्रेस नेताओं के स्वामित्व वाले क्रशरों को अछूता छोड़ दिया गया. उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा ने छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति के खिलाफ याचिका दायर की है.
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