सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से नाराज चल रहे शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) लखनऊ में अपने राजनीतिक दल के नेताओं से मिले हैं. शिवपाल ने अपने समर्थकों से कहा है कि बड़ी लड़ाई के लिए तैयार रहें. सूत्रों की मानें तो इसे देखते हुए शिवपाल और अखिलेश का गठबंधन टूटना निश्चित माना जा रहा है. शिवपाल बुधवार शाम को योगी आदित्यनाथ से भी मिले थे. शिवपाल के बीजेपी में जाने की अटकलें तेज हो गई हैं. शिवपाल ने कहा है कि योगी आदित्यनाथ से उनकी शिष्टाचार भेंट हुई है. वहीं शिवपाल ने बीजेपी में जाने के सवाल पर चुप्पी साध रखी है.
सूत्रों ने बताया कि दोनों के बीच 30 मिनट तक मुलाकात हुई. हालांकि इस दौरान क्या बातचीत हुए, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी है. लेकिन बैठक के समाजवादी पार्टी के खिलाफ चर्चाओं का बाजार गर्म है. अखिलेश यादव के करीबी सूत्रों ने कहा कि चाचा और भतीजे के बीच 24 मार्च को आखिरी बार मुलाकात हुई थी.
सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया, "शिवपाल यादव ने एक बड़ी संगठनात्मक भूमिका के लिए कहा था, लेकिन अखिलेश यादव ने सुझाव दिया था कि शिवपाल सपा के समर्थन से अपनी राजनीतिक पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का विस्तार करें."
शिवपाल यादव ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी बनाई, फिर भी कहा जाता है कि सपा के भीतर उनका काफी दबदबा है. छह बार के विधायक रहे शिवपाल ने इटावा की जसवंत नगर सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन ऐसी अटकलें हैं कि अगर वह भाजपा का साथ देना चाहते हैं तो वह सपा से कम से कम पांच विधायकों को अलग कर सकते हैं. अब 2024 के आम चुनावों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, शिवपाल यादव द्वारा भाजपा की ओर किसी भी झुकाव को अखिलेश यादव के खिलाफ देखा जा सकता है. समाजवादी पार्टी ने 2017 के 47 में से 125 सीटों पर जीत हासिल की थी. अखिलेश यादव ने 2024 के आम चुनाव से पहले राज्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी संसदीय सीट छोड़ दी है.
गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने इस बार खुद को भाजपा के एकमात्र विपक्ष के रूप में स्थापित करने में कामयाबी हासिल की है. समाजवादी पार्टी को चुनाव से पहले उस समय काफी झटका लगा था, जब अखिलेश यादव की भाभी अपर्णा यादव - उनके भाई प्रतीक यादव की पत्नी - ने सपा छोड़ दी थी और भाजपा में शामिल हो गई थी. राज्य भाजपा ने इस मुद्दे को यह दावा करते हुए भुनाने की कोशिश की थी कि मुलायम सिंह यादव अपने दिल से समाजवादी पार्टी के साथ नहीं हैं और उनका आशीर्वाद उनकी बहू की पार्टी के साथ है.
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