सुप्रीम कोर्ट एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि गूगल पिन लोकेशन शेयर करना जमानत की शर्त नहीं हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत की ऐसी कोई शर्त नहीं हो सकती है जिससे पुलिस लगातार आरोपी की गतिविधियों पर नजर रख सके और उसकी निजता में झांक सके. सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एक मामले की सुनवाई के दौरान सुनाया है, जिसमें जमनात की उस शर्त को खारिज कर दिया गया है जिसमें आरोपी को पुलिस के साथ गूगल लोकेशन शेयर करने के लिए कहा गया था.
जस्टिस एएस ओका की बेंच का ये फैसला काफी अहम है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की विभिन्न पीठों के अलावा विभिन्न न्यायालयों ने पहले जमानत की शर्त के रूप में गूगल मैप्स पिन शेयर करना लागू किया है. अप्रैल में एक मामले की सुनवाई के दौरान, पीठ ने इस प्रथा को अस्वीकार कर दिया था. पीठ ने कहा था कि आखिरकार, यह तकनीक है. हम नहीं जानते कि इसका उपयोग कैसे किया जाएगा, लेकिन यह शर्त नहीं लगाई जानी चाहिए. गूगल मैप्स पिन जमानत की शर्त नहीं हो सकते.
पीठ ने 29 अप्रैल को कहा कि लोकेशन पिन का प्राथमिक कार्य नेविगेशन या लोकेशन पहचानना है, जो जमानत शर्तों की प्रभावी रूप से निगरानी नहीं कर सकता है. इसका दुरुपयोग किया जा सकता है. यह निर्णय दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आया जिसमें नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम के तहत एक मामले में आरोपी नाइजीरियाई नागरिक को जमानत दी गई थी.
उच्च न्यायालय ने दो शर्तें रखी थीं: - अभियुक्तों को यह सुनिश्चित करने के लिए गूगल मैप्स पिन डालना होगा कि उनका स्थान जांच अधिकारी को उपलब्ध हो और नाइजीरियाई उच्चायोग को यह आश्वासन देना होगा कि अभियुक्त देश छोड़कर नहीं जाएगा और आवश्यकतानुसार ट्रायल कोर्ट में पेश होगा. जुलाई 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की थी कि गूगल मैप्स पिन शेयर करने की शर्त संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अभियुक्तों के निजता अधिकारों को प्रथम दृष्टया प्रभावित कर सकती है.
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