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This Article is From Jul 25, 2022

आधार-वोटर ID लिंक करने के मामले में कांग्रेस नेता सुरजेवाला की याचिका पर सुनवाई से SC का इंकार

याचिका में कहा है कि वोटर कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करना नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और यह असंवैधानिक है और संविधान के विपरीत है. कांग्रेस का एक तर्क यह भी है कि आधार नागरिकता का नहीं बल्कि निवासी होने का प्रमाण है, जबकि वोटर आईडी कार्ड नागरिकता का अधिकार देता है.

आधार और वोटर आईडी को लिंक करने का मामला....

आधार-वोटर ID लिंक करने का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेसी नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया है और उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट जाने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट पहले ही ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. अगर इसे लेकर अलग- अलग जगह कई याचिकाएं दाखिल होती हैं तो केंद्र ट्रांसफर याचिका दाखिल कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में  दिल्ली हाईकोर्ट के पास भी जाने का कानूनी उपाय मौजूद है. पहले याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाना चाहिए. अदालत ने सुरेजवाला को दिल्ली हाईकोर्ट जाने की छूट दी है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की . कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कानून को चुनौती दी है.

बता दें कि वोटर कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने को लेकर किए गए चुनाव कानून संशोधन अधिनियम के खिलाफ कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुरजेवाला ने कानून के संशोधन को रद्द करने की मांग की है. कोर्ट में दाखिल याचिका में सुरजेवाला ने आधार को वोटर ID से जोड़ने के कानून को निजता के अधिकार का उल्लंघन और संविधान के विपरीत बताया है. साथ ही कहा है कि ये समानता के अधिकार के खिलाफ है. याचिका में कहा है कि वोटर कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करना नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और यह असंवैधानिक है और संविधान के विपरीत है. कांग्रेस का एक तर्क यह भी है कि आधार नागरिकता का नहीं बल्कि निवासी होने का प्रमाण है, जबकि वोटर आईडी कार्ड नागरिकता का अधिकार देता है.

आधार डाटा को इलेक्ट्रॉनिक इलेक्टोरल फोटो पहचान पत्र डाटा के साथ जोड़ने से मतदाताओं का व्यक्तिगत और निजी डाटा एक वैधानिक प्राधिकरण को उपलब्ध होगा और यह मतदाताओं पर एक सीमा लागू करेगा, यानी मतदाताओं को अब अपने संबंधित आधार विवरण प्रस्तुत करके निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी के समक्ष अपनी पहचान स्थापित करनी होगी. याचिका में कहा गया है कि वर्तमान में नागरिकों के डाटा की सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं है, इस तथ्य से स्थिति और गंभीर हो जाएगी. याचिका में दावा किया गया है कि चुनाव कानून में संशोधन मतदाता के प्रोफाइलिंग को भी सक्षम कर सकता है, क्योंकि आधार से जुड़ी सभी जनसांख्यिकीय जानकारी मतदाता पहचान पत्र से जुड़ी होगी. यह सैद्धांतिक रूप से मतदाताओं की पहचान के आधार पर मताधिकार से वंचित करने/धमकाने की संभावना को भी बढ़ा सकता है. याचिका में कहा गया है कि यह मतदाताओं की निगरानी और मतदाताओं के निजी संवेदनशील डाटा के व्यावसायिक शोषण की संभावना को भी बढ़ा सकता है.

वहीं दावा किया गया है कि मौजूदा केंद्र सरकार के चुनाव सुधार कार्यक्रम के तहत निर्वाचन आयोग ने आधार कार्ड को मतदाता पहचान पत्र के जरिए इलेक्टोरल डाटा के साथ जोड़ने का प्रोजेक्ट शुरू किया है. इसका मकसद एक ही व्यक्ति के नाम से कई वोटर आईडी को खत्म करना है. साथ ही चुनावी प्रक्रिया को त्रुटि रहित बनाना है. इसके लिए बने संशोधित कानून के मुताबिक इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर किसी भी व्यक्ति से उसका आधार नंबर मांग सकता है, हालांकि इससे जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि आधार कार्ड या नंबर सिर्फ पहचान है का दस्तावेज है, लेकिन ये नागरिकता का आधार नहीं है.

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