संविधान में निहित मौलिक कर्तव्यों को लागू करने की मांग पर SC ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए दो महीने का समय और दिया

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्यों को लागू करने की मांग वाली याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को दो महीने का और समय दे दिया है. जस्टिस  संजय किशन कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की  बेंच ने केंद्र को दो महीने के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है.

संविधान में निहित मौलिक कर्तव्यों को लागू करने की मांग पर SC ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए दो महीने का समय और दिया

संविधान में निहित मौलिक कर्तव्यों को लागू करने की मांग वाली याचिका पर अब अगली सुनवाई 26 सितंबर को होगी.

नई दिल्ली :

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्यों को लागू करने की मांग वाली याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को दो महीने का और समय दे दिया है. जस्टिस  संजय किशन कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की  बेंच ने केंद्र को दो महीने के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है. सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल (Attorney General) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि विभिन्न विभागों और मंत्रालयों से इनपुट मांगे गए हैं और उनके जवाब का इंतजार है. सुप्रीम कोर्ट ने  मामले में आगे की सुनवाई 26 सितंबर के लिए निश्चित किया है.

21 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने वकील दुर्गा दत्त द्वारा दायर जनहित याचिका (Public Interest Litigation)   पर केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया गया था. इस जनहित याचिका में संविधान में निहित नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को लागू करने की मांग की गई है. अदालत ने लोगों को संवेदनशील बनाने और मौलिक कर्तव्यों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए तब तक उठाए गए कदमों पर सरकार से जवाब मांगा था.

याचिका में कहा गया है कि संविधान ने नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) प्रदान किए हैं, लेकिन नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण और लोकतांत्रिक व्यवहार के कुछ बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है क्योंकि अधिकार और कर्तव्य एक साथ होते हैं. इसमें आगे कहा गया है कि न्यायपालिका सहित कई संस्थानों की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए “मौलिक कर्तव्य” (Fundamental Duty) महत्वपूर्ण उपकरण हैं.

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ऐसे मामले सामने आए हैं जहां कानून के अधिकारियों सहित लोगों द्वारा मौलिक कर्तव्यों का उल्लंघन किया गया है और जिसके परिणामस्वरूप अन्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है.