सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कोविड पीड़ितों (Covid-19) को मुआवजा देने के लिए गाइडलाइन तैयार करने के आदेश दिए हैं. SC ने कहा कि कोविड पीड़ितों को अनुग्रह राशि सहित राहत के न्यूनतम मानक प्रदान करना राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के लिए वैधानिक रूप से अनिवार्य है. अनुग्रह राशि प्रदान न करके NDMA अपने वैधानिक कर्तव्य का निर्वहन करने में विफल रहा है. कोर्ट ने केंद्र को COVID पीड़ितों के परिवारों को मुआवजा देने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा तय किया जाएगा कि पीड़ितों को कितनी राशि दी जाए. 6 हफ्ते में गाइडलाइन तैयार की जाएगी.
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बता दें कि कोविड से हुई मौत पर चार लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत के लिए ये वाजिब नहीं है कि वो सरकार को एक निश्चित राशि का मुआवजा देने के आदेश दे . सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अगर चार लाख रुपये मुआवजा दिया जाता है तो इससे सरकार को आर्थिक दिक्कत हो सकती है. ये प्राधिकरण पर है कि वो इसके लिए मुआवजा तय करे.
NDMA छह हफ्ते के भीतर गाइडलाइन तैयार करे
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि NDMA छह हफ्ते के भीतर गाइडलाइन तैयार करेगा. कोविड पीड़ितों के मृत्यु प्रमाण पत्र पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मृत्यु प्रमाण पत्र में मौत और मृत्यु का कारण होगा. परिवार के संतुष्ट न होने पर मृत्यु के कारण को ठीक करने के लिए तंत्र भी होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोविड से मृत व्यक्ति के परिवारों को अनुग्रह सहायता देना आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 12 के तहत निर्धारित 'राहत के न्यूनतम मानकों' का हिस्सा है.साथ ही ये भी कहा कि हम मुआवजा तय नहीं कर रहे, लेकिन NDMA छह हफ्ते के भीतर प्रत्येक कोविड पीड़ित को भुगतान की जाने वाली अनुग्रह राशि निर्धारित करने का दिशानिर्देश जारी करे. भारत में कोविड महामारी के कारण लगभग 3.9 लाख मौतें हुई हैं, जिसे आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत आपदा घोषित किया गया है.
चार लाख रुपये मुआवजा देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था
21 जून को कोविड से हुई मौत पर चार लाख रुपये मुआवजा देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था . सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से मरने वाले पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा देने के मामले में केंद्र सरकार व पक्षकारों को 3 दिनों के भीतर लिखित दलीलें देने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई नहीं कह सकता कि COVID आपदा नहीं है.
जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि हर आपदा का अलग प्रभाव होता है. कोई बड़ी महामारी या छोटी महामारी हो सकती है. यदि व्यक्ति अधिक प्रभावित होते हैं और महामारी की गंभीरता अधिक होती है तो आप छोटी महामारी के लिए लागू होने वाले मानदंड की मांग नहीं कर सकते. कोरोना ग्लोबल महामारी है. वहीं याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि कानून के अनुसार- केंद्र को एक योजना बनानी होगी. क्या आर्थिक तंगी संवैधानिक दायित्व को रोक सकती है ? यह बाधा संवैधानिक दायित्व को पूरा करने में आड़े नहीं आ सकती. सुप्रीम कोर्ट के ही फैसले हैं कि आर्थिक तंगी राहत ना देने का आधार नहीं हो सकती. केवल नियमित डॉक्टर ही बीमा कवर के दायरे में है, पैरामेडिकल स्टॉफ का क्या होगा.
डीएमए की धारा 12 में जीवन के नुकसान आदि के लिए अनुग्रह राशि का प्रावधान है. आपदाओं को धारा 2 (D) के तहत परिभाषित किया गया है. सरकार खुद कह चुकी है कि कोविड राष्ट्रीय आपदा है. चक्रवात, बाढ़ आवर्ती घटनाएं हैं. दूसरे याचिकाकर्ता ने कहा कि डॉक्टरों के अलावा भी फ्रंटवर्कर हैं. पुलिस बल, श्मशान में काम करने वाले लोग भी हैं, उनका कौन ध्यान रखेगा, हालांकि इस मामले में मुआवजा देने पर केंद्र सरकार ने असहमति जताई है, लेकिन कहा है कि सभी कोविड मौतों के मृत्यु प्रमाणपत्रों में कोविड को मौतों के रूप में प्रमाणित किया जाएगा. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है.
जानें केंद्र ने कोविड पीड़ितों के लिए क्या कहा
केंद्र ने कहा है कि कोविड के पीड़ितों को 4 लाख का मुआवजा नहीं दिया जा सकता है. आपदा प्रबंधन कानून के तहत अनिवार्य मुआवजा केवल प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़ आदि पर ही लागू होता है. एक बीमारी के लिए अनुग्रह राशि देना और दूसरी के लिए इसे अस्वीकार करना अनुचित होगा. सभी COVID पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान राज्यों के वित्तीय सामर्थ्य से बाहर है.COVID के प्रसार और प्रभाव के कारण प्राकृतिक आपदाओं के लिए मुआवजे को लागू करना उचित नहीं होगा. इसे कोरोना महामारी पर लागू नहीं किया जा सकता. केंद्र और राज्य पहले ही टैक्स राजस्व में कमी और स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि के कारण गंभीर वित्तीय दबाव में हैं. अनुग्रह राशि देने के लिए संसाधनों का उपयोग महामारी के खिलाफ कार्यवाही और स्वास्थ्य व्यय को प्रभावित कर सकता है. ये अच्छा करने की बजाए नुकसान का कारण बन सकता है. महामारी के कारण 3,85,000 से अधिक मौतें हुई हैं जिनके और भी बढ़ने की संभावना है.
केंद्र ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले ही कहते हैं कि नीतिगत मामलों को कार्यपालिका पर छोड़ देना चाहिए
और अदालत कार्यपालिका की ओर से निर्णय नहीं ले सकती. COVID पीड़ितों के लिए डेथ सर्टिफिकेट पर केंद्र ने कहा है कि सभी COVID मौतों को मृत्यु प्रमाणपत्रों में COVID मौतों के रूप में प्रमाणित किया जाएगा. कोविड मौतों को प्रमाणित करने में विफल रहने पर प्रमाणित करने वाले डॉक्टरों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी. केंद्र का हलफनामा कोविडपीड़ितों को 4 लाख और कोरोना से मौतों के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के दिशा-निर्देश मांगने वाली याचिका पर दाखिल किया गया है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 24 मई को कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को चार लाख रुपये अनुग्रह राशि दिए जाने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की थी. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मामले को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. दरअसल, कोर्ट ने कोविड-19 से मरने वालों के डेथ सर्टिफिकेट जारी करने के लिए समान नीति की मांग वाली याचिका पर सरकार से सवाल किया कि क्या कोरोना से पीड़ित लोगों के लिए कोई एक समान पॉलिसी है?
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने केंद्र को कोविड-19 से मरने वाले लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के दिशा-निर्देशों की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि इसके लिए समान नीति अपनाई जाए. शीर्ष अदालत दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. इन याचिकाओं में केंद्र और राज्यों को साल 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को चार लाख रुपये अनुग्रह राशि देने और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए समान नीति अपनाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. पीठ ने कहा कि जब तक कोई आधिकारिक दस्तावेज या मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समान नीति नहीं होगी, जिसमें कहा गया हो कि मृत्यु का कारण कोविड था, तब तक मृतक के परिवार वाले किसी भी योजना के तहत, अगर ऐसी कोई है, मुआवजे का दावा नहीं कर पाएंगे
. पीठ ने केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया था.
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