सुप्रीम कोर्ट ने सर्ज इंजनों पर लिंग परीक्षणों के विज्ञापन को कानून का उल्लंघन बताया है (प्रतीकात्क चित्र)
नई दिल्ली:
वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण से संबंधित विज्ञापनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगाने से क्या सूचना प्राप्त करने के अधिकार का हनन होता है? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जानकारी प्राप्त करना, बुद्धिमता और सूचना प्राप्त करना सभी का अधिकार है लेकिन ये भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इससे देश के किसी कानून का उल्लंघन ना होता हो. जबकि सर्च इंजन का कहना था कि ऐसी सूचनाओं पर रोक लगाना, सूचना प्राप्त करने के अधिकार के खिलाफ है.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को लिंग परीक्षण संबंधी जानकारियों को खत्म करने के लिए अंदरुनी एक्सपर्ट कमेटी नियुक्त करने के आदेश दिए थे. कोर्ट ने इन कंपनियों को कहा कि सर्च इंजनों को देश के कानून का सम्मान और पालन करना होगा जो लिंग संबंधी परीक्षण पर रोक लगाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इन सामग्री पर नजर रखने के लिए बनाई नोडल एजेंसी पर मुहर लगाते हुए कहा कि केंद्र एक हफ्ते के भीतर इस नोडल एजेंसी के बारे में प्रचार कर लोगों को जानकारी दे.
पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण पर दिए गए विज्ञापन 36 घंटे में डीलीट करने के आदेश दिए थे. कोर्ट ने केंद्र को ऐसे विज्ञापनों की शिकायत दर्ज करने के लिए नोडल एजेंसी का गठन करने का आदेश भी दिया. यह एजेंसी शिकायतों को सर्च इंजनों को देगी और फिर सर्च इंजन ऐसी सूचनाओं और विज्ञापनों को 36 घंटे में हटाएंगे. सुप्रीम कोर्ट यह भी तय करेगा कि क्या ये बैन 'सूचना के अधिकार' का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे हालात हो गए हैं कि लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैं. लड़का कैसे होगा और लड़की कैसे होगी? ऐसी जानकारी की देश में कोई जरूरत नहीं. हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि वेबसाइट पैसा कमाएं या ना कमाएं, लेकिन ऐसे विज्ञापनों को इजाजत नहीं दी जा सकती जो देश में लिंगानुपात को प्रभावित करें. ये विज्ञापन सीधे-सीधे PNDT एक्ट का उल्लंघन हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रवैए पर भी नाराजगी जताते हुए कहा कि लिंग परीक्षण विज्ञापनों को कानून इजाजत नहीं देता, लेकिन लगता है कि केंद्र की नजर में उन्हें इजाजत है. केंद्र बताए कि इंटरनेट पर मौजूद ऐसे विज्ञापनों पर रोक कैसे लगाएंगे?
केंद्र की ओर से कहा गया कि केंद्र सरकार इसे कानून का उल्लंघन मानती है और अपनी ओर से प्रयास कर रही है. वहीं, कंपनियों की ओर से कहा गया कि ये विज्ञापन हैं और एक्ट के तहत नहीं हैं. देश के लोगों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण संबंधी विज्ञापनों पर रोक लगाने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया था कि याहू और गूगल आदि सर्च इंजनों ने लिंग परीक्षण संबंधी विज्ञापनों को ऑटो ब्लॉक करने की योजना तैयार की है और 22 की-वर्ड भी निकाले हैं.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को लिंग परीक्षण संबंधी जानकारियों को खत्म करने के लिए अंदरुनी एक्सपर्ट कमेटी नियुक्त करने के आदेश दिए थे. कोर्ट ने इन कंपनियों को कहा कि सर्च इंजनों को देश के कानून का सम्मान और पालन करना होगा जो लिंग संबंधी परीक्षण पर रोक लगाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इन सामग्री पर नजर रखने के लिए बनाई नोडल एजेंसी पर मुहर लगाते हुए कहा कि केंद्र एक हफ्ते के भीतर इस नोडल एजेंसी के बारे में प्रचार कर लोगों को जानकारी दे.
पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण पर दिए गए विज्ञापन 36 घंटे में डीलीट करने के आदेश दिए थे. कोर्ट ने केंद्र को ऐसे विज्ञापनों की शिकायत दर्ज करने के लिए नोडल एजेंसी का गठन करने का आदेश भी दिया. यह एजेंसी शिकायतों को सर्च इंजनों को देगी और फिर सर्च इंजन ऐसी सूचनाओं और विज्ञापनों को 36 घंटे में हटाएंगे. सुप्रीम कोर्ट यह भी तय करेगा कि क्या ये बैन 'सूचना के अधिकार' का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे हालात हो गए हैं कि लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैं. लड़का कैसे होगा और लड़की कैसे होगी? ऐसी जानकारी की देश में कोई जरूरत नहीं. हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि वेबसाइट पैसा कमाएं या ना कमाएं, लेकिन ऐसे विज्ञापनों को इजाजत नहीं दी जा सकती जो देश में लिंगानुपात को प्रभावित करें. ये विज्ञापन सीधे-सीधे PNDT एक्ट का उल्लंघन हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रवैए पर भी नाराजगी जताते हुए कहा कि लिंग परीक्षण विज्ञापनों को कानून इजाजत नहीं देता, लेकिन लगता है कि केंद्र की नजर में उन्हें इजाजत है. केंद्र बताए कि इंटरनेट पर मौजूद ऐसे विज्ञापनों पर रोक कैसे लगाएंगे?
केंद्र की ओर से कहा गया कि केंद्र सरकार इसे कानून का उल्लंघन मानती है और अपनी ओर से प्रयास कर रही है. वहीं, कंपनियों की ओर से कहा गया कि ये विज्ञापन हैं और एक्ट के तहत नहीं हैं. देश के लोगों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण संबंधी विज्ञापनों पर रोक लगाने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया था कि याहू और गूगल आदि सर्च इंजनों ने लिंग परीक्षण संबंधी विज्ञापनों को ऑटो ब्लॉक करने की योजना तैयार की है और 22 की-वर्ड भी निकाले हैं.
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