सरकारी संस्थान किस कदर लालफीताशाही और औपचारिकताओं में उलझे हुए हैं, इसका अंदाजा स्टेट बैंक (State bank) के एक किसान को बकाया प्रमाणपत्र जारी करने में बरती गई घोर अमानवीयता के उदाहरण से मिलती है. एसबीआई ने सोमवार को गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court)को सूचित किया कि उसने भूमि की बिक्री से जुड़े मामले में किसान को बकाया नहीं का प्रमाणपत्र जारी कर दिया है. एसबीआई ने महज 31 पैसे की बकाया राशि का भुगतान न करने को लेकर संबंधित व्यक्ति का ‘नो ड्यूज' का प्रमाणपत्र रोक दिया था. बीते हफ्ते हाईकोर्ट ने बकाया नहीं का प्रमाणपत्र (नो ड्यूज़ सर्टिफिकेट) न जारी करने के लिए देश के सबसे बड़े सरकारी कर्जदाता पर नाखुशी जाहिर की थी.
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कोर्ट ने कहा था कि ‘यह कुछ और नहीं, बल्कि उत्पीड़न है. एसबीआई ने सोमवार को कोर्ट के समक्ष दाखिल हलफनामे में कहा कि उसने 28 अप्रैल को संबंधित व्यक्ति को नो ड्यूज प्रमाणपत्र जारी कर दिया है, जो भूमि सौदे को मंजूरी देने के लिए आवश्यक था. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि बकाया नहीं प्रमाणपत्र जारी होने के बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी है. एसबीआई ने कहा कि वह पहले नो ड्यूज प्रमाणपत्र जारी नहीं कर सका था, क्योंकि उसे ऋण लेने वाले मूल व्यक्ति से एक पत्र प्राप्त हुआ था, जिसमें ऐसा न करने को कहा गया था.
याचिकाकर्ता राकेश वर्मा और मनोज वर्मा ने साल 2020 में अहमदाबाद शहर के पास खोराज गांव में किसान शामजीभाई और उनके परिवार से जमीन का एक टुकड़ा खरीदा था. चूंकि, शामजीभाई ने एसबीआई से लिए गए तीन लाख रुपये के फसल ऋण को चुकाने से पहले याचिकाकर्ताओं को जमीन बेच दी थी, इसलिए याचिकाकर्ता (जो जमीन के नए मालिक हैं) बैंक की आपत्ति के कारण राजस्व रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज नहीं करा पा रहे थे.
हालांकि, बाद में किसान ने बैंक को पूरी राशि चुका दी. एसबीआई ने नो ड्यूज सर्टिफिकेट जारी नहीं किया, जिसके चलते नए मालिकों ने दो साल पहले कोर्ट का रुख किया. पिछले सप्ताह सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बैंक को अदालत में नो ड्यूज सौंपने को कहा. इस पर एसबीआई के वकील आनंद गोगिया ने कहा कि 31 पैसे बकाया होने की वजह से ऐसा संभव नहीं है.
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