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सड़क पर उतरते ही, लगता है डर...भारत में हर घंटे 20 मौतें, आखिर क्यों नहीं रुक पा रहीं दुर्घटनाएं

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में ग़ैर इरादतन चोटों से मौत के लिए सड़क दुर्घटनाएं सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं. क़रीब 43.7% लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इसके बाद दूसरा स्थान डूबने से हुई मौतों का आता है जो 7.3 से लेकर 9.1% तक है. इसके बाद जलने से 6.8% लोगों की मौत होती है.

सड़क पर उतरते ही, लगता है डर...भारत में हर घंटे 20 मौतें, आखिर क्यों नहीं रुक पा रहीं दुर्घटनाएं
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में ग़ैर इरादतन चोटों से मौत के लिए सड़क दुर्घटनाएं सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार.

घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही, सड़क पर उतरते ही, लगता है डर... कम ही लोग होंगे जिन्हें सड़कों पर उतरते वक़्त ये अहसास नहीं होता होगा. ऐसा इसलिए कि भारत में सड़कों पर हर घंटे 20 लोगों की जान जा रही है. इसी का नतीजा है कि सड़कों पर उतरते ही या गाड़ी लेकर निकलते ही ये डर सा बना रहता है कि कहीं कोई गाड़ी मार न दे, आपसे या आपकी गाड़ी से टकरा न जाए. हर व्यक्ति अपनी ओर से तो आश्वस्त रहता है कि वो गड़बड़ नहीं कर रहा लेकिन दूसरों को लेकर ये आश्वासन आसानी से नहीं आता. वैसे सड़क पर उतरने से पहले दाएं और बाएं तो देखना ही चाहिए, अपनी रफ़्तार पर भी लगाम रखनी चाहिए.

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इसे लेकर जागरूक करने वाली मुहिम कम नहीं चलतीं. यहां तक कि सड़कों पर यमराज और चित्रगुप्त को भी कई बार उतरना पड़ता है. ये बताने के लिए कि टू व्हीलर हो या फोर व्हीलर, गाड़ी ठीक से चलाएं, बेल्ट पहनें, हेलमेट लगाएं, गाड़ी की रफ़्तार पर काबू रखें वर्ना यमराज के साथ जाना पड़ सकता है. लोगों को जागरूक करने के लिए अब इससे ज़्यादा क्या किया जा सकता है कि ख़ुद मृत्यु के देवता यमराज को सड़कों पर उतरना पड़े.  कई बार राज्यों के पुलिस महकमे जागरूकता की ऐसी नायाब मुहिमों को बढ़ावा देते हैं तो कई बार अलग-अलग स्वयंसेवी संस्थाएं इसके लिए आगे आती हैं.

रविवार को दिल्ली से लगे उत्तरप्रदेश के नोएडा के सेक्टर 94 में एक तेज़ रफ़्तार लैंबोर्गिनी गाड़ी ने तीन मज़दूरों को टक्कर मारकर घायल कर दिया. इस लैंबोर्गिनी गाड़ी को अजमेर का रहने वाला दीपक नाम का एक शख़्स चला रहा था जो एक कार डीलर है और उसकी दलील है कि वो गाड़ी की टेस्ट ड्राइव ले रहा था. उसे गिरफ़्तार कर कोर्ट में पेश किया गया. जानकारी के मुताबिक ये गाड़ी मृदुल नाम के एक यू ट्यूबर की है जिसने गाड़ी एक शोरूम के ज़रिए दीपक को बेची थी लेकिन गाड़ी के काग़ज़ अभी दीपक के नाम पर ट्रांसफ़र नहीं हुए थे. आरोपी का कहना है कि गाड़ी में किसी तकनीकी ख़राबी के कारण हादसा हो गया. उधर पीड़ित मज़दूरों का कहना है कि गाड़ी की रफ़्तार बहुत ही ज़्यादा थी और वो ड्राइवर के काबू में नहीं थी. जो भी हो मामले की जांच चल रही है.

क़रीब 36 घंटे पहले हुई इस घटना के बाद से अब तक देश भर में ऐसी 1500 से ज़्यादा सड़क दुर्घटनाएं हो चुकी होंगी जिनमें क़रीब 500 लोग जान गंवा चुके होंगे. लेकिन बड़ा देश होने के कारण ये घटनाएं बिखरी हुई होती हैं इसलिए इनकी गंभीरता का आसानी से अंदाज़ा नहीं होता. लेकिन जब आंकड़े जुटाए जाते हैं तो पता चलता है कि जितने लोग दुनिया भर में तमाम युद्धों या आतंकी घटनाओं में नहीं मारे जाते उससे कहीं ज़्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में दम तोड़ देते हैं. और उनमें सबसे ऊपर भारत का स्थान है.

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  1. इस सिलसिले में ड्राइवर एज्युकेशन से जुड़ी एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी Zutobi ने अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की है.
  2. रिपोर्ट में ड्राइविंग के लिए सबसे बेहतर और सबसे ख़तरनाक देशों की लिस्ट तैयार की गई है.
  3. 53 देशों का सर्वे किया गया और इनमें ड्राइविंग के लिए सबसे ख़तरनाक देश के तौर पर भारत 49वें स्थान पर है. यानी पीछे से पांचवें स्थान पर.
  4. ड्राइविंग के लिहाज़ से सबसे ख़तरनाक देश दक्षिण अफ्रीका पाया गया है जो लगातार दूसरे साल सबसे ख़तरनाक माना गया है. अमेरिका इस मामले में भारत से भी ख़राब स्थिति में है.
  5. अमेरिका को 53 देशों में 51वां स्थान मिला है. यानी वहां की सड़कों पर भी ड्राइविंग सबसे ख़तरनाक मानी गई है.
  6. ड्राइविंग के लिहाज़ से सबसे ख़तरनाक पांच देशों में बाकी दो देश हैं थाइलैंड और अर्जेंटीना.
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Zutobi.com के मुताबिक ड्राइविंग के लिहाज से सबसे सुरक्षित देश नॉर्वे है जो लगातार चौथे साल पहले पायदान पर है. इसके बाद हंगरी, आइसलैंड, जापाना और एस्टोनिया गाड़ी चलाने के लिहाज़ से पहले पांच सबसे सुरक्षित देशों में शामिल हैं. Zutobi.com ने कई मानकों के आधार पर ये लिस्ट तैयार की है. इनमें सड़कों पर स्पीड लिमिट, ड्राइवरों के लिए ब्लड अल्कोहल कंसंट्रेशन लिमिट, सीट बेल्ट पहनने की दर और सड़कों पर मौत की दरों को शामिल किया गया है.

हालांकि कई जानकार मानते हैं कि ड्राइविंग के लिहाज़ से सबसे ख़तरनाक देश भारत ही है. Zutobi.com का सर्वे भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि भारत में सड़कों पर चलना काफ़ी ख़तरनाक है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं.

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में ग़ैर इरादतन चोटों से मौत के लिए सड़क दुर्घटनाएं सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं. क़रीब 43.7% लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इसके बाद दूसरा स्थान डूबने से हुई मौतों का आता है जो 7.3 से लेकर 9.1% तक है. इसके बाद जलने से 6.8% लोगों की मौत होती है. ज़हर से 5.6% की मौत होती है और 4.2 से लेकर 5.5% तक लोग गिरने से जान गंवाते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने National Strategy for prevention of unintentional injury नाम से ये रिपोर्ट तैयार की जो पिछले साल सितंबर में चोट से बचाव और सुरक्षा को बढ़ावा के मुद्दे पर 15वीं विश्व कॉन्फ्रेंस में पेश की गई. रिपोर्ट के मुताबिक सड़कों पर मौत के मामले में 75.2% मौत ओवर स्पीडिंग के कारण होती हैं. 5.8% ग़लत दिशा में गाड़ी चलाने से और 2.5% मौत शराब या ड्रग्स के नशे में गाड़ी चलाने से.

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नेशनल हाइवे जो पूरे देश में सड़कों के नेटवर्क का महज़ 2.1% है, उसमें सड़क दुर्घटनाएं सबसे ज़्यादा होती हैं. साल 2022 में नेशनल हाइवे पर प्रति 100 किलोमीटर पर 45 जानें सड़क दुर्घटनाओं में गईं. अगर सड़क हादसों में दुनिया के मुक़ाबले भारत की स्थिति देखें तो समझ में आता है कि भारत में हालात कितने गंभीर हैंय वर्ल्ड बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में दुनिया के कुल वाहनों के महज़ 1% वाहन हैं. लेकिन दुनिया की कुल सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौत की 11% मौत भारत में होती हैं.

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भारत में हर साल सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय सड़क दुर्घटनाओं पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है लेकिन 2023 की रिपोर्ट अभी प्रकाशित होनी बाकी है. लेकिन इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बीते साल 30 नवंबर को लखनऊ में सड़क सुरक्षा पर एक कार्यक्रम में बताया कि 2023 में 4 लाख 80 हज़ार से ज़्यादा सड़क दुर्घटनाएं हुईं. जिनमें 1 लाख 72 हज़ार लोगों की मौत हुईं. 2022 में 4.61 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुई थीं. जिनमें 1 लाख 68 हज़ार लोगों ने जान गंवाईं.  2022 के मुक़ाबले 2023 में दुर्घटनाओं की तादाद 4.2% बढ़ीं और मौत 2.6% बढ़ीं.
2023 में भारत में हर रोज़ औसतन 1317 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, 474 लोग हर रोज़ मारे गए. हर घंटे 55 दुर्घटनाएं  और 20 मौतें.यानी हर तीन मिनट पर एक मौत.

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स्कूल कॉलेजों के आसपास 35 हज़ार दुर्घटनाएं हुईं और 10 हज़ार मौत हुईं. सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाने वालों में क़रीब 10 हज़ार नाबालिग़ थे. मरने वालों में 35 हज़ार पैदल चलने वाले थे. मरने वालों में 54 हज़ार लोग ऐसे थे जिन्होंने हेलमेट नहीं पहने थे. मृतकों में 16 हज़ार लोग ऐसे थे जिन्होंने सीट बेल्ट नहीं पहनी थीं. 12 हज़ार मौतें ओवरलोडेड गाड़ियों के कारण हुईं. वैध ड्राइविंग लाइसेंस के बिना गाड़ी चलाने वालों ने 34 हज़ार ऐक्सीडेंट किए. बाकी मौत पुरानी गाड़ियों, पुरानी टैक्नोलॉजी जैसे ब्रेक न लगा पाने के कारण हुईं. सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक 2024 में तो सड़क हादसों में मौतों की तादाद बढ़कर एक लाख 80 हज़ार हो चुकी है.

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भारत में अगर राज्यों की बात करें तो सबसे ज़्यादा सड़क दुर्घटनाएं और उनमें मौत के मामले में उत्तरप्रदेश सबसे आगे है. 2022 में उत्तरप्रदेश में 22,595 मौतें हुईं, इसके बाद तमिलनाडु में 17,884 मौतें हुईं और फिर महाराष्ट्र में 15,224 मौतें.
अगर राज्यों में प्रति 100 दुर्घटनाओं मौत का आंकड़ा देखें तो इस मामले में मिज़ोरम सबसे ख़तरनाक स्थिति में है जहां 2022 में प्रति 100 सड़क हादसों पर 85 मौतें हुईं..इसके बाद बिहार में प्रति 100 सड़क हादसों में 82.4 मौतें हुईं. तीसरा स्थान पंजाब का है जहां प्रति 100 सड़क हादसों में 77.5 मौत हुईं.चौथे स्थान पर झारखंड है जहां प्रति 100 सड़क हादसों में 75.3 मौत हुईं

देश की जीडीपी को क़रीब 3% का नुक़सान

ये तमाम आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में सड़क हादसों को लेकर अब भी बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है. कहां तो 2024 तक सड़क हादसों को आधे करने की बात हो रही थी लेकिन घटने के बजाय सड़क हादसे बढ़े ही हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है लोगों का व्यवहार. नियमों का पालन न करना.हालांकि सड़कों पर गड्ढे, इंजीनियरिंग में खामी भी बड़े कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है ओवरस्पीडिंग. बिना सीट बेल्ट या हेलमेट गाड़ी चलाना. नियमों को खुलेआम तोड़ना. सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक सड़क दुर्घटनाओं के कारण देश की जीडीपी को क़रीब 3% का नुक़सान होता है.

सड़क हादसों का एक और पहलू ये होता है कि इनमें परिवार के कमाने वालों के मारे जाने से पीछे पूरा परिवार बुरी तरह प्रभावित होता है. साल 2022 में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों में 80% 45 साल से कम उम्र के थे. इसका मतलब ये भी है कि उनमें से अधिकतर अपने परिवार में कमाने वाले थे. अगर एक परिवार में चार लोगों को माने तों इसका मतलब ये हैकि 6.8 लाख सीधे-सीधे इससे प्रभावित हुए. इलाज में होने वाला आर्थिक नुक़सान, इंश्योरेंस के दावे, गाड़ियों को नुक़सान, प्रशासनिक खर्चे जोड़ दिए जाएं तो ये हादसे और ज़्यादा भयानक साबित होते हैं और उससे भी ज़्यादा दुर्घटनाओं से मानसिक सेहत पर पड़ने वाला असर, घर में कमाने वाले की मौत का दुख़.

एक्सप्रेसवे और हाइवे पर गाड़ी चलाना होगा महंगा

सड़कों की बात हो रही है तो एक ज़रूरी अपडेट आपको बता दें. देश के एक्सप्रेसवे और हाइवे पर 1 अप्रैल से गाड़ी चलाना अब महंगा हो जाएगा. नेशनल हाइवेज़ अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया 31 मार्च की आधी रात से टोल टैक्स बढ़ाने के फ़ैसले पर अमल कर रहा है. एक साल के अंदर दूसरी बार टोल टैक्स के रेट बढ़ाए गए हैं. इससे पहले जून 2024 में टोल टैक्स महंगा किया गया था. इसका सीधा मतलब है कि अब आपको अपने फास्टैग को ज़्यादा रिचार्ज कराना होगा. हल्के वाहनों के मुक़ाबले भारी वाहनों के टोल टैक्स में इज़ाफ़ा ज़्यादा किया गया है. टोल टैक्स से मिलने वाले पैसे का इस्तेमाल देश में हाइवे और एक्सप्रेसवे को तैयार करने में किया जाता है. लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि टोल टैक्स लगाए जाने के बाद से आज तक क़रीब 2 लाख 40 हज़ार करोड़ रुपए टोल टैक्स के तौर पर जुटाए गए हैं. सबसे ज़्यादा 32,510 करोड़ रुपए उत्तर प्रदेश के अलग-अलग टोल प्लाज़ा से जमा किए गए. 98% टोल फास्टैग के ज़रिए इकट्ठा किया गया.

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