एक ऐसा रेजिमेंट जिसके एक सैनिक को सवा लाख के बराबर माना जाता है. 26 जनवरी के परेड की चर्चा, सिख रेजिमेंट के जिक्र के बिना अधूरी रहेगी. ऐसे जवान जिनके रग रग में बहादुरी है जिसका लोहा अंग्रेज से लेकर पूरी दुनिया मानती आ रही है. सिख रेजिमेंट का इतिहास भव्य और गौरवशाली है. सिख रेजिमेंट की शुरुआत 1846 में महाराज रणजीत सिंह के सिपाहियों से हुई. उसके बाद कई युद्ध में इस रेजिमेंट ने अदभुत शौर्य का परिचय दिया. 1885 का टोफ्रेक का युद्ध हो या फिर 1897 की सारागढ़ी की जंग, इस रेजिमेंट के बहादुरों की बहादुरी के किस्से आज तक सभी के जुबान पर हैं.
इस रेजिमेंट को 14 विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया
सारागढ़ी में तो 21 जांबाज सैनिकों ने 10 हज़ार अफगान सैनिकों का मुकाबला किया था. इसके बाद पहले और दूसरे विश्व युद्ध में भी सिख सैनिकों का जलवा याद किया जाता है. इस रेजिमेंट को 14 विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया. आजादी के बाद भी सिख रेजिमेंट ने तमाम युद्धों में हिस्सा लिया. 1962 की जंग में सूबेदार जोगिंदर सिंह को परमवीर चक्र मिला. जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल का जयकारा सिख रेजिमेंट की पहचान है.
इस रेजिमेंट को मिला था टाइगर हिल बैटल ऑफ ऑनर
इसका रेजिमेंट सेंटर रामगढ़ में है. यह एक इन्फैंट्री रेजिमेंट है. इसमें केवल जाट सिख समुदाय से ही सैनिक भर्ती हो सकते हैं. हालांकि अफसर हरेक समुदाय और पूरे देश से इस रेजिमेंट में शामिल होते हैं. यह सेना की धर्म निरपेक्ष और सभी को साथ लेकर चलने की परंपरा को भी दिखाता है.
देश की सुरक्षा में बड़ा है योगदान
इस रेजिमेंट को जितने सम्मान मिले हैं उतने किसी और को नहीं मिला है. खेलों में भी इस रेजिमेंट ने देश का गौरव बढ़ाया है. अंतर्राष्ट्रीय खेलों में इसे 55 स्वर्ण, 26 रजत और 20 कांस्य पदक मिले हैं. मौजूदा समय में इस रेजिमेंट में 21 बटालियने है.देश की सुरक्षा में सिख रेजिमेंट का योगदान काफी बड़ा है. इसका मोटो है निश्चय कर अपनी जीत करूं जो दिखाता है इनकी फ़ौलादी इच्छा शक्ति और हर हाल में जीत हासिल करने का जुनून.
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