रैकिंग की राजनीति पर बात ज़रूरी है .भारत का रैंक अच्छा हो, यह सब चाहते हैं मगर रैंक अच्छा बताने के लिए भ्रामक तरीकों का सहारा लिया जाए, यह कोई नहीं चाहेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के जामनगर में कह दिया कि उनकी सरकार के समय ईज़ ऑफ डुइंग बिज़नेस में भारत 142 नंबर से 63 वें नंबर पर आ गया.यानी तरक्की कर गया. प्रधानमंत्री ने गुजरात की जनता को यह नहीं बताया कि विश्व बैंक ने ईज़ आफ़ डुइंग बिज़नेस की रैकिंग बंद कर दी है. हुआ यह था कि 2018 और 2020 के इसके डेटा में कई तरह की धांधलियां पकड़ी गई थीं.अब जब इज़ ऑफ डुइंग बिज़नेस बंद है, पहले के तीन साल की रैकिंग का डेटा ही गड़बड़ है तब क्या प्रधानमंत्री को विश्व बैंक की इस रैकिंग का ज़िक्र करना चाहिए था? आखिर इसकी क्या मजबूरी है कि जो रैंकिंग संदिग्ध है, उसमें धांधली हो चुकी है, बंद की जा चुकी है, उसका हवाला प्रधानमंत्री जामनगर की जनता को क्यों दे रहे हैं, यह ख़बर न जाने कितनी जगह छपी होगी, परीक्षाओं में पूछा जाता होगा, लोग रटते होंगे, इस तरह से एक आधारहीन तथ्य, तथ्य बन कर पब्लिक स्पेस में जगह बना लेता है।
ईज ओफ डुईंग में कायदे में रहकर नियम बदले जिसके कारण दुनियाभर में जो अपनी रैंकिंग थी ना उसमें जबरदस्त उछाल आया. पहले जब में 2014 में आया, प्रधानमंत्री के रूप में आपने सेवा करने भेजा, तब भारत 142 क्रमांक पर था, पांच-छ वर्ष मेहनत करके अभी हम दौड़ते-दौड़ते 63वें नंबर पर पहुंच गये हैऔर अभी भी जोर लगायेंगे तो 50 से नीचे भी जा सकते है भाई. आखिरी पंक्ति में प्रधानमंत्री कहते हैं कि अभी हम और ज़्यादा ज़ोर लगाएंगे तो भारत की रैकिंग 50 के नीचे पहुंच जाएगी जबकि यह रैकिंग तो बंद कर दी गई है. क्या प्रधानमंत्री ने कुपोषण को लेकर कहा कि और ज़ोर लगाएंगे तो हमारी रैकिंग ठीक हो जाएगी? क्यों इस तरह के बयान दिए जाते हैं? जब सरकार को अच्छा लगता है तो वह इन्हीं संस्थाओं की रैकिंग को गले लगा लेती है और जब उनकी बात पसंद नहीं आती है तो उसे खारिज भी कर देती है।
इसी तरह भारत के पासपोर्ट के वैल्यू को लेकर तरह तरह के बयान आ जाते हैं. पिछले साल अमित शाह का बयान है कि प्रधानमंत्री ने विदेशों में भारतीय पासपोर्ट का वैल्यू बढ़ा दिया है. भारत का पासपोर्ट देखते ही किसी भी दूसरे देश के अधिकारी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है कि आप मोदी के देश के हैं. ये उनके बोल हैं.जबकि पासपोर्ट के वैल्यू का संबंध इस बात से होता है कि कितने देश भारत को वीज़ा के झंझट से मुक्ति देते हैं.आप केवल पासपोर्ट के आधार पर उन देशों की यात्राएं कर सकते हैं।
The Henley Passport Index ही इसकी सूची तैयार करता है कि किस देश के पासपोर्ट से आप बिना वीज़ा के दूसरे देश में यात्रा कर सकते हैं. जापान पहले नंबर पर है. जापान के नागरिक को 193 देशों में जाने के लिए वीज़ा की ज़रूरत नहीं पड़ती है. 2022 में भारत 87 वें स्थान पर था. क्योंकि 60 देश थे जो भारत के पासपोर्ट पर बिना वीज़ा के प्रवेश देते थे.2013 में 52 देश दिया करते थे. मनमोहन सिंह के आठ साल के कार्यकाल में भारत ने 27 ऐसे देशों को जोड़ा गया जहां आप बिना वीज़ा के जा सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकाल में आठ देशों को जोड़ा जहां आप बिना वीज़ा के जा सकते हैं. एक जानकारी और है. मनमोहन सिंह के समय भारत ने 27 देश तो जोड़े गए लेकिन पासपोर्ट के वैल्यू के मामले में 3 अंकों की गिरावट आ गई. प्रधानमंत्री मोदी के समय में आठ देशों को जोड़ा गया, तब भी भारत की रैकिंग 11 point गिर गई.76 से गिर कर 87 पर आ गया.ऐसा इसलिए हुआ कि दूसरे देश आगे निकल गए।
इसके बाद भी हमारे नेता पासपोर्ट के वैल्यू को लेकर भ्रामक बयान देते रहते हैं.पिछले साल 14 अक्तूबर को गृह मंत्री अमित शाह ने बयान दिया कि प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के पासपोर्ट का वैल्यू बढ़ा दिया है.दूसरे देश के अधिकारी भारत का पासपोर्ट देखते ही मुस्कुरा देते हैं कि मोदी के देश से आए हैं.इस साल पीयूष गोयल का एक बयान है.वे अपने बयान में एक सावधानी बरतते हैं.कहते हैं कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने बताया है कि भारत के पासपोर्ट का वैल्यू बढ़ गया है.पीयूष गोयल मंत्री हैं, उन्हें सरकार की तरफ से जानकारी देनी चाहिए न कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों के सहारे बयान देना चाहिए था।
राजीव प्रताप रूडी तो बीजेपी के ही सांसद हैं.उन्हीं का लोकसभा में पूछा गया एक प्रश्न है.फऱवरी 2021 में भाजपा सांसद रुडी ने सवाल किया कि क्या हेनले ग्लोबल पासपोर्ट इंडेक्स में भारत की रैकिंग गिर गई है? इस प्रश्न के जवाब में मंत्री सीधे जवाब नहीं देते हैं.सवाल सिम्पल है कि क्या हेनले ग्लोबल पासपोर्ट इंडेक्स में भारत की रैकिंग गिर गई है? देखिए जवाब क्या और किस तरह से दिया जाता है? विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरण का जवाब है.
वेबसाइट www.henleypassportindex.com पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार हेनली पासपोर्ट इंडेक्स, विश्व के सभी पासपोर्टों को उनके धारकों द्वारा उन देशों की संख्या के आधार पर जहां वे बिना वीजा यात्रा कर सकते हैं, उसके अनुसार रैंक प्रदान करता है.यह रैंकिंग इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के विशिष्ट आंकड़ों पर आधारित है और उन देशों को सूचीबद्घ करती है जहां बिना वीजा, इलेक्ट्रॅानिक वीजा (ई-टीए) या आगमन पर वीजा के साथ पहुंचा जा सकता है.वर्ष 2021 की प्रथम तिमाही के लिए इस वेबसाइट पर उपलब्ध हेनली पोसपोर्ट इंडेक्स के अनुसार भारत का रैंक 85 है.
भारत सरकार भी हेलने पासपोर्ट इंडेक्स को मान्यता देती है.कोई भी इसकी वेबसाइट पर जाकर देख सकता है तब फिर भाजपा सांसद ने जो सवाल पूछा था उसका सरल और सीधे सीधे जवाब दिया जा सकता है कि भारत की रैकिंग गिरी है या नहीं.तो इसकी जगह बताया गया है कि रैकिंग कैसे होती है.इस जवाब में विदेश राज्य मंत्री कहते हैं कि अभी केवल 16 देश हैं जो भारतीय नागरिकों को वीज़ा फ्री एंट्री देते हैं और 43 देश हैं जो वहां पहुंचने के बाद वीज़ा देते हैं.यह जवाब पिछले साल फरवरी का है।इस जवाब में एक जानकारी और है कि कोई देश जब किसी देश के नागरिक को बिना वीज़ा के आने की इजाज़त देता है तो यह उसका अपना और एकतरफा फैसला होता है.भारत की रैकिंग बढ़ जाए अच्छी बात है लेकिन क्या इतनी तरक्की हुई है कि इसे बढ़ चढ़ कर बताया जाता है? तो आपने इज़ आफ डुइंग बिज़नेस और पासपोर्ट की रैकिंग का हाल देख लिया.अब अगर इतने विस्तार से नहीं बताया जाए तो पता ही नहीं चलेगा कि आप जनता के साथ क्या खेल हुआ है।
यह मिनोसेटा का वीडियो है, अक्टूबर का महीना वहां फॉल का होता है जब पेड़ों के पत्ते रंग बदल लेते हैं.अमरीका और कनाडा के पेड़ इतने रंगीन और खूबसूरत हो जाते हैं कि केवल इन्हीं को निहारने आप इन देशों की यात्रा कर सकते हैं.लेकिन अमरीका जाने के लिए जब आप वीज़ा बनाने जाएंगे तो इस साल की नहीं, अगले साल की नहीं बल्कि 2024 की तारीख मिलेगी.जिसे अप्वाइंटमेंट कहते हैं जब वीज़ा अधिकारी आपसे मिलता है और तय करता है कि आपको वीज़ा दिया जाए कि नहीं.दो दो साल की वेटिंग है, भारतीय बड़ी संख्या में अमरीका जाते हैं, जब वहीं जाने के लिए वीज़ा की इतनी मारामारी है तब क्यों बार बार पासपोर्ट के वैल्यू को लेकर भ्रामक ढिंढोरा पीटा जाता है.हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी अमरीका दौरे पर वीज़ा मिलने की देरी को लेकर मुद्दा उठाया था.जवाब में अमरीका ने कहा कि कोविड के कारण यह देरी हुई है और कई देशों के नागरिकों को वीज़ा मिलने में देरी हो रही है।
मीडिया में रिपोर्ट छपी है कि अगर कोई भारतीय अमरीका का वीज़ा चाहता है तो उसे दो साल तक इंतज़ार करना पड़ेगा और अगर चीन का नागरिक चाहता है तो दो दिन में वीज़ा मिल जाता है.29 सिंतबर के लाइव मिंट में खबर भी छपी है।
इसमें लिखा है कि अमरीकी विदेश विभाग की वेबसाइट के अनुसार अगर दिल्ली में आप अमरीका के लिए वीज़ा का आवेदन करते हैं तो 833 दिनों तक का इंतज़ार झेलना होगा, मुंबई से करते हैं तो यह इंतज़ार 848 दिनों का होगा.बीजिंग से करते हैं तो मात्र दो दिन.उसी तरह कोई छात्र कनाडा के वीज़ा के लिए आवेदन करता है तो 13 हफ्ते तक इंतज़ार करना पड़ रहा है.लेकिन चीन का कोई छात्र कनाडा के वीज़ा के लिए आवेदन करता है तो मात्र 51 दिनों में मिल जाता है।
जब यह खबर आई थी तब अमरीका ने अपनी तरफ से सफाई भी दी थी कि ऐसा क्यों है.उन्होंने कहा था कि लंबे इंतज़ार को लेकर चिन्ता जताई गई है लेकिन अब इसमें सुधार किया जा रहा है.हो भी रहा है.कोविड के कारण दूतावासो के कर्मचारियों की संख्या आधी रह गई थी.अगले साल से कर्मचारियों की संख्या फिर से शत प्रतिशत हो जाएगी.इसका मतलब तो यही हुआ कि इंतज़ार अभी लंबा रहेगा.फिर चीन के नागरिक को वीज़ा दो दिन में मिल रहा है और भारत के नागरिक को दो साल में।
रैकिंग राजनीति का हिस्सा बन चुका है.पिछले साल बीजेपी ने यह पोस्टर अपने ट्विटर हैंडल से जारी किया था.16 सितंबर 2021 में विश्व बैंक ने इज़ आफ डुइंग बिज़नेस की रैकिंग बंद कर दी थी उसके एक महीने बाद भी बीजेपी अपने पोस्टर में इसे शामिल करती है.इसके अलावावैश्विक प्रतिस्पर्धा सूचकांक, वैश्विक अन्वेषण सूचकांक, पर्यटन प्रतिस्पर्धा सूचकांक.जहां कुछ सुधार होता है बीजेपी उसे चुन लेती है लेकिन जहां गिरावट दिखती है उसे छोड़ देती है.अगर रैकिंग की राजनीति ही करनी है तो फिर इसमें दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर, कुपोषण, ग़रीबी, भूखमरी से लेकर प्रेस की स्वतंत्रता की रैकिंग का भी ज़िक्र किया जा सकता था.ये सारे मुद्दे आबादी के बड़े हिस्से से संबंध रखते हैं, इनमें खराब रैकिंग आती है तब सरकार संज्ञान भी ठीक से नहीं लेती है.
भ्रम का जाल इतना गहरा है कि कई बार यह काम बोझिल हो जाता है.क्योंकि गलती एक बार होती है, जब बार बार यह फैलाया जाता रहेगा तो आप कितना और कब तक करेंगे.इसका तरीका यही है कि जितनी बार भ्रम फैले, उतनी बार तथ्य बताना ही चाहिए।
राव इंद्रजीत सिंह का एक जवाब है. इसी जुलाई का है जो राज्य सभा में दिया गया है. इस जवाब में भी मंत्री उन रैकिंग की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हैं जिसमें सरकार का प्रदर्शन ठीक नहीं है. जिसमें रैकिंग ठीक है उसे लेकर सवाल नहीं उठाया जाता है. राव इंद्रजीत सिंह सांख्यिकी मामलों के मंत्री हैं।
-मानव विकास सूचकांक में भारत 2017 में 130 वें नंबर पर था, 2019 में 131 वें नंबर पर आ गया.
-ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 2017 में 119 देशों में 100 नंबर पर था, 2021 में 101 नंबर पर आ गया.
- भ्रष्टाचार की धारणा के सूचकांक के मामले में 2017 में भारत 180 देशों में 81 वें नंबर पर था, 2021 में 85 वें नंबर पर आ गया.
-लैंगिक असमानता रिपोर्ट में 2017 में भारत में 144 देशों में 108 वें नंबर पर था, 2022 में 135 वें नबर पर आ गया.
-विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 2018 में 180 देशों में 138 वें स्थान पर था, 2022 में 150 वें स्थान पर आ गया.
हर जवाब में एक बात आप नोट करेंगे, हर सूचकांक में बेहतर बताने के लिए अलग अलग साल का सहारा लिया जाता है.किसी में 2017 है तो किसी में 2018.और जिस रैकिंग में सुधार है वो भी बहुत मामूली है लेकिन गिरावट ज़्यादा है.अब भारत सरकार प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक को भी स्वीकार नहीं करती है.उसकी प्रक्रिया से मतभेद रखती है.इसी तरह जब 2021 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी होता है और भूखमरी की हालत में 116 देशों में भारत को 101 वां स्थान प्राप्त होता है तो 15 October 2021 के दिन PIB के द्वारा महिला व बाल कल्याण मंत्रालय बयान जारी कर रैकिंग की प्रक्रिया को पर सवाल उठाता है.मंत्रालय कहता है कि प्रक्रिया वैज्ञानिक नहीं है।मतलब जब आपको पसंद आए तो रैकिंग की प्रक्रिया ठीक है, लेकिन जब पसंद नहीं आए तो रैकिंग की प्रक्रिया ठीक नहीं है.और एक ओपिनिय पोल में सवाल पूछ कर यह रैंक बनाया गया है.भूख की हालत किससे छुपाई जा रही है,क्या यह बात सही नहीं है कि अस्सी करोड़ भारतीय दो वक्त का अनाज खरीदने की स्थिति में नहीं हैं.अगर होते तो उनके लिए मुफ्त अनाज योजना क्यों जारी होती.मंत्रालय के बयान के बाद 16 अक्तूबर 2021 को ग्लोबल हंगर इंडेक्स की सलाहकार मिरियम वाइमर का जवाब आता है.यह जवाब 16 अक्तूबर 2021 के हिन्दू में छपा है. मिरियम वाइमर कहती हैं कि ग्लोबल हंगर इडेक्स उस सर्वे के आधार पर तैयार नहीं किया जाता है.टेलिफोन से जो सर्वे था वो किसी और मकसद के लिए था.ग्लोबल हंगर इडेक्स अल्प पोषण की व्यापकता को जानने के लिए हर देश के खाद्यान बैलेंसशीट का डेटा उपयोग में लाता है। हमने भारत सरकार को अपनी प्रक्रिया भी बताई है.यह भी कि इस साल जो डेटा इस्तेमाल होगा, उसका सोर्स क्या है. बाहर के एक्सपर्ट ग्लोबल हंगर इंडेक्स के डेटा की जांच करते हैं.हमारी प्रक्रिया लंबे समय से चली आ रही है.संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास के लक्ष्य तय किए हैं और भारत भी उसका हिस्सा है.उसके लिए भी ग्लोबल हंगर इंडेक्स का इस्तेमाल होता है.
अक्तूबर में दोनों पक्ष अपनी बात रखते हैं और इसके दो महीने बाद 8 december 2021 को राज्य सभा में स्मृति ईरानी बयान देती है कि फिर से इस पर सवाल उठाती हैं.मतलब जिस रैकिंग से इस बात की पोल खुलती है कि आबादी का बड़ा हिस्सा अभी भी ग़रीबी में जी रहा है उसे खारिज करने के लिए सरकार भी कम मेहनत नहीं करती है.
रैंक में सुधार अच्छी बात है, लेकिन उस रैंक की भी चर्चा सरकार करे जिसमें भारत का प्रदर्शन खराब होता जा रहा है.दो चार का ढिंढोरा पीटेंगे तो बाकी को भी खोज कर निकाला जाएगा जिन्हें सरकार बताना नहीं चाहती है.जब भी कोई मंत्री बयान देता है कि भारत की सड़कों को अमरीका जैसा बना देगा वो बयान तुरंत हेडलाइन बन जाता है लेकिन जब भारत की सड़कें गड्ढों से भर जाती हैं तो उसकी चर्चा गायब कर दी जाती है।
इस बीच यह यूपी की तस्वीर है.सीतापुर में अफसरों का काफिला उस सड़क से गुज़र रहा है जिस पर गड्ढे हैं.नितिन गडकरी ने कहा है कि यूपी की सड़कों को अमरीका से बेहतर बना देंगे और इसके लिए यूपी को 7000 cr की मदद देंगे.इन खबरों के बीच गड्ढा जहां था वहां है और यह ई रिक्शा पलट जाती है.लोगों को मामूली चोट लगती है और अफसरों की गाड़ी निकल जाती है।
यह वीडियो सितंबर महीने का है और बलिया का है.एक नागरिक मीडिया को गड्ढे की हालत के बारे में बता ही रहे हैं कि पीछे एक आटो गड्ढे में गिर जाता है.हम आपको यह भी बताना चाहते हैं कि हाल ही में लखनऊ में भारतीय रोड कांग्रेस का सम्मेलन हुआ, यहां परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि 2024 से पहले यूपी की सड़कों में पांच लाख करोड़ का निवेश होगा।
अगले दो साल में पांच लाख करोड़ का निवेश होगा, क्या आप सोच सकते हैं कि यूपी की सड़कों पर किस तरह नोटों की बरसात होगी? एक बयान में सात हज़ार करोड़ है और एक बयान में पांच लाख करोड़ का निवेश.रेंज में कोई कमी नहीं है.हेडलाइनें भी उछला करती होंगी कि ये क्या कह दिया ये क्या हो गया.अगर इन पैसों से गड्ढे गायब हो जाएं तो कमाल हो जाए.आप यूपी के अखबारों में गड्ढों में गिरने से हो रही मौतों की खबरों को सर्च कीजिए तो पता चलेगा कि जब बारिश नहीं होती है तब भी ये गड्ढे लोगों की जान ले रहे होते हैं.बारिश के समय इतना ही फर्क आता है कि किसी की जान लेने का दोष गड्ढों के अलावा बारिश में भी बंट जाता है।गड्ढा यूपी का एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा है.2017 में जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने थे तब उन्होंने कहा था कि 15 दिनों में गड्ढे भर देंगे। इस बार भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 नंवबर तक सभी गड्ढों को भरने के आदेश दिए हैं.इसका मतलब है कि यह मसला सीधे मुख्यमंत्री की नज़र में है.इसके बाद भी आपको हर महीने गड्ढों में गिर कर कभी स्कूल जा रहे बच्चे की मौत की खबर मिलेगी तो कभी दफ्तर जा रहे कर्मचारी की.जब सड़क बनती है तब नेता कहते हैं कि ऑल वेदर रोड बन गई है यानी किसी मौसम में खराब नहीं होगी और जब बारिश में धंस जाती है तब ऑल वेदर रोड वाले बयान भुला दिए जाते हैं।
एक उदाहरण के लिए मई महीने की यह खबर देखिए जो बुलंदशहर से अमर उजाला में छपी है.इसमें लिखा है कि ज़िले की 700 किलोमीटर सड़कें क्षतिग्रस्त हैं.लिखा है किसड़कों के गहरे गड्ढों की वजह से आए दिन दोपहिया वाहन सवार गिरकर चोटिल हो रहे हैं.हाल ही में औरंगाबाद-जहांगीराबाद मार्ग पर गड्ढे में बाइक गिरने से महिला की मौत हो गई थी.इस रिपोर्ट में उन तमाम सड़कों के नाम हैं जिन पर गड्ढों ने हमला कर दिया है.यह तो मई की खबर है.
अब यह 11 अक्तूबर का वीडियो है और बुलंदशहर का ही है.यह सड़क बुलंदशहर की मुख्य सड़कों में से है.इसकी हालत बता रही है कि मई की खबर और अक्तूबर की खबर में खास अंतर नहीं आया .समीर अली ने शहर की कई सड़कों हाल लिया.स्याने अड्डे से लेकर काले आम तक दो तीन किलोमीटर की सड़क का बुरा हाल है.काली नदी रोड और शिकारपुर से दिल्ली हाईवे का भी हाल बहुत अच्छा नहीं है।वर्ली पुरा रोड के तो क्या ही कहने.इस एंबुलेंस में जो भी मरीज़ होगा, उसकी क्या हालत हो रही होगी, आप अंदाज़ा लगा सकते हैं.इन गाड़ियों की हालत भी थोड़े दिनों में जर्जर हो जाएगी.लोग बता रहे हैं कि आए दिन लोग गिरते रहते हैं.चूंकि हर दुर्घटना बड़ी दुर्घटना नहीं होती तो रिपोर्ट भी नहीं होती है .गाड़ियां खराब होती रहती हैं.यूपी सरकार को हर दिन गड्ढा रिपोर्ट जारी करना चाहिए कि आज यूपी में कितने लोग गड्ढे में गिरे हैं, कितनों की गाड़ी टूट गई, कितनों की हड्डियां टूट गईं और कितनों की जान चली गई और कितने अस्पताल में भर्ती हैं.
दरअसल मीडिया बड़ी खबरों के नाम पर इन खबरों को गायब कर देता है और प्रशासन की लापरवाही के कारण हर दिन लोग कहीं न कहीं मर रहे होते हैं. उनकी जान की कीमत कुछ नहीं होती है।सोचिए अगर दो दिन यूपी के तमाम ज़िलों से गड्ढों के वीडियो चैनलों पर चलने लगें तो प्रशासन कितनी तेज़ी से काम करेगा.सरकार की वाहवाही भी होगी और आम लोगों की जान बच जाएगी.हम उदाहरण केवल यूपी का दे रहे हैं मगर यही हालत बिहार से लेकर मध्य प्रदेश की है।हमने अपने सहयोगियों से हाल फिलहाल के कुछ वीडियो मंगाए हैं.बलिया से करुणा सिंधु और स्थानीय पत्रकार , हरदोई से मो आसिफ, उन्नाव से गौरव शर्मा, कानपुर से अरुण अग्रवाल ,हापुड़ से अदनान ,सीतापुर से समीर,सहारनपुर से अशोक कश्यप, मुरादाबाद से अनवर ने गड्ढों के सुंदर वीडियो भेजे हैं.खबरें भी भेजी हैं.अब आप अपने स्क्रीन पर इन वीडियो को देखते हुए अमर उजाला में छपी कुछ खबरों को भी सुनेंगे जो सितंबर और अक्तूबर के महीने में अलग अलग जगहों से छपी हैं.तो इसका ध्यान रखते हुए आगे की खबर सुनिए और देखिए भी।
इसी 10 अक्टूबर को मेरठ से खबर छपरी है कि गड्ढे में स्कूटी चला रहा युवक केशव मेहता गिर गया.उसे ट्रैक्टर ट्राली ने कुचल दिया मौके पर ही मौत हो गई.पीवीएस मॉल से चंद कदम दूर गड्ढा था.के कारण स्कूटी समेत नीचे गिर गया.इसी दौरान पीछे आ रहे रद्दी से लदी ट्रैक्टर-ट्रॉली ने किशोर को कुचल दिया.हादसे में किशोर की मौके पर ही मौत हो गई.11 अक्तूबर की खबर शामली स है कि बारिश से ज़िले भर की सड़कों पर जानलेवा गड्ढे हो गए हैं.जिन पर सफर करना मौत को दावत देने जैसा है।सोमवार को गड्ढों की वजह से कक्षा नौ की छात्रा शुचि अग्रवाल की मौत हो गई।शुचि बहन के साथ ई रिक्शा से स्कूल जा रही थी.संतुलन बिगड़ा और गिर गई.11 अक्बूतर को ही पीलीभीत से खबर छपी है कि सड़कों में गड्ढे राहगीरों के लिए आफत बन गए हैं.इन गड्ढों में जैसे ही बाइक का पहिया जाता है सवार गिरकर चुटैल हो रहा है.यह किसी एक जगह का हाल नहीं, अधिकतर सड़कों का हाल है.ई रिक्शा पलट जाती है.6 अक्तूबर की यह खबर महोबा ज़िले से है.अमर उजाला लिखता है कि महोबा जिले में मुढ़ारी-खैरारी मार्ग के गड्ढों में ऑटो उछलने से पचास साल के रामसेवक कुशवाहा सड़क पर जा गिरे.गंभीर चोटें आने से उनकी मौत हो गई.ब्रेकर में वाहन उड़ने से गिरे किसान की भी जान चली गई.अन्य हादसों में बाइक सवार 10 लोग घायल हो गए.3 अक्तूबर को ग़ाज़ीपुर के रक्साहां गाव के शैलेश सिंह अपनी बुलेट से बीज लाने गए.सड़क के गड्ढे में पानी भरा था, गिर गए और मौत हो गई.24 से 27 सितंबर के बीच अमर उजाला में बिजनौर फिरोजाबाद,फतेहाबाद से खबरें चपी हैं.बिजनौर की खबर में लिखा है कि बिजनौर शहर में रेलवे फाटकों के पास सड़कों पर गहरे-गहरे गड्ढे हो गए हैं, जिनमें गाड़ियां हिचकोले खा रही हैं.गड्ढों की वजह से कई बार हादसे भी हो गए हैं और हो भी रहे हैं।शहर में चक्कर रोड पर सेंट मेरी स्कूल के पास वाले फाटक के आसपास गड्ढों का जाल बुना हुआ है.फाटक के पास काफी गहरे गड्ढे हैं, जिनकी वजह से हमेशा हादसा होने का डर बना रहता है.फिरोज़ाबाद में गड्ढे में गिर जाने से 12 साल के ऋषि की मौत हो गई.फतेहाबाद में गड्ढे में डूब जाने से बैंक कर्मचारी सज्जन कुमार की मौत हो गई. गड्ढों में गिर कर मरने वाले ज़्यादातर गरीब लोग होते हैं.
भारत विश्व गुरु बनना चाहता है.लेकिन उसके पहले सारे गड्ढों को भर लिया जाना चाहिए.वर्ना विश्व गुरु बनने के बाद जब लोग भारत देखने आएंगे तो इन गड्ढों में गिरने लग जाएंगे.ठेहुना से लेकर ठुड्डी तक टूट जाएगी।हमें राष्ट्रवाद को गड्ढे में गिरने से बचाना है, विश्व गुरु बनने से पहले इन गड्ढों को मिटाना है.मेरा एक प्रस्ताव है.साल का एक दिन गड्ढा दिवस के रुप में मनाया जाए।इस दिन भारत के सभी नागिरक अपने इलाके के गड्ढों के साथ सेल्फी लेकर प्रधानमंत्री को ट्विटर पर टैग कर सकते हैं.भारत का हर गड्ढा सामने आना चाहिए.एक भी गड्ढा ऐसा न हो जो सरकार और समाज की नज़र से छिपा रह जाए.
गड्ढा एक धब्बा है. सड़कों के सौदर्य को बिगाड़ने वाला और गरीबों की जान लेने वाला.गड्ढा भारत की विकासशील सड़कों का राष्ट्रीय रोग है.गड्ढा आज की महंगी और कोमल कारों को नुकसान पहुंचाता है.उनके कल पुज़े कल-कल रोते हैं.गड्ढों में गिरकर इंसान छल-छल रोता है.काश मेरे पास संसाधन होता तो एक हफ्ते तक भारत के सभी गड्ढों को राष्ट्रीय पटल पर आने का अवसर प्रदान करता.इन गड्ढों को छांट कर, इनसे बच कर सड़क खोज कर चलने की प्रतियोगिता कराता.दो गड्ढों के बीच बची हुई सड़क से कोई अपनी बाइक बिना गिरे निकाल ले जाता है तो उसे इनाम के तौर पर कपड़े धोने का एक साबुन फ्री में देता।गड्ढा केवल मनोरोग नहीं है, यह हमारे मनोबल का परिचायक भी है।हम गड्ढे में गिर कर जान ही नहीं गंवाते बल्कि गड्ढा होने के बाद भी सड़कों पर चलकर दिखाते हैं.गड्ढा होने के बाद भी हम सड़क को सड़क ही समझते हैं.उस पर सड़क समझ ही गाड़ी चलाते हैं और गिर जाते हैं.अत: गड्ढा हमारा राष्ट्रीय स्वाभिमान भी है.गड्ढा हमारा राष्ट्रीय अपमान भी हो सकता है.भारत को गड्डा मुक्त करना ही सबसे बड़ी कल्पना है.बाकी सब अल्पना है.गड्ढा हमारे राजनीतिक मानस का प्रतीक है.मैं गड्ढे पर बात केवल गड्ढे के लिए नहीं की, इसलिए भी की ताकि आपको बता सकूं कि एक धर्म विशेष से नफरत की राजनीति आपके दिमाग़ में तरह तरह के आकार के गड्ढे बना रही है.उन गड्ढों में ज़हर भरा है.आपके विचारों की सड़क पर इतने गड्ढे बन गए हैं कि चलने के लिए या सोचने के लिए बहुत कम जगह बची है।आप खत्म किए जा रहे हैं.आप खत्म हो रहे हैं.आपका नाम केवल सड़क नहीं है, इस केस में आपका नाम जनता और नागरिक भी है.आगे का प्रसंग उसी गड्ढे से जुड़ा है जो हमारी राजनीति आपके दिमाग़ के भीतर खोद रही है.
क्या आप किसी भी समुदाय के आर्थिक बहिष्कार की अपील कर सकते हैं? यह सोच कितनी खतरनाक है.एक ज़माने तक जाति के आधार पर बहिष्कार की संस्कृति अपनाई गई.उसी का अपराध बोध आज तक समाज पर भारी है, अब अगर धर्म के आधार पर बहिष्कार की बात कही जाएगा तो यह संविधान का अपमान होगा.
हमारा संविधान सभी नागरिकों को समान अवसर देने की गारंटी देता है.आप अपने बच्चों को ऐसी सोच से दूर रखिए.लेकिन जब बीजेपी के एक सांसद प्रवेश वर्मा इस तरह की अपील करते हैं तो प्रधानमंत्री से ज़रूर पूछिए कि यह कौन सा भारत है.नफरत की यह राजनीति आज के नौजवानों को किस गड्ढे में ले कर जाने वाली है, इस पर विचार कीजिए.प्रवेश वर्मा सांसद हैं, भरी सभा में एक समुदाय के बहिष्कार की बात कर रहे हैं.सांसद प्रवेश वर्मा कैसे कह सकते हैं कि एक समुदाय से कोई सामान न खरीदो.कोई भी समुदाय हो, आप नाम लें या न लें.आप यह बात कैसे कह सकते हैं।उसके आर्थिक बहिष्कार की बात नहीं की जा सकती है.यह संविधान विरोधी सोच है.
आपको याद होगा.2020 में जब कोविड का हमला हुआ तब तबलीग जमात के बहाने एक समुदाय को निशाना बनाया गया.जमात में शामिल लोगों को पुलिस उनके घरों से खोज कर ले आई और कइयों को जेल में डाल डिया गया.कई महीनों तक लोग जेल में रहे.बिना बात के.कई हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मीडिया और पुलिस की आलोचना की और यही कहा कि जानबूझ कर एक समुदाय को निशाना बनाया गया.उस दौरान गरीब सब्जी वाले फल वाले से धर्म पूछा जाने लगा था.कई खबरें आई थीं.अब जब सांसद ही इस तरह के बहिष्कार की बात कर रहे हैं तब फिर क्या रह जाता है.सुप्रीम कोर्ट बार बार चिन्ता जता रहा है कि नफरती भाषणों से देश का माहौल खराब हो रहा है.अभी तक कोर्ट की नाराज़गी मीडिया को लेकर थी लेकिन अब जब सांसद ही इस तरह की बात कर रहे हैं तब क्या कहा जा सकता है.क्या लोकसभा के स्पीकर संज्ञान लेंगे, क्या प्रधानमंत्री कुछ कहेंगे, कि ऐसा नहीं कहना चाहिए.कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत लगातार इस सवाल को उठा रही हैं.
मर्ज़ी आपकी है.अपने आप को इन नफरती बातों से बचा लीजिए.दुनिया में यह प्रयोग कई बार हुआ है, जब भी हुआ है, बड़ी संख्या में पढ़े लिखे लोग भी दूसरे समुदाय से नफरत करने लगे और हत्यारे बन गए.क्योंकि किसी समुदाय के बहिष्कार की सोच ने हमेशा ही लोगों को दंगाई बनाया है.जर्मनी ही अकेला उदाहरण नहीं है।जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ भारत के अलगे मुख्य न्यायाधीश होंगे.मगर इससे भी बड़ी खबर यही है कि देश का एक सांसद एक समुदाय के आर्थिक बहिष्कार की धमकी देता है.देश के प्रधानमंत्री उस पर कुछ नहीं बोलते हैं.दो साल पहले एक समुदाय के खिलाफ गोली मारने के नारे उनके ही मंत्री ने लगाए.प्रधानमंत्री तब भी चुप रहे थे.इस चुप्पी को नोट करते रहिए, और खुद को नफरत से बचाते रहिए.
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