- आप सांसद ने आज राज्यसभा में कंटेंट क्रिएटर्स का दर्द उठाया
- चड्ढा ने मांग की कि 1956 में बने कॉपीराइट कानून में सुधार किया जाए
- आप सांसद ने कहा कि केवल कुछ सेकेंड के कारण किसी कंटेंट क्रिएटर की मेहनत नहीं छीनी जा सकती है
सोशल मीडिया पर रील, कंटेंट पोस्ट करने वाले यूट्यूबर्स के सबसे बड़े दर्द का मुद्दा आम आदमी पार्टी (आप) के नेता राघव चड्ढा ने आज संसद में उठाया. राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान चड्ढा ने कहा कि डिजिटल कंटेंट क्रिएटर के दर्द को सबके सामने लाया.
आमदनी का स्रोत है
उन्होंने कहा कि कंटेंट क्रिएटर का इंस्टाग्राम, यूट्यूब पेज केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं है बल्कि ये उनके आमदनी का भी स्रोत है. इसके लिए वो काफी कड़ी मेहनत करते हैं. चड्ढा ने सवाल उठाते हुए कहा कि एक चीज के कंटेंट क्रिएटर काफी परेशान हैं. उन्होंने कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कॉपीराइट कानून के कारण उन्हें इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है.
कुछ सेकेंड के लिए किसी की मेहनत नहीं छीनी जाए
चड्ढा ने कहा कि होता क्या है कि अगर एक कंटेंट क्रिएटर कुछ सेकेंड के लिए दो-तीन सेकेंड के लिए कॉपीराइट वाले कंटेंट को रीपर्पस करके कमेंट्री, आलोचना, पैरेडी, एजुकेशनल या न्यूज रिपोर्टिंग के लिए यूज करता है तो चाहे वो क्रेडिट देता हो या उसके इंसेडेंटिली इस्तेमाल करता हो तो उसको कॉपीराइट स्ट्राइक मारकर उसके यूट्यूब चैनल या प्रॉपर्टी है या इंस्टाग्राम पेज है उसको पूरी तरह से वाइप आउट (हटा देना) कर देता है और उसकी सालों की मेहनत चंद मिनटों में समाप्त हो जाती है.
कानून के जरिए हो फैसला
चड्ढा ने कहा कि जीवनयापन का फैसला कानून के जरिए होना चाहिए न कि मनमाने तरीके. उनके कठिन मेहनत और ऑरिजनल कंटेंट को समझने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि किसी कॉपीराइट कंटेंट का फेयर यूज पाइरेसी नहीं है. इंडिया का कॉपीराइट एक्ट 1956 में बना. ये ऐसे दौर में बना था जब ना इंटरनेट था, कंप्यूटर था न डिजिटल क्रिएटर थे और न यूट्यूब, इंस्टाग्राम था. इस एक्ट में डिजिटल क्रिएटर की मीनिंग नहीं है. ये फेयर डीलिंग की बात किताबों, मैग्जीन और जर्नल के तहत करता है, जो उस समय के हिसाब से था.
चड्ढा ने की तीन मांग
चड्ढा ने कहा कि मैं इसलिए तीन मांग करता हूं कि कॉपीराइट एक्ट 1956 में सुधार किया जाए और उमसें डिजिटल फेयर यूज की परिभाषा तय की जाए. उन्होंने कहा कि परिभाषित करिए ट्रांसफर्मेटिव यूज क्या है. कमेंटरी, सटायर आदि की परिभाषा तय करिए. इसके अलावा इसे भी परिभाषित करने की जरूरत है कि इंसेडेंटल इस्तेमाल क्या है. अगर बैकग्राउंड में ऑडियो, विजुअल चंद सेकेंड के लिए चले तो वो इंसेडेंटल यूज है या पूरे कंटेंट को ही खत्म कर दे. पर्पोशनेट यूज, एजुकेशनल यूज, पब्लिक इंटरेस्ट यूज और नॉन कर्मशियल यूज की परिभाषा क्या है उसे भी तय किया जाए.
चड्ढा ने कहा कि मेरी दूसरी मांग है कि बैकग्राउंड में कुछ सेकेंड के लिए वीडियो या ऑडियो चला तो उसका ये मतलब नहीं होना चाहिए कंटेंट क्रिएटर की सालों की मेहनत चंद सेकेंड में खत्म कर दें. उन्होंने कहा कि मेरी तीसरी मांग है कि किसी भी कंटेंट को हटाने से पहले प्रक्रिया को फॉलो किया जाए.
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