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"पीड़ित परिवार सदमे में, लेकिन नाबालिग भी है परेशान": पुणे पोर्शे मामले में हाईकोर्ट

बम्बई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को पूछा कि पुणे पोर्श कार हादसा मामले में नाबालिग आरोपी को पहले जमानत देना और फिर उसे हिरासत में ले लेना तथा सुधार गृह में रखना क्या कैद के समान नहीं है?

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"पीड़ित परिवार सदमे में, लेकिन नाबालिग भी है परेशान": पुणे पोर्शे मामले में हाईकोर्ट
मुंबई:

पुणे पोर्श कार दुर्घटना की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट की बेंच ने कहा है कि "पीड़ितों के परिवार सदमे में हैं. लेकिन शराब के नशे में दुर्घटना करने वाला किशोर भी सदमे में है. स्वाभाविक रूप से, इसका उसके दिमाग पर असर पड़ा होगा." ज्ञात हो कि नशे में धुत्त नाबालिग ने पिता की ₹2.5 करोड़ की इलेक्ट्रिक पॉर्श सुपरकार चलाते समय दो लोगों का एक्सीडेंट कर दिया था, जिसमें दोनों की मौत हो गई थी.

अदालत की यह टिप्पणी तब आई जब उसने स्वीकार किया कि मारे गए दो लोगों - अनीश अवधिया और अश्विनी कोस्टा - के परिवार अभी भी उनकी मौत की खबर से मानसिक और शारीरिक आघात का सामना कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- पुणे पोर्शे हादसा : नाबालिग के पिता और दादा सहित पांच के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज

अदालत लड़के की चाची की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसकी गिरफ्तारी के आधार पर उसकी रिहाई की मांग की गई थी. हालांकि, न्यायमूर्ति भारती हरीश डांगरे और मंजूषा देशपांडे की पीठ ने मंगलवार के लिए अपना आदेश सुरक्षित रख लिया. इस मामले में पुलिस की आलोचना हुई. पुलिस पर आरोप है कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ किया गया और आरोपी को बचाने की कोशिश की गई.

नाबालिग को कैसे मिली थी बेल?

गिरफ्तारी के 15 घंटे के भीतर ही नाबालिग को जमानत मिल गई थी.  जिसमें शर्त थी कि सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखा जाए. जमानत आदेश से जनता में रोष फैल गया और पुलिस ने आदेश में संशोधन करने की मांग की. बाद में जमानत आदेश को संशोधित किया गया और लड़के - जिसके माता-पिता और दादा को भी पुलिस को रिश्वत देने और फर्जी रक्त परीक्षण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. नाबालिग को सुधारगृह में भेज दिया गया.

अदालत ने क्या कहा?

► बम्बई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को पूछा कि पुणे पोर्श कार हादसा मामले में नाबालिग आरोपी को पहले जमानत देना और फिर उसे हिरासत में ले लेना तथा सुधार गृह में रखना क्या कैद के समान नहीं है? न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दुर्घटना दुर्भाग्यपूर्ण थी.

► अदालत ने कहा, ‘‘दो लोगों की जान चली गई. (यह) बहुत दर्दनाक हादसा तो था ही, लेकिन बच्चा (किशोर) भी (मानसिक) अभिघात में था.'' खंडपीठ ने पुलिस से यह भी पूछा कि कानून के किस प्रावधान के तहत पोर्श दुर्घटना मामले में नाबालिग आरोपी को जमानत देने के आदेश में संशोधन किया गया और उसे 'कैद' में किस आधार पर रखा गया.

► गत 19 मई की सुबह किशोर कथित तौर पर नशे की हालत में तेज रफ्तार में पोर्श कार चला रहा था और उसने एक बाइक को टक्कर मार दी, जिससे पुणे के कल्याणी नगर में दो सॉफ्टवेयर इंजीनियरों- अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा की मौत हो गई.

सत्रह-वर्षीय किशोर को उसी दिन किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) द्वारा जमानत दे दी गई. बोर्ड ने किशोर से सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने को कहा तथा आदेश दिया कि किशोर को उसके माता-पिता और दादा की देखभाल एवं निगरानी में रखा जाए.

► त्वरित जमानत दिये जाने पर देश भर में हंगामे के बीच, पुलिस ने जेजेबी से जमानत आदेश में संशोधन की अपील की. बोर्ड ने ​​22 मई को किशोर को हिरासत में लेने का आदेश दिया और उसे एक सुधार गृह में भेज दिया.

► किशोर की चाची ने पिछले सप्ताह एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, जिसमें दावा किया गया कि उसे अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है. उन्होंने किशोर की तत्काल रिहाई की मांग की.

► पीठ ने शुक्रवार को याचिका पर दलीलें सुनते हुए कहा कि पुलिस ने जेजेबी द्वारा पारित जमानत आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में आज तक कोई आवेदन दायर नहीं किया है.

► अदालत ने कहा कि इसके बजाय जेजेबी के जमानत आदेश में संशोधन के अनुरोध के साथ आवेदन दायर किया गया था. खंडपीठ ने कहा कि संबंधित याचिका के आधार पर जमानत आदेश में संशोधन किया गया और किशोर को सुधार गृह भेज दिया गया.

► खंडपीठ ने कहा, ‘‘यह किस प्रकार की रिमांड है? रिमांड की शक्ति क्या है? यह किस तरह की प्रक्रिया है, जहां किसी व्यक्ति को जमानत दी गई है और फिर उसे हिरासत में लेकर सुधार गृह भेजने का आदेश दिया जाता है.''

► पीठ ने कहा कि नाबालिग को उसके परिवार के सदस्यों की देखभाल और निगरानी से दूर ले जाया गया और एक सुधार गृह भेज दिया गया.

► अदालत ने कहा, ‘‘एक व्यक्ति को जमानत दी गई है, लेकिन अब उसे एक सुधार गृह में कैद कर दिया गया है. क्या यह कैद नहीं है? हम आपकी शक्ति का स्रोत जानना चाहेंगे.''

► पीठ ने कहा कि वह किशोर न्याय बोर्ड से भी जिम्मेदार होने की उम्मीद करती है. अदालत ने सवाल किया कि पुलिस ने जमानत रद्द करने के लिए अर्जी क्यों नहीं दी. इसने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया और कहा कि यह मंगलवार (25 जून) को पारित किया जाएगा.

► सरकारी वकील हितेन वेनेगांवकर ने कहा कि बोर्ड द्वारा पारित रिमांड आदेश पूरी तरह वैध थे और इसलिए किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी.

पूरा मामला जानिए

महाराष्ट्र के पुणे शहर में 19 मई को हुए एक हादसे में दो युवा आईटी पेशेवरों की मौत हो गई. इस हादसे ने मध्य प्रदेश के इन दोनों आईटी इंजीनियरों के परिवारों को गहरा आघात दिया. इन परिवारों की जिंदगी में एक ऐसा खालीपन आ गया जो कभी भरा नहीं जा सकेगा. इस घटना का दूसरा पक्ष ऐसा है जिसमें एक परिवार अपने बिगड़े बच्चे की करतूत पर परदा डालने के लिए जी जान से जुट गया है. यह उस नाबालिग लड़के का परिवार है जिसने शराब के नशे में अपनी तेज रफ्तार पोर्शे कार से टक्कर मारकर दो युवाओं को असमय मौत की नींद सुला दिया था.         

पुणे में 19 मई की रात में नाबालिग लड़का पब में दोस्तों के साथ शराब पीने के बाद कार से जा रहा था. उसने अपनी पोर्शे कार से दो बाइक सवारों को टक्कर मारी थी. तेज रफ्तार कार की यह टक्कर इतनी जोरदार थी कि बाइक पर सवार युवक और युवती की मौके पर ही मौत हो गई थी. मारे गए अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्ठा दोनों ही 24 साल के थे. 

भाषा इनपुट के साथ

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