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This Article is From Oct 18, 2022

रवीश कुमार का Prime Time: बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई, जब केंद्र ने दी मंज़ूरी तो ये बात क्यों छुपाई?

जब 15 अगस्त के दिन बलात्कार के मामले में सज़ा पाए 11 कैदियों को रिहा किया गया, तब कितने सवाल उठे कि बिलकिस बानों के साथ बलात्कार और उनके परिवार के कई सदस्यों की हत्या में शामिल इन लोगों को सज़ा पूरी होने से पहले क्यों छोड़ा गया?

रवीश कुमार का Prime Time: बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई, जब केंद्र ने दी मंज़ूरी तो ये बात क्यों छुपाई?

जब 15 अगस्त के दिन बलात्कार के मामले में सज़ा पाए 11 कैदियों को रिहा किया गया, तब कितने सवाल उठे कि बिलकिस बानों के साथ बलात्कार और उनके परिवार के कई सदस्यों की हत्या में शामिल इन लोगों को सज़ा पूरी होने से पहले क्यों छोड़ा गया? गोदी मीडिया से लेकर मंत्री तक सब चुप ही रहे. कायदे से केंद्र सरकार तभी बता सकती थी कि बलात्कार के मामले में सज़ा काट रहे 11 कैदियों को समय से पहले रिहा करने की मंज़ूरी गृह मंत्रालय ने दी है. अमित शाह के मंत्रालय की मंज़ूरी के बाद राज्य सरकार ने भी दे दी. उस समय की मीडिया रिपोर्ट को देखिए तो सबकी पड़ताल इसी पर थी कि गोधरा की कमेटी ने मंज़ूरी थी. तब केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय क्यों चुप रहा, उसी समय आगे आकर कहना था कि हां हमारे मंत्रालय ने बलात्कार के 11 आरोपियों को समय से पहले क्षमादान दिया है. वे 15 अगस्त के दिन रिहा हुए हैं. 
सारा देश 15 अगस्त को एक अलग टास्क में लगा दिया गया कि घर घर तिरंगा फहराएं, लोग लगे हुए थे देशभक्ति साबित करने में, यहां रिकार्ड बन रहा था, वहां रिकार्ड बन रहा था, और उसी बीच गुजरात में 11 बलात्कारी चुपके से रिहा किए जा रहे थे, उनकी सज़ा माफ कर , समय से पहले रिहा किए जा रहे थे. घर-घर तिरंगा से इतनी तो देशभक्ति आनी ही चाहिए कि जब सवाल उठे तो गृहमंत्रालय इस सच का सामना करता और कहता कि हमने मंज़ूरी दी है. 

एक सवाल पूछा जाना चाहिए कि यह बात केंद्र सरकार खुद से क्यों नहीं बता सकी? अगर उसे अपने फैसले में इतना यकीन था तो वह क्यों नहीं बता सकी, फिर एक सवाल आप और पूछिए. 80 साल की सेवानिवृत्त प्रोफेसर रुप रेखा वर्मा जी, पूर्व सांसद सुभाषिणी अली, तृणमूल कांग्रेस की सांसद मोहुआ मोइत्रा, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लॉल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर नहीं की होती, 11 बलात्कारियों की रिहाई को चुनौती न दी गई होती तो क्या यह सच बाहर आता. इन चार महिलाओं ने अगर साहस न दिखाया होता तो क्या यह सच बाहर आता? इन चारों महिला याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन्हें रिहा किया गया है, वापस जेल भेजा जाए. 23 अगस्त, 25 अगस्त 9 सितंबर तक सुनवाई हुई मगर गृहमंत्रालय ने एक बार भी नहीं कहा कि उसकी मंज़ूरी के बाद राज्य सरकार ने रिहाई की है. तो इस एक सच को बाहर लाने में आप इन चारों महिलाओं का शुक्रिया अदा कर सकते हैं.  

25 अगस्त को तत्कालीन चीफ जस्टिस की बेंच को कहना पड़ गया कि इनकी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश नहीं दिया था. हमने गुजरात को केवल कानून के अनुसार आगे बढ़ने को कहा था.सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सफाई दे दी तब तो गृहमंत्रालय को आगे आकर कहना था कि बलात्कारियों को रिहा करने के मामले में हमने भी मंज़ूरी दी है. उसके बाद गुजरात सरकार ने मंज़ूरी दी है. अगर ये याचिका कोर्ट में दायर न होती तो सोचिए कि आप कितना कुछ नहीं जान पाते. इसी तरह अनेक मामलों में आप कुछ नहीं जानते हैं. 25 अगस्त को कोर्ट ने कहा कि वह बिलकिस के 11 दोषियों की रिहाई का परीक्षण करेगा. नोटिस जारी कर गुजरात सरकार से जवाब मांगेगा. जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि सवाल यह है कि गुजरात के नियमों के तहत दोषी छूट के हकदार हैं या नहीं? 9 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से कहा कि रिहाई के मामले में जितने भी दस्तावेज़ हैं, रिकार्ड पर रखे जाएं. अब जब आदेश के रिकार्ड सामने आए हैं तो सच बाहर आया है कि गृहमंत्रालय की मंज़ूरी भी 11 बलात्कारियों के झमादान और समय से पहले रिहाई में शामिल है. आज सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे को लेकर सुनवाई हुई है,हम हलफनामे के डिटेल और आज की सुनवाई की रिपोर्ट पर आएंगे लेकिन क्रम से देखते चलिए कि आपकी आंखों पर पट्टी कैसे चिपकाई जाती है.

वो भी खुलेआम कि आप देखते हुए भी न देखें क्योंकि अब जनता का एक बड़ा हिस्सा  दिमाग़ में भरे ज़हर से देखते हैं, नज़र से नहीं. अगर नज़र से देखती तो यह सवाल करने का नैतिक साहस उठाती कि क्या इस समाज में इस तरह से बलात्कार के आरोप में रिहा होने पर टीका लगाकर सम्मान किया जाएगा? फूल माला पहनाया जाएगा और सवाल उठने के बाद भी इनका फिर से सम्मान होगा और मिठाई खिलाई जाएगी. जनता को जो हिस्सा बलात्कार के मामले में कम से कम फांसी की मांग करता था, वही हिस्सा बिल्किस के बलात्कारियों क मामले में इतने कम पर चुप रह गया. राष्ट्रपति की उम्मीदवार को राष्ट्रपत्नी कह देने पर कितना हंगामा हुआ, संसद में बहस हो गई, कांग्रेस के नेता ने माफी मांगी, मगर इन तस्वीरों के सामने आने पर वे सारे लोग चुप रहे हैं जो एक आदिवासी महिला के सम्मान के नाम पर गरज रहे थे.बिपिन चंद्र जोशी, शैलेश भट्ट,राधेश्याम शाह,बाकाभाई वोहानिया,केशरभाई वोहानिया, जसवंत, गोविंद, प्रदीप मोर्धिया,राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदाना. जैसे ही ये लोग बाहर आए अगर सरकार उसी समय पूरी बात बताती तो लगता है कि सरकार को अपने फैसले में यकीन है. तो लगता है कि सरकार इस बात पर यकीन करती है कि इनका आचरण अच्छा रहा है इसलिए समय से पहले छोड़ा जा सकता है, क्योंकि इस आधार पर तमाम कैदी समय से पहले रिहा किए जाते हैं. आखिर क्या वजह थी कि गृह मंत्रालय ने तब नहीं कहा, जबकि अमित शाह का मंत्रालय इसकी जवाबदेही ले सकता था. उस समय गृह मंत्रालय का चुप रह जाना इस मामले को संदेह के घेरे में लाता है. 

गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया है. उस हलफनामे में कहा है कि गृह मंत्रालय ने इन्हें मंज़ूरी दी थी.2019 में महात्मा गांधी की 150 जयंती के मौके पर जब कैदियों की विशेष माफी का फैसला किया तब ध्यान रखा कि ऐसे मामलों के कैदी रिहा न हो पाएं, जो आजीवन सज़ा काट रहे हैं. इस समय आज़ादी का अमृत काल चल रहा है, इसकी खुशी में भी सज़ायाफ्ता कैदियों को छोड़ने का फैसला हुआ. लेकिन इस बार भी यानि जून 2022 में केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को आगाह किया कि जो संगीन मामलों में आजीवन सज़ा काट रहे हैं,उनकी माफी न हो.

फिर बिल्किस बानों के साथ बलात्कार करने और परिवार के सदस्यो की हत्या करने वालों को माफी क्यों दी गई? क्या इसके ज़रिए कोई राजनीतिक संदेश दिया जा रहा था, मतदाता के किसी वर्ग को इशारा किया जा रहा था? आज के दौर में यह सवाल इतना भी मामूली नहीं है, हम उस समाज को नहीं जानते जो ऐसे मामलों को अपने दिमाग़ में भरे ज़हर से देखता है, नज़र से नहीं. गृहमंत्रालय ने मंज़ूरी दी, लेकिन उस समय तक किसी को भनक तक नहीं थी, यहां तक कि कपिल सिब्बल जैसे वकील, चारों महिला याचिकाकर्ताओं और प्रेस को भी नहीं. वर्ना याचिका में यह सवाल होता कि गृह मंत्रालय ने कैसे मंज़ूरी दी,अलग से गृहमंत्रालय से सारे रिकार्ड मंगाए जाते कि किस स्तर की बैठक में इसका फैसला हुआ था? फैसले से पहले गृह मंत्रालल ने राज्य सरकार से क्या कहा था, देखना होगा कि यह सब हलफनामे में है या नहीं, या सुनवाई के दौरान इस पहलू पर किस तरह से सवाल जवाब होते हैं. क्या गृह मंत्री अमित शाह इस बारे में कोई बयान देंगे, अपने मंत्रालय के फैसले की प्रक्रिया के बारे में बताएंगे, गोदी मीडिया उनसे यह सवाल पूछेगा? 

याचिकाकर्ताओ के सवाल भी उस समिति के इर्द-गिर्द घूम रहे थे,जिसने 11 बलात्कारियों और हत्यारों की सज़ा माफ की. सबकी नज़र वही थीं कि उसके सदस्य किस पार्टी के हैं, कौन कौन हैं, किसने क्या कहा, किसी की भी नज़र गृह मंत्रालय की तरफ नहीं थी. बल्कि याचिका कर्ता का एक मुख्य सवाल यह भङी था कि जिस केस में CBI ने जांच की है, उसमें केंद्र सरकार से पूछे बग़ैर किसी को माफी देना, सेक्शन 435 का उल्लंघन नहीं है? इस सवाल को गौर से समझिए. CBI की मंज़ूरी पर शक है मगर गृह मंत्रालय पर नहीं, वर्ना वह भी एक सवाल होता ही. 

बताइये जिस दिन खबर आती है कि गृह मंत्रालय ने एक महिला के साथ छेड़खानी करने के आरोप में एक आई ए एस अफसर जितेंद्र नारायण को निलिबंत कर दिया, कोर्ट के फैसले के आधार पर नहीं, बल्कि जांच रिपोर्ट के आधार पर. उसी दिन खबर आ जाती है कि बिल्किस बानों के बलात्कारियों को रिहा करने के मामले में गृह मंत्रालय ने मंज़ूरी दे दी है. इस केस में तो कोर्ट का फैसला है, आजीवन कैद की सज़ा है तब भी इन्हें रिहा कर दिया गया. नारी की गरिमा का सम्मान किस तराजू पर तौला जा रहा है आप देख सकते हैं. दिखेगा तभी जब नज़र होगी, दिमाग़ में ज़हर नहीं होगा.

477 पेज का हलफनामा है. ज़ाहिर है धीरे-धीरे बातें निकल कर आती रहेंगी. हमारे सहयोगी आशीष भार्गव ने बताया है कि मुंबई के स्पेशल जज और सीबीआई ने इन 11 लोगों की रिहाई का विरोध किया था. इन पर बलात्कार और हत्या के कई आरोप थे.  स्पेशल जज आनंद एल यवलकर ने लिखा कि जिस तरह का जघन्य अपराध हुआ है, उससे समाज की चेतना पर असर पड़ता है. लेकिन जिस तरह से इस मामले में चुप्पी साध ली गई, यही लगता है कि समाज की चेतना में सांप्रदायिकता का ज़हर घुल गया है. उसकी चेतना अब मर गई है.वर्ना वह सवाल करता. चुप नहीं रहता. यही नहीं CBI मुंबई के एस पी नंदकुमार नैयर भी रिहाई का विरोध करते हुए लिखते हैं कि "दोषी द्वारा किया गया अपराध जघन्य और गंभीर है. इसलिए उपरोक्त अभियुक्तों को समय से पहले रिहा नहीं किया जा सकता है और कोई नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए"

CBI के एस पी विरोध कर रहे हैं, स्पेशल जज विरोध कर रहे हैं, मगर गृह मंत्रालय इनकी रिहाई को मंज़ूरी देता है. आज इस मामले में सुनवाई हुई, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच इस केस को सुन रही थी. याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने हलफनामे पर जवाब देने के लिए कोर्ट से समय मांगा है. 29 नवंबर को अगली सुनवाई है. जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि रात को भारी भरकम हलफनामा दाखिल हुआ. हमने सुबह इसे अखबारों में पढ़ा. जस्टिस रस्तोगी ने आज कई सवाल उठाए, कहा कि गुजरात के लिए SG तुषार मेहता अजनबी आपराधिक मामलों में अदालत नहीं जा सकते.याचिकाकर्ताओं का मामले से कोई लेना-देना नहीं है . 29 नवंबर को सुनवाई होगी तब तक याचिकार्ताओं को भी हलफनामे पर अपना जवाब दाखिल करना होगा.  सवाल- जब आपने याचिका तैयार की थी, तब इस बात का ध्यान था कि गृह मंत्रालय ने मंज़ूरी दी होगी या आपका ध्यान केवल राज्य सरकार और गोधरा ज़िला की समिति पर था?

शिवराज पाटिल और सुशील शिंदे अब गृह मंत्री नहीं हैं वर्ना उन्हें एक एक बात का जवाब देना पड़ता और जवाब से पहले इस्तीफा देना पड़ता. अब गृहमंत्री अमित शाह हैं. यह सवाल पूछने की नौबत ही न आए इसलिए गोदी मीडिया किसी और मुद्दे को लेकर ज्ञान देगा. इस तरह से आप हर दिन अपने ही सवालों का तमाशा बनता देख रहे हैं.

यह गृहमंत्रालय के आदेश की कॉपी है. इस पर भारत सरकार के  संयुक्त सचिव श्री प्रकाश के दस्तखत हैं. 11 जुलाई को संयुक्त सचिव श्री प्रकाश ने गुजरात सरकार के गृह विभाग के उप सचिव को यह पत्र भेजा है जिसमें बलात्कार और हत्या के 11 आरोपियों की रिहाई को मंज़ूरी दी गई है. यह चिट्ठी गुजरात सरकार की है, जो 28 जून को केंद्र सरकार की मंज़ूरी के लिए भेजी गई थी.गृहमंत्रालय के पत्र में 28 जून के इस पत्र का हवाला दिया गया है. 11 जुलाई को गृह मंत्रालय ने अपनी मंज़ूरी दे दी. मात्र 13 दिनों के भीतर. इस मामले में ही काम तेज़ी से हुआ या इसी रफ्तार से काम होता है, इसकी जानकारी इस ऐंकर को नहीं है. यह पत्र गोपनीय है. अगर सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामे में सारे रिकार्ड नहीं मांगे होते तो इस सच को बाहर आने के लिए किसी कयामत की रात तक का इंतज़ार करना पड़ता.

जिस समाज में बिल्किस रह रही हैं, उनके साथ बलात्कार करने वाले और परिवार के सदस्यों को मारने वाले उसी समाज में क्षमा पाकर बेखौफ घूम रहेे होंगे. क्या उनका हौसला नहीं बढ़ेगा कि उनकी रिहाई के लिए गृहमंत्रालय 13 दिनों में मंज़ूरी देता है और सवाल उठने पर खुद से आगे कर नागरिकों को नहीं बताता, चुप रह जाता.क्या यह सब मतदाताओं के खास वर्ग को राजनीतिक संदेश देने के लिए किया गया है? उन्हें भरोसा देने के लिए राजनीतिक कदम उठाया गया? चुनाव के माहौल में ऐसे सवालों को आप आसानी से खारिज नहीं कर सकते. बिल्किस के साथ जो हुआ, और इंसाफ पाने के लिए उन्होंने जितना संघर्ष किया, वह सब यहां बताना संभव नहीं है, फिर भी कुछ तो आप जान ही सकते हैं

19 साल की बिल्किस पांच महीने की गर्भवती थी. दंगाइयों ने बिल्किस के साथ बलात्कार किया. बिल्किस की दो साल की एक बच्ची भी थी, उसे दीवार पर दे मारा और हत्या कर दी. उसका शव नहीं मिला. उस दिन दंगाइयों ने बिल्किस के रिश्तेदारों सहित 14 लोगों की हत्या कर दी.बिल्किस की मां की भी हत्या कर दी गई. सत्र न्यायालय में केस खारिज हो गया लेकिन बिल्किस का हौसला नहीं टूटा. उसने तय किया कि लड़ाई लड़ेगी. इस लड़ाई में गगन सेठी, फराह नकवी से लेकर तमाम लोगों ने साथ दिया. CBI की जांच पुख्ता थी, जिससे आरोपियों का बचना मुश्किल हो गया. 21 जनवरी 2008 को CBI की विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को आजीवन कैद की सज़ा सुनाई.बिल्किस के साथ बलात्कार और उसके सात रिश्तेदारों की हत्या के मामले में सज़ा सुनाई गई. 4 मई 2017 को बांबे हाई कोर्ट ने इसी मामले में 5 लोगों के के खिलाफ सज़ा सुनाई. इनमें दो डॉक्टर और एक IPS अफसर आर एस भगोरा भी थे. इन पर आरोप था कि दोषियों को बचाने के लिए सबूत बदल दिए गए. ये लोग सुप्रीम कोर्ट गए,जहां इन्हें कोई राहत नहीं मिली. IPS आर एस भगोरा का दो रैंक घटा दिया गया. उनका पद घटा दिया गया. कोर्ट ने CBI की जांच की तारीफ की.2019 में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता ने गुजरात सरकार से कहा कि बिल्किस बानों को मुआवज़े के तौर पर पचास लाख रुपए दे, उसे नौकरी दे और घर बना कर दे. हत्या की धमकी के चलते बिल्किस बानों को 17 साल में अपना ठिकाना 20 बार बदलना पड़ा. केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बलात्कार और हत्या के दोषियों की रिहाई का बचाव किया है? यह मामला गृह मंत्रालय का है, अच्छा होता गृह मंत्री अमित शाह कुछ कहते, लेकिन सफाई दे रहे प्रह्लाद जोशी. श्रीनिवासन जैन ने प्रह्लाद जोशी से बात की है. 

आपको हमने शुरू में ही बताया, जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब उस समय के चीफ जस्टिस ने यही कहा कि इनकी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश नहीं दिया था. हमने गुजरात को केवल कानून के अनुसार आगे बढ़ने को कहा था. लेकिन मंत्री जी कह रहे हैं कि कोर्ट ने किया. फिर ये भी कह रहे हैं कि सरकार का कोई रोल नहीं. सीबीआई ने रिहाई देने से मना किया. स्पेशल जज ने रिहाई देने से मना किया, गृह मंत्रालय ने मंज़ूरी दे दी कि रिहा किया जा सकता है, और मंत्री जी कहते हैं कि सरकार का कोई रोल नहीं है. 

ऐसा तो नहीं हो सकता कि समाज में सबके दिमाग़ में ज़हर ही भरा है, नज़र नहीं बची है, लोग इस खेल को देख समझ तो रहे ही होंगे. जब सीबीआई विरोध कर रही है, स्पेशल जज विरोध कर रहे हैं तब अमित शाह का गृह मंत्रालय बलात्कार और हत्या के 11 आरोपियों की रिहाई को मंज़ूर कर रहा है, लोग समझ तो रहे ही होंगे. 

हाउसिंग सोसायटी और रिटायर्ट अंकिलों के व्हाट्स एप ग्रुप में भले समर्थन करें मगर उनका ज़मीर इतना तो कहता ही होगा कि ये बलात्कार और हत्या के जघन्य मामले में दोषी लोग हैं. इन्हें समय से पहले सजा देने के लिए पंद्रह दिन के भीतर गृह मंत्रालय मंज़ूरी देता है, इसमें कुछ तो असहज करने वाला है. वर्ना इन्हें मिठाई नहीं खिलाई जाती, फूल माला से स्वागत नहीं होता और टीका नहीं लगाया जाता. हम जानते हैं कि आप दर्शकों को अच्छा नहीं लग रहा होगा, इस कार्यक्रम में यह तस्वीर फिर से इसलिए दिखाई ताकि आपको इसी से जुड़ी एक और तस्वीर दिखा सकूं. ताकि आप इस भ्रम में न रहें कि बलात्कार और हत्या के इन आरोपियों का स्वागत करने वाले ये अनजान चेहरे हैं, सरकार का चेहरा नहीं है. 

अब आप इस तस्वीर को देखिए. जयंत सिन्हा तो आज भी भाजपा सांसद हैं और उस समय तो केंद्र सरकार में मंत्री थे. घटना जुलाई 2018 की है. जयंत सिन्हा जिन लोगों को मिठाई खिला रहे हैं ये सभी उस समय 55 साल के अलीमुद्दी अंसारी की हत्या के मामले में आरोपी थे, ज़मानत पर रिहा होकर आए थे, मगर जयंत सिन्हा माला पहना रहे,मिठाई खिला रहे हैं. जेल से रिहा होकर ये आरोपी जयंत सिन्हा के घर आए थे जहां तब के मंत्री जी मिठाई खिला रहे थे. जयंत सिन्हा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं. अलीमुद्दीन की हत्या के मामले में 11 लोगों को सज़ा भी हुई थी इसमें बीजेपी का एक स्थानीय नेता नित्यानंद महतो भी था. इस हत्या के एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने कहा था कि लोग गौ रक्षा के नाम पर धंधा कर रहे हैं. तब रघुबर दास ने तुरंत जांच बिठा दी थी. फास्ट ट्रैक कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई थी. इनकी सज़ा के बाद जयंत सिन्हा ने फिर से जांच की मांग की थी और सीबीआई से जांच की मांग की थी. तब जयंत सिन्हा ने इस पर अफसोस भी जताया था. 

रामनवमी के जुलूस के दिन मध्य प्रदेश के खरगोन, बड़वानी सहित कुछ इलाकों में दंगे भड़के, कई लोगों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा ... सरकार ने दंगों में हुए नुकसान की भरपाई के लिए एक ट्रिब्यूनल का गठन किया.दंगा पीड़ितों की शिकायतों पर हिन्दू-मुस्लिम दोनों पक्षों के लोगों को नोटिस जारी किया गया है.जिन्हें नोटिस मिला है उसमें एक 12 साल का बच्चा भी है. 

रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतीन प्राइम टाइम नहीं देखते हैं. या प्राइम टाइम का कोई दर्शक पुतिन के संपर्क में है? तो मेरी एक बात उन तक पहुंचा दे. मैं उनसे यह जानना चाहता हूं कि क्या भारत के प्रधानमंत्री के फोन के बाद पुतिन जी ने युद्ध रोक दिया था ताकि यूक्रेन में पढ़ रहे भारतीय छात्र बाहर आ सकें? यदि इसका जवाब हां है तो यह भी बताएं कि पुतिन जी ने कभी इसका श्रेय क्यों नहीं लिया? क्या यह खबर रुस की मीडिया में छपी थी? इसके बाद अगला सवाल है कि युद्ध रोकने का फैसला उनका एकतरफा था? या उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेनस्की से बात कर समय तय किया था कि इतने से इतने बजे तक बम नहीं चलाएंगे. या भारत ने यूक्रेन और रुस दोनों से बात कर अलार्म सेट कर दिया था कि इतने से इतने बजे तक दोनों बम न गिराएं. युद्ध न करें. हम अपने बच्चों को निकाल लेंगे. यह सवाल इसलिए पूछ रहा हूं कि अब पुतीन जी को सामने आना चाहिए और सच बताना चाहिए. क्योंकि जब बीजेपी के सांसद रविशंकर प्रसाद ने ऐसा दावा किया तब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसकी हंसी उड़ा दी. लेकिन अब तो विदेश मंत्री ही ऐसा दावा कर रहे हैं.पहले विदेश मंत्री का बयान सुनिए जो उन्होंने गुजरात के सूरत शहर में कहा है. उसके बाद उनके ही प्रवक्ता का बयान सुनिए.

आप अगर सोचने के मूड में हैं तो सोच सकते हैं कि जब प्रधानमंत्री के फोन पर रूस और यूक्रेन युद्ध रोक सकते हैं? तो कितनी देर के लिए युद्ध रोका गया? क्योंकि भारत के छात्रों को पोलैंड की सीमा तक आने में ही कई घंटे लग गए थे? क्या वाकई युद्ध रोका गया था? क्या ऐसी कोई भी ख़बर दुनिया के किसी भी अख़बार में छपी है?अगर युद्ध रोकने से प्रधानमंत्री मोदी की वाहवाही हो रही है तो इसे लेकर पुतिन अपनी वाहवाही क्यों नहीं करा रहे? 

दिल्ली हाई कोर्ट ने आज उमर ख़ालिद की ज़मानत याचिका खारिज कर दी. उमर को दिल्ली दंगों के मामले में साज़िश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया था. उनके खिलाफ UAPA की धारा लगाई गई है.जस्टिस सिदार्थ मृदुल  और जस्टिस रजनीश भटनागर की बेंच ने यह फैसला सुनाया. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बेंच ने कहा कि ज़मानत याचिका में कोई मेरिट नहीं है. जिनकी बेंच ने 30 मई को कहा था कि उमर खालिद का भाषण आतंकी कार्रवाई नहीं है. जिस भाषण की चर्चा हो रही है उसे उमर ने महाराष्ट्र के अमरावती में दिया था. उमर 14 सितंबर 2020 से जेल में हैं. 764 दिन हो चुके हैं. 

पर ख़बर यह नहीं है. शायद नहीं है. क्योंकि ख़बर तो वही है कि सीबीआई और स्पेशल कोर्ट ने बलात्कार और हत्या के आरोपियों को रिहा करने से मना कर दिया, गृहमंत्रालय ने रिहाई की मंज़ूरी दे दी. अब यही आज का दौर है. यही देश है. ब्रेक ले लीजिए.

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