सेना के जवान चीन से लगने वाली सीमा के पास आसानी से और कम समय में पहुंच सकें इसके लिए बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन (सीमा सड़क संगठन) इन दिनों अरुणाचल प्रदेश समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में सुरंगें, पुल और सड़कों के निर्माण का कार्य युद्ध स्तर पर चला रहा है. यही वजह है कि बीते तीन साल में अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे इलाकों में ढांचागत विकास पर करीब 1300 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. अरुणाचल प्रदेश के तवांग में बनाई जा रही सेला टनल (सुरंग) भी बॉर्डर रोड ऑर्गानाइजेशन द्वारा बनाई जा रही सुरंगों में से एक है.
बॉर्डर रोड्स की ओर बनाई जा रही इस सुरंग की वजह से सेना के लिए चीन से लगी सीमा पर आवाजाही काफी आसान हो जाएगी. दो किलोमीटर से ज्यादा लंबी इस सुरंग का इस्तेमाल सभी मौसम में किया जाएगा. उम्मीद जताई जा रही है इस सुरंग का काम इस साल जुलाई तक पूरा कर लिया जाएगा. सेला टनल की तरह ही नेचिफू टनल का काम भी तेजी से चल रहा है. करीब 500 मीटर लंबी यह सुरंग 5700 फुट की ऊंचाई पर है. इन दोनों सुरंगों के बनने के बाद सेना के लिए असम से तवांग तक जाना आसान हो जाएगा.
उन्होंने आगे कहा कि हलांकि चीन से लगी सीमा पर सड़क या पुल बनाना आसान नहीं होता है. मौसम प्रतिकूल होता है. तापमान माइनस में होता है. बावजूद इसके BRO के जवान दिन रात मेहनत करते हैं ताकि आम लोगों की सुविधा के साथ-साथ सेना दुश्मन की चुनौतियों का जवाब दे सकें. और जब जरूरत हो सीमा पर तोप, टैंक समेत दूसरा साजोसामान को जल्द से जल्द पहुंचाया जा सके.
उन्होंने कहा कि घाटी को लद्दाख से जोड़ने वाली जोज़िला टनल 2023 के अंत तक बनकर तैयार हो जाएगी. वहीं, शिंकुन ला सुरंग लद्दाख के लिए अंतिम चरण में है. यह लेह को अतिरिक्त कनेक्टिविटी प्रदान करेगी. इसके अलावा सासेर ला सुरंग से डीएस-डीबीओ सड़क के लिए वैकल्पिक कनेक्टिविटी होगी. केवल सुरंग ही नहीं बल्कि उत्तरी और पूर्वी सीमा पर पुल और सड़कें बनाने का काम भी जोर शोर से हो रहा है, ताकि सेना का मूवमेंट तेजी से हो सके.
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