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कानपुर के ब्राह्मण अनिरुद्ध पांडेय कैसे बने प्रेमानंद महाराज, बनारस में शिवभक्ति, फिर वृंदावन में राधा-कृष्ण भक्ति में डूबे

प्रेमानंद महाराज का जन्म कानपुर में हुआ. फिर उनकी आध्यात्मिक यात्रा काशी से शुरू हुई और फिर शिवभक्ति से राधा कृष्ण भक्ति की ओर उनका झुकाव हुआ और वो वृंदावन आ गए.

कानपुर के ब्राह्मण अनिरुद्ध पांडेय कैसे बने प्रेमानंद महाराज, बनारस में शिवभक्ति, फिर वृंदावन में राधा-कृष्ण भक्ति में डूबे
premanand maharaj
नई दिल्ली:

Premanand ji Maharaj News in Hindi: प्रेमानंद महाराज धर्म आध्यात्म और सत्संग की दुनिया में सम्मानित शख्सियतों में से एक हैं. राधा कृष्ण के अनन्य भक्त प्रेमानंद महाराज का वृंदावन में राधा केलि कुंज आश्रम है. उनके देश दुनिया में करोड़ों भक्त हैं, जिनमें विराट कोहली, शिल्पा शेट्टी जैसे सेलेब्रिटी भी शामिल हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि प्रेमानंद जी महाराज का जन्म कहां और कब हुआ. वो कैसे धर्म आध्यात्म से जुड़े. प्रेमानंद महाराज का कनेक्शन कानपुर और वाराणसी से भी है और फिर उन्हें मथुरा वृंदावन में आकर आत्मिक शांति मिली. कभी शिव भक्ति में डूबे प्रेमानंद महाराज कैसे राधा कृष्ण के अनन्य उपासक बने. आइए आपको प्रेमानंद महाराज की आध्यात्मिक यात्रा की रोचक कहानी बताते हैं.

प्रेमानंद महाराज का जन्म
प्रेमानंद महाराज का जन्मस्थान कानपुर है. कानपुर देहात के सरसौल क्षेत्र के अखरी गांव में प्रेमानंद महाराज (Premanand maharaj birthplace) पैदा हुए थे. प्रेमानंद उनका बाल्यकाल का नाम नहीं था. प्रेमानंद महाराज का असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय थे. उनकी मां रामा देवी और पिता शंभू पांडे थे और उनका परिवार खेती करता था. प्रेमानंद के एक भाई संस्कृत के प्रखर विद्वान थे. उनके सानिध्य में बेहद कम आयु में ही उनका धर्म आध्यात्म की ओर झुकाव हो गया और मद्भागवत का पाठ उन्होंने प्रारंभ कर दिया. हनुमान चालीसा का भी वो अनगिनत बार पाठ करते थे.

राधा राधवल्लभी संप्रदाय में दीक्षा ली
जानकारी के मुताबिक, प्रेमानंद महाराज ने 13 वर्ष की अवस्था में पहली बार दीक्षा ग्रहण की. तब उनका नाम अनिरुद्ध पांडे से आर्यन ब्रह्मचारी पड़ा. ये बात भी कही जाती है कि उनके दादाजी ने भी संन्यास ग्रहण किया था. फिर राधा राधवल्लभी संप्रदाय में प्रेमानंद महाराज ने संन्यास के साथ दीक्षा ग्रहण की. यहीं से उनका नाम अनिरुद्ध पांडे के स्थान पर आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी पड़ा. मथुरा वृंदावन में प्रवास से पहले प्रेमानंद ज्ञानमार्ग शाखा से जुड़े थे. फिर साधु-संतों की सलाह पर उन्होंने श्रीकृष्ण रासलीला देखी और फिर वो भक्ति मार्गी परंपरा के अगाध उपासक बन गए.

प्रेमानंद जी महाराज का वाराणसी प्रवास
प्रेमानंद महाराज घर परिवार की मोह माया से निकलने के बाद संन्यास के शुरुआती दौर में अत्यंत विचलित रहे. वो कुछ वक्त तक सरसौल के ही नंदेश्वर धाम में रहे. फिर भूख प्यास और भटकाव के बाद मोक्ष नगरी काशी पहुंचे. कहा जाता है कि यहीं गंगा किनारे स्नान ध्यान और तुलसी घाट पर पूजा अर्चना ही उनकी दिनचर्या बन गई. भीख में मिले भोजन से वो जिंदगी बिताने लगे. प्रेमानंद तुलसी घाट पर पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान शिव की उपासना और तप में लीन रहते थे. वाराणसी में ही हनुमान संस्कृत महाविद्यालय में चैतन्य लीला और रासलीला देख वो भाव विभोर हो गए. यहीं से उनका हृदय राधा कृष्ण भक्ति के लिए हिलोरे मारने लगा. इसी बेचैनी में वो वाराणसी से मथुरा वृंदावन आ गए.

वृंदावन का राधावल्लभ मंदिर बहुत प्रसिद्ध
कहा जाता है कि प्रेमानंद महाराज के गुरु श्रीहित गौरांगी शरण महाराज (बड़े गुरुजी) थे. सहचरी भाव के बड़े संतों में एक गौरांगी महाराज ने ही प्रेमानंद को राधा श्रीकृष्ण भक्ति की ओर आकर्षित किया. मथुरा का बांके बिहारी मंदिर और उसके बाद वृंदावन का राधावल्लभ मंदिर उनकी तपोस्थली बना. गौरांगी शरण महाराज से उनकी मुलाकात भी राधावल्लभ मंदिर में ही हुई. इस भेंट ने उनके मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला. गौरांगी शरण महाराज की संगत में प्रेमानंद महाराज लगभग 10 साल रहे. यहीं श्री राधा राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षा के साथ उनका नाम प्रेमानंद गोविंद शरण यानी प्रेमानंद महाराज पड़ा. राधा वल्लभ संप्रदाय (Radha Vallabha Sampradaya) की स्थापना 1535 में यानी लगभग 500 वर्ष पहले वृंदावन में ही हुई थी.

किडनी में संक्रमण
कहा जाता है कि उन्हें लगभग 35 साल की उम्र में पेट में भयंकर संक्रमण हुआ. रामकृष्ण मिशन के अस्पताल में उनका इलाज चला. मेडिकल जांच में पाया गया कि उनकी किडनियों को संक्रमण से काफी नुकसान पहुंचा है और उनके जीवन को खतरा है, हालांकि अपनी अदम्य शक्ति और राधा कृष्ण की भक्ति के कारण वो इस बीमारी से जूझते हुए भी ध्यान सत्संग में लगे रहते हैं.

श्रीहित राधा केली कुंज आश्रम
प्रेमानंद महाराज का वृंदावन के वराह घाट पर बना श्रीहित राधा केली कुंज आश्रम है. उन्होंने इसी नाम से 2016 में ट्रस्ट (Shri Hit Radha Keli Kunj Trust) की स्थापना की, जो समाज में गरीब, वंचितों की शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य कल्याणकारी कार्यों में मदद करता है. प्रेमानंद महाराज का जीवन राधा रानी की साधना में समर्पित है. प्रेमानंद महाराज तड़के लगभग 3 बजे श्री कृष्ण शरणम सोसायटी से रमणरेती स्थित आश्रम श्री हित राधा केलि कुंज तक भ्रमण करते हैं. प्रेमानंद महाराज भक्तों के साथ 2 किलोमीटर लंबी पदयात्रा करते हैं. हजारों की संख्या में भक्त गण उनकी एकमात्र झलक पाने के लिए रात से कतारबद्ध होकर खड़े रहते हैं. पहले प्रेमानंद महाराज वृंदावन की पूर्ण परिक्रमा करते थे लेकिन खराब स्वास्थ्य से वो ऐसा कर पाने में अब असमर्थ हैं.

राधा-कृष्ण पर रखा किडनी का नाम
प्रेमानंद महाराज की दोनों किडनियां कई वर्षों से खराब हैं. उन्हें दिन में कई बार डायलिसिस से गुजरना पड़ता है. मगर सत्संग और प्रवचन कार्यक्रम वो प्राय: रोज ही करते हैं. राज कुंद्रा समेत कई भक्तों ने उन्हें किडनी दान देने की पेशकश की उन्होंने वो इसे विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर चुके हैं. उन्होंने एक किडनी का नाम कृष्ण और दूसरी का राधा रखा है.

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विराट कोहली से शिल्पा शेट्टी तक भक्त
प्रेमानंद महाराज के अनुयायियों में विराट कोहली, संघ प्रमुख मोहन भागवत, शिल्पा शेट्टी जैसी बड़ी नामचीन हस्तियां भी हैं. सत्संग के दौरान भक्तों के सवालों के जवाब में उनकी कही बातों को लेकर कई बार विवाद भी हुआ है. हालांकि वो कंट्रोवर्सी से दूर ही रहना प्रसंद करते हैं. रामभद्राचार्य के हालिया बयान पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. प्रेमानंद महाराज का यूट्यूब चैनल भजन मार्ग पर सत्संग के वीडियो आते हैं, जिसके 1.5 करोड़ से ज्यादा फॉलोअर हैं.

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