प्रशांत किशोर (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
प्रशांत किशोर एक बार फिर सुर्खियों में हैं। अब यह कहा जा रहा है कि पंजाब में उनका कांग्रेस अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर से मतभेद हो गया है। वजह बताई जा रही है प्रशांत किशोर की कांग्रेस से निष्कासित दो नेताओं से मुलाकात, जिससे कैप्टन नाराज हैं और प्रशांत को औकात में रहने की बात कह रहे हैं। यानी कैप्टन यह तय करेंगे कि प्रशांत किशोर किससे मिलेगें और किससे नहीं।
प्रशांत को औकात में रहने में की बात कांग्रेस मुख्यालय में बैठे कुछ नेता भी कर रहे हैं, जो कई राज्यों के प्रभारी तो हैं मगर खुद चुनाव नहीं जीत सकते। राहुल गांधी से कुछ अरसे पहले जब यह पूछा गया था कि कांग्रेस में प्रशांत किशोर की क्या भूमिका होगी तब उन्होंने साफ बताया था कि वह पंजाब में चुनाव प्रचार की कमान संभालेंगे क्योंकि आजकल चुनाव प्रचार पहले से अलग हो गया है। कई तरह के प्रचार के मीडियम मौजूद हैं, जिसमें महारत हासिल करना किसी नेता के वश की बात नहीं है। उसके लिए एक प्रोफेशनल की जरूरत है और उसमें प्रशांत किशोर ने अपने को साबित किया है। फिर चाहे वह बीजेपी के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव हो और फिर नीतीश कुमार के लिए 2015 में..।
मगर कांग्रेस में ड्राइंग रूम पॉलिटिक्स करने वाले कुछ नेताओं को यह रास नहीं आ रहा है। प्रशांत किशोर ने एनडीटीवी इंडिया से बातचीत में कहा कि उनका किसी से भी कोई मतभेद नहीं है और उन्हें जो काम दिया गया है उसे वे करेंगे।
किशोर ने कहा कि मैं इस बात का आभारी हूं कि पार्टी ने मुझे यह काम सौंपा है, जिसे मैं पूरी ईमानदारी से कर रहा हूं। प्रशांत किशोर की भूमिका कांग्रेस के कुछ नेताओं को इसलिए खटक रही होगी कि वह सीधे राहुल गांधी को रिपोर्ट करते हैं और उनकी टीम का हिस्सा हैं।
उत्तर प्रदेश में उन्होंने सभी ब्लॉक स्तर के नेताओं से मुलाकात की है तब जाकर कहा कि वहां की कमान खुद राहुल या प्रियंका को अपने हाथ में लेनी चाहिए। ऐसा फीडबैक लगभग उत्तर प्रदेश के सभी ब्लॉक प्रमुखों ने अपने विचार में कहा है।
कांग्रेस के सभी नेताओं को शायद यह जानकारी न हो कि प्रशांत किशोर ने अपने करियर की शुरुआत राहुल गांधी के साथ ही की थी। तब भी यही बात हुई थी कि जितनी आजादी वह चाहते थे वह कांग्रेस में राहुल भी उन्हें नहीं दिला पाए। तब प्रशांत किशोर बीजेपी के साथ हो लिए। लोकसभा चुनाव में जीत का श्रेय लेने के चक्कर में प्रशांत का नेताओं ने किनारा किया तो नीतीश कुमार के पास चले गए। दरअसल, एक प्रोफेशनल होने के नाते प्रशांत अपने आपको साबित करना चाहते थे और बिहार चुनाव में उन्होंने यह साबित कर दिया कि यदि सही रणनीति हो और नेता का आप पर विश्वास हो तो आप चुनाव में धन, बल,सत्ता और दुष्प्रचार तक को मात दे सकते हैं। कांग्रेस नेताओं को यह समझना होगा कि प्रशांत किशोर कांग्रेस की मजबूरी है या प्रशांत की मजबूरी कांग्रेस है।
कांग्रेस जैसी पार्टी में इन सबके बाद भी प्रशांत किशोर के पास चुनौती होगी कि पंजाब में वह कांग्रेस की डूबती नैया पार लगा पाएंगे या नहीं, क्योंकि 74 साल के कैप्टन के साथ 39 साल के प्रशांत का तालमेल बिठाना उतना आसान नहीं है। यदि हारे तो कांग्रेसी तुरंत हार का ठीकरा प्रशांत के सिर पर फोड़ने से नहीं चुकेंगे और बोलेंगे मैं तो पहले ही कह रहा था कि इससे कुछ नहीं होने वाला ओवररेटेड है...
प्रशांत को औकात में रहने में की बात कांग्रेस मुख्यालय में बैठे कुछ नेता भी कर रहे हैं, जो कई राज्यों के प्रभारी तो हैं मगर खुद चुनाव नहीं जीत सकते। राहुल गांधी से कुछ अरसे पहले जब यह पूछा गया था कि कांग्रेस में प्रशांत किशोर की क्या भूमिका होगी तब उन्होंने साफ बताया था कि वह पंजाब में चुनाव प्रचार की कमान संभालेंगे क्योंकि आजकल चुनाव प्रचार पहले से अलग हो गया है। कई तरह के प्रचार के मीडियम मौजूद हैं, जिसमें महारत हासिल करना किसी नेता के वश की बात नहीं है। उसके लिए एक प्रोफेशनल की जरूरत है और उसमें प्रशांत किशोर ने अपने को साबित किया है। फिर चाहे वह बीजेपी के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव हो और फिर नीतीश कुमार के लिए 2015 में..।
मगर कांग्रेस में ड्राइंग रूम पॉलिटिक्स करने वाले कुछ नेताओं को यह रास नहीं आ रहा है। प्रशांत किशोर ने एनडीटीवी इंडिया से बातचीत में कहा कि उनका किसी से भी कोई मतभेद नहीं है और उन्हें जो काम दिया गया है उसे वे करेंगे।
किशोर ने कहा कि मैं इस बात का आभारी हूं कि पार्टी ने मुझे यह काम सौंपा है, जिसे मैं पूरी ईमानदारी से कर रहा हूं। प्रशांत किशोर की भूमिका कांग्रेस के कुछ नेताओं को इसलिए खटक रही होगी कि वह सीधे राहुल गांधी को रिपोर्ट करते हैं और उनकी टीम का हिस्सा हैं।
उत्तर प्रदेश में उन्होंने सभी ब्लॉक स्तर के नेताओं से मुलाकात की है तब जाकर कहा कि वहां की कमान खुद राहुल या प्रियंका को अपने हाथ में लेनी चाहिए। ऐसा फीडबैक लगभग उत्तर प्रदेश के सभी ब्लॉक प्रमुखों ने अपने विचार में कहा है।
कांग्रेस के सभी नेताओं को शायद यह जानकारी न हो कि प्रशांत किशोर ने अपने करियर की शुरुआत राहुल गांधी के साथ ही की थी। तब भी यही बात हुई थी कि जितनी आजादी वह चाहते थे वह कांग्रेस में राहुल भी उन्हें नहीं दिला पाए। तब प्रशांत किशोर बीजेपी के साथ हो लिए। लोकसभा चुनाव में जीत का श्रेय लेने के चक्कर में प्रशांत का नेताओं ने किनारा किया तो नीतीश कुमार के पास चले गए। दरअसल, एक प्रोफेशनल होने के नाते प्रशांत अपने आपको साबित करना चाहते थे और बिहार चुनाव में उन्होंने यह साबित कर दिया कि यदि सही रणनीति हो और नेता का आप पर विश्वास हो तो आप चुनाव में धन, बल,सत्ता और दुष्प्रचार तक को मात दे सकते हैं। कांग्रेस नेताओं को यह समझना होगा कि प्रशांत किशोर कांग्रेस की मजबूरी है या प्रशांत की मजबूरी कांग्रेस है।
कांग्रेस जैसी पार्टी में इन सबके बाद भी प्रशांत किशोर के पास चुनौती होगी कि पंजाब में वह कांग्रेस की डूबती नैया पार लगा पाएंगे या नहीं, क्योंकि 74 साल के कैप्टन के साथ 39 साल के प्रशांत का तालमेल बिठाना उतना आसान नहीं है। यदि हारे तो कांग्रेसी तुरंत हार का ठीकरा प्रशांत के सिर पर फोड़ने से नहीं चुकेंगे और बोलेंगे मैं तो पहले ही कह रहा था कि इससे कुछ नहीं होने वाला ओवररेटेड है...
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