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This Article is From Sep 01, 2020

अंतिम सफर पर निकले प्रणब दा, हमेशा याद आएगी उनकी एक तस्वीर

भारत रत्न, पूर्व राष्ट्रपति और कई बार देश के वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया है. थोड़ी देर पहले ही उनके पार्थिव शरीर को लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर पहुंचा गया है. प्रणब दा जब अंतिम सफर हैं तो उनकी एक तस्वीर हमेशा याद आएगी जिसमें वह बजट पेश करने से पहले हमेशा अपनी टीम के साथ एक फोटो खिंचाते हैं.

अंतिम सफर पर निकले प्रणब दा, हमेशा याद आएगी उनकी एक तस्वीर
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया है.
नई दिल्ली:

भारत रत्न, पूर्व राष्ट्रपति और कई बार देश के वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया है. थोड़ी देर पहले ही उनके पार्थिव शरीर को लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर पहुंचा गया है. प्रणब दा जब अंतिम सफर हैं तो उनकी एक तस्वीर हमेशा याद आएगी जिसमें वह बजट पेश करने से पहले हमेशा अपनी टीम के साथ एक फोटो खिंचाते हैं. देश की एक पूरी पीढ़ी ने देखा है. कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले मुखर्जी ने कई प्रधानमंत्रियों का साथ काम किया है. उनके बारे में कहा जाता है कि प्रणब मुखर्जी एक ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जो भारत को कभी नहीं मिले. कहा जाता है कि उनके मन में हमेशा एक टीस रही कि वह देश के प्रधानमंत्री नहीं बन पाए. वह देश के 13वें राष्ट्रपति बने. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खास लोगों में से एक रहे कांग्रेस की सरकारों में कई अहम जिम्मेदारियां संभाली हैं, जिनमें वित्त मंत्रालय सहित कई अहम पद शामिल हैं. उनका संसदीय करियर करीब पांच दशक पुराना था. 

जो 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप प्रणब मुखर्जी ने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद कई जिम्मेदारियों को निभाते हुए उनकी अंतिम जिम्मेदारी राष्ट्रपति पद पर थी. साल 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने. एक सर्वेक्षण के अनुसार, साल 1984 में प्रणव मुखर्जी दुनिया के पांच सर्वोत्तम वित्त मंत्रियों में से एक थे. वित्त मंत्री के रूप में प्रणव के कार्यकाल के दौरान डॉ॰ मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे. 

कुछ लोग बताते हैं कि जब मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री बने तो कैबिनेट की बैठक में प्रणब दा को मनमोहन ने सर कहा तो उन्होंने यह कहने से मना किया. प्रणब दा का कहना था कि प्रधानमंत्री का अपने मंत्री को सर कहना उचित नहीं है. लेकिन मनमोहन सिंह ने दोबारा सर कहा तो प्रणब दा अपने अंदाज में झिड़कते हुए कहा कि अगर दोबारा कहा तो वो बैठक छोड़कर चले जाएंगे. इसके बाद तय हुआ कि मनमोहन सिंह उन्हें प्रणब दा कहेंगे. 

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