जयपुर:
डॉक्टर और चिकित्साकर्मियों के कमी के चलते राजस्थान सरकार अब स्वास्थ्य सेवाओं में पीपीपी मॉडल अपनाना चाहती है। शुरुआत में प्रयोग के तौर पर राजस्थान में 35 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को सरकार से हटाकर प्राइवेट सेक्टर को दे दिया है। सरकार का तर्क है कि आज जहां 10,996 चिकित्सकों की जरूरत है, वहां 3034 पद रिक्त हैं। नर्सिंग स्टाफ में 67,755 पदों में से 37,927 पद रिक्त हैं।
इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं सुचारू रूप से चल ही नहीं पाती, क्योंकि गांव में लोग पोस्टिंग आते ही अपना ट्रांसफर करवा लेते हैं और ऐसे में सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं मातृ एवं शिशु सेवाएं।
जयपुर के पास अचरोल गांव में अब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र निम्स अस्पताल चला रहा है। प्रयोग के तौर पर राजस्थान सरकार ने ऐसे ही 35 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी हाथों में दे दिया है।
एनडीटीवी से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा, हमने ऐसा इसलिए किया है, क्योंकि हमारे पास डॉक्टर्स की कमी है। लोग उम्मीद करते हैं प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पर डॉक्टर मिलेगा, लेकिन गांव में डॉक्टर्स रहना नहीं चाहते। अगर हम इससे पीपीपी मोड में चलाएंगे तो शायद गांव में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हो पाएंगी।
चिकित्सकों की कमी सरकार के लिए एक चुनौती जरूर है। आज की तारीख में राजस्थान में 30% डॉक्टर्स नहीं हैं। सरकार को जरूरत है 415 स्पेशलिस्ट्स की, लेकिन रिक्त पद हैं 200, उन्हें चाहिए 3011 जूनियर स्पेशलिस्ट्स इनके पास हैं सिर्फ 1596 और स्त्री रोग विशेषज्ञों में हालत सबसे खराब है। जरूरत है 412 चिकित्सकों की सरकार के पास है सिर्फ 231
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को सरकार भी कुछ शर्तों पर निजी कंपनियों को दे रही है। इनमें सरकार के नियमों के अनुसार, हमेशा दो चिकित्सक, नर्स, लैब तकनीशियन केंद्र में मौजूद रहने चाहिए। सारी सुविधाएं सरकारी दरों पर ही उपलब्ध होगीं, लेकिन अगर निजी कंपनी अतिरिक्त सेवा देना चाहती है जैसे XRay तो वे जांचें भी सरकारी दरों पर होंगी।
अचरोल के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर आई एक महिला ने कहा, पहले जब हम यहां आते थे तो कभी डॉक्टर मिलता था, कभी नहीं, लेकिन अब यहां डॉक्टर बैठे रहते हैं। अपनी बहू की डिलीवरी करवाने आई प्रेम बाई ने कहा, पहले यहां इतनी साफ-सफाई नहीं दिखाई देती थी, रेत और धूल-मिट्टी अब नहीं दिखती।
लेकिन इस प्रयोग को लेकर चिंताएं भी हैं। विपक्ष और सामाजिक संस्थाओं का कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों में देकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रही है। साथ ही ये निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने का एक तरीका है।
सरकार के हट जाने से ज़िम्मेदारी किसकी होगी और यह कैसे तय होगा कि यहां सुविधाएं नियमों के अनुसार उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
एक समाज सेवी संस्था प्रयास के साथ काम कर रहे डॉ. नरेंद्र का कहना है कि अगर सरकारी PAC हट जाएंगे तो जिसे यह काम सौंपा जाएगा वे वहां मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ाने के लिए उपयोग करेगा और दूसरा बड़े अस्पतालों में मरीजों को ले जा कर उनका इलाज वहां कराएंगे।
फिलहाल राजस्थान सरकार ने 35 ऐसे स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी हाथों में दिया है और अब योजना है 300 और को पीपीपी मोड पर चलाने की है।
इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं सुचारू रूप से चल ही नहीं पाती, क्योंकि गांव में लोग पोस्टिंग आते ही अपना ट्रांसफर करवा लेते हैं और ऐसे में सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं मातृ एवं शिशु सेवाएं।
जयपुर के पास अचरोल गांव में अब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र निम्स अस्पताल चला रहा है। प्रयोग के तौर पर राजस्थान सरकार ने ऐसे ही 35 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी हाथों में दे दिया है।
एनडीटीवी से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा, हमने ऐसा इसलिए किया है, क्योंकि हमारे पास डॉक्टर्स की कमी है। लोग उम्मीद करते हैं प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पर डॉक्टर मिलेगा, लेकिन गांव में डॉक्टर्स रहना नहीं चाहते। अगर हम इससे पीपीपी मोड में चलाएंगे तो शायद गांव में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हो पाएंगी।
चिकित्सकों की कमी सरकार के लिए एक चुनौती जरूर है। आज की तारीख में राजस्थान में 30% डॉक्टर्स नहीं हैं। सरकार को जरूरत है 415 स्पेशलिस्ट्स की, लेकिन रिक्त पद हैं 200, उन्हें चाहिए 3011 जूनियर स्पेशलिस्ट्स इनके पास हैं सिर्फ 1596 और स्त्री रोग विशेषज्ञों में हालत सबसे खराब है। जरूरत है 412 चिकित्सकों की सरकार के पास है सिर्फ 231
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को सरकार भी कुछ शर्तों पर निजी कंपनियों को दे रही है। इनमें सरकार के नियमों के अनुसार, हमेशा दो चिकित्सक, नर्स, लैब तकनीशियन केंद्र में मौजूद रहने चाहिए। सारी सुविधाएं सरकारी दरों पर ही उपलब्ध होगीं, लेकिन अगर निजी कंपनी अतिरिक्त सेवा देना चाहती है जैसे XRay तो वे जांचें भी सरकारी दरों पर होंगी।
अचरोल के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर आई एक महिला ने कहा, पहले जब हम यहां आते थे तो कभी डॉक्टर मिलता था, कभी नहीं, लेकिन अब यहां डॉक्टर बैठे रहते हैं। अपनी बहू की डिलीवरी करवाने आई प्रेम बाई ने कहा, पहले यहां इतनी साफ-सफाई नहीं दिखाई देती थी, रेत और धूल-मिट्टी अब नहीं दिखती।
लेकिन इस प्रयोग को लेकर चिंताएं भी हैं। विपक्ष और सामाजिक संस्थाओं का कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों में देकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रही है। साथ ही ये निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने का एक तरीका है।
सरकार के हट जाने से ज़िम्मेदारी किसकी होगी और यह कैसे तय होगा कि यहां सुविधाएं नियमों के अनुसार उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
एक समाज सेवी संस्था प्रयास के साथ काम कर रहे डॉ. नरेंद्र का कहना है कि अगर सरकारी PAC हट जाएंगे तो जिसे यह काम सौंपा जाएगा वे वहां मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ाने के लिए उपयोग करेगा और दूसरा बड़े अस्पतालों में मरीजों को ले जा कर उनका इलाज वहां कराएंगे।
फिलहाल राजस्थान सरकार ने 35 ऐसे स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी हाथों में दिया है और अब योजना है 300 और को पीपीपी मोड पर चलाने की है।
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