ओडिशा को लेकर क्या बदल गई बीजेपी की रणनीति...? ये सवाल इसलिए, क्योंकि जिन दलों में दो महीने पहले तक गठबंधन की चर्चा थी, आज वे क्यों एक-दूसरे के आमने-सामने हैं... जिन दो नेताओं की मित्रता और घनिष्ठ संबंधों की मिसाल दी जाती थी, वे आज क्यों एक-दूसरे पर तीखा व्यक्तिगत हमला कर रहे हैं. बात हो रही है भारतीय जनता पार्टी (BJP) और बीजू जनता दल (BJD)की... नवीन पटनायक (Naveen Patnaik) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की.
PM मोदी का वार CM पटनायक का पलटवार
पीएम मोदी ने नवीन पटनायक पर शनिवार को तीखा हमला किया... उन्होंने ओडिशा में चुनाव प्रचार में पूछा कि 24 साल से ओडिशा के मुख्यमंत्री पद पर काबिज नवीन पटनायक बिना कागज देखे राज्य के सभी जिलों और उनकी राजधानियों के नाम बता सकते हैं? पीएम मोदी ने कहा कि 10 जून को ओडिशा को बीजेपी का मुख्यमंत्री मिलेगा. इसके बाद पटनायक ने देर रात एक वीडियो बयान जारी कर पीएम मोदी से ओडिशा के हितों से जुड़े वादों के बारे में पूछा. पटनायक ने पूछा कि पीएम मोदी ने पिछले दस साल में उड़िया भाषा के लिए क्या किया या ओडिशा के सपूतों को सम्मान देने में कोताही क्यों की? पटनायक ने कहा कि दस जून को कुछ नहीं होगा, बीजेपी अगले दस साल तक राज्य में सत्ता में नहीं आ सकेगी. भगवान जगन्नाथ की कृपा से ओडिशा में छठी बार बीजेडी की सरकार बनेगी.
बीजेपी और बीजेडी के बीच क्यों आई कड़वाहट?
राजनीतिक विश्लेषक सीएम नवीन पटनायक और पीएम नरेंद्र मोदी के इन तेवरों को नूरा-कुश्ती मानते हैं. पिछले दस वर्षों में तकरीबन हर विवादास्पद मुद्दे पर बीजेडी ने केंद्र में मोदी सरकार का साथ दिया है. राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेडी, एनडीए के साथ खड़ी नजर आई है. दोनों नेताओं के रिश्ते काफी मधुर हैं. नवीन पटनायक कुछ महीने पहले मोदी सरकार की प्रशंसा करते हुए दस में से आठ नंबर दे चुके थे. वहीं, पीएम मोदी भी पटनायक के नेतृत्व की प्रशंसा कर उन्हें अपना मित्र बता चुके थे. दोनों पार्टियों के बीच लोकसभा और विधानसभा चुनाव में गठबंधन की बातचीत भी हुई. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी और बीजेडी के बीच कड़वाहट इस हद तक बढ़ गई है कि दोनों पार्टियों के शीर्ष नेता कड़वी जबान का इस्तेमाल कर रहे हैं.
ये है बीजेपी और बीजेडी के बीच विवाद की जड़
बीजेपी नेताओं के मुताबिक, ताजा विवाद की जड़ पूर्व नौकरशाह और नवीन पटनायक के बेहद करीबी वी. के. पांडियन हैं. मूलत तमिलनाडु के रहने वाले पांडियन पिछले दो दशक से ओडिशा में नौकरी कर रहे थे. वे नवीन पटनायक के करीब आए और अब नौकरी छोड़ कर राजनीति में आ चुके हैं. उन्हें बीजेडी में नंबर दो का दर्जा प्राप्त है. हाल ही में चुनाव आयोग ने उनकी आईएएस पत्नी का तबादला करने का आदेश भी दिया था. बीजेपी ने पांडियन की सक्रियता और उनके बढ़ते कद को उड़िया अस्मिता से जोड़ा है. इसी अस्मिता के नाम पर बीजेपी ने बीजेडी से गठबंधन की चर्चा को बीच में ही छोड़ कर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया. नवीन पटनायक का दो दशक से भी अधिक समय तक सीएम रहने के बावजूद ओडिशा की भाषा और संस्कृति से न जुड़ना भी बीजेपी उड़िया अस्मिता का एक मुद्दा बनाती आई है. राज्य के जिलों के नाम पूछना इसी का हिस्सा है. बीजेडी के कई संस्थापक सदस्य पांडियन को मिलते महत्व से नाराज हैं. इनमें से कुछ बीजेडी छोड़ कर बीजेपी के साथ आ गए.
ओडिशा में बीजेडी का विकल्प बनना चाहती है बीजेपी
ओडिशा में बीजेपी अपनी ताकत लगातार बढ़ाती जा रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 21 में से आठ सीटें जीती थीं. वहीं, विधानसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य की 147 में से 23 सीटें मिलीं थीं. राज्य बीजेपी नेताओं को लगता है कि जब भी ओडिशा की जनता परिवर्तन का मूड बनाएगी, बीजेपी स्वाभाविक तौर पर जनता की पसंद बनेगी. उनका मानना है कि पटनायक इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री रह लिए इसलिए जनता अब उनका विकल्प तलाश रही है. बीजेडी के कई ताकतवर नेताओं को बीजेपी अपने पाले में लाई है और यह भी दोनों पार्टियों के बीच तकरार का कारण है.
...ताकि कांग्रेस को न मिल जाए विपक्ष का पूरा स्पेस!
ओडिशा में कांग्रेस पूरी तरह से हाशिए पर जा चुकी है. ऐसे में मोटे तौर पर मुकाबला बीजेपी और बीजेडी के बीच ही है. दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन न होने का एक बड़ा कारण यह भी था कि इससे कांग्रेस को विपक्ष का पूरा स्पेस लेने का मौका मिल जाता. हालांकि, जानकार मानते हैं कि पीएम मोदी और नवीन पटनायक के बीच इस तीखी नोकझोंक के बावजूद दोनों पार्टियों के बीच एक अजीब किस्म की गर्माहट है, जो चुनाव के बाद दोनों को एक बार फिर करीब ला सकती है. दबी जुबान में चर्चा यह भी होती है कि दोनों पार्टियों में एक तरह की सहमति है, जिसके तहत विधानसभा चुनाव में बीजेडी और लोकसभा चुनाव में बीजेपी आगे रहे. इस तर्क के समर्थन में कहा जाता है कि इसी सहमति के तहत बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में बीजेडी के खिलाफ और बीजेडी ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ कई कमजोर उम्मीदवार उतारे हैं.
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