"'सेंगोल' पर सवाल उठाने वालों को परंपरा की समझ नहीं...", NDTV से बोलीं केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी

मीनाक्षी लेखी ने कहा कि जो लोग देश की परंपराओं से अनभिज्ञ हैं उन्हें मैं ये बताना चाहती हूं कि हर वो चीज जो भली है, वो सबके लिए है, वो किसी धर्म विशेष के लिए नहीं है.

नई दिल्ली:

पीएम मोदी कल यानी रविवार को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे. उद्घाटन समारोह को लेकर सभी तरह की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. नया बनकर तैयार हुआ ये संसद भवन त्रिकोण के आकार का है. संसद भवन की नई ईमारत में आधुनिक संचार सुविधाएं भी मौजूद हैं. रविवार को ही नए संसद भवन के उद्घाटन के समय लोकसभा अध्यक्ष के सीट के बगल में सेंगोल को भी स्थापित किया जाएगा. नए संसद भवन की खासीयत और सेंगोल के महत्तव को लेकर NDTV ने केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी से खास बात की. 

"हमें भारत के इतिहास पर गौरवान्वित होना चाहिए"

NDTV से बातचीत के दौरान मीनाक्षी लेखी ने कहा कि भारतीय संस्कृति और कला का समावेश नई संसद भवन में मिलेगा. उन्होंने कहा कि लेकिन अगर आधुनिक भारत में जब हम आजादी का अमृत मोहत्सव मना रहे हैं और जब अमृत काल शुरू हुआ तो अमृत काल की इससे बेहतर शुरुआत नहीं हो सकती थी, जब देश के पास अपनी नई संसद भवन हो. हर वो चीज जोकि हमें याद दिलाती है भारत के इतिहास की जिसपर हमे गौरवान्वित होना चाहिए. उसमें एक भारत की शिल्पकला, भारत की परंपराएं और भारत का इतिहास इसमें शामिल है और ये सब इस नई संसद के माध्यम से सामने आएगा. 

"पहले के लोगों ने भारत के इतिहास को सही से नहीं दर्शाया"

'सेंगोल' को लेकर हो रहे विवाद पर भी मीनाक्षी लेखी ने अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि मैं उन लोगों पर आरोप नहीं लगाती जो सेंगोल को लेकर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि इसकी वजह है. वजह ये है कि भारत की जो सर्वश्रेष्ठ परंपराएं है उससे ये लोग अनभिज्ञ हैं. और उनकी अनभिज्ञता का कारण है कि भारत के इतिहास को कभी सही तरीके से दर्शाया ही नहीं गया, अगर दर्शाया गया होता तो शायद इस तरीके की बात ये लोग नहीं करते. मैं आपको बताना चाहती हूं कि वैदिक काल में जो राजा है, उसका चयन एक चुनाव के माध्यम से होता था. यानी तकरीबन आज के जो प्रधानमंत्री हैं उन्हें ही राजन कहा जाता था. राजन एक टाइटल होता था.

चुनाव की दृष्टि से सबके बीच में एक होते थे और सब बराबर होते थे.वैदिक काल से लेकर कई हजार ईशा पूर्व की बात करें तो तब भी भारत था. तब भारत में परंपराएं भी थी और भारत में धर्म भी था. सातवीं शताब्दी में इस्लाम आया. यानी उससे पहले भी व्यवस्थाएं थीं सरकारे थीं. मगर बदलाव क्या आया कि धर्म को जो एक कानून, नियम और व्यवस्थाएं थीं, उसकी परिभाषा बदल दी. धर्म को इन्होंने संकीर्ण नजरिए से देखना शुरू कर दिया. वो संकीर्णता आज भी इनकी भाषा में मिलती है. धर्म का अर्थ था वो देश का सही नियम, कानून और सही आचरण, वो धर्म था. आचरण आपका सही रहना चाहिए, और राजा का आचरण क्या है जो अपने समाज की सेवा करे, अपने समाज की चिंता करे और अपने समाज की रक्षा करे. वही सही आचरण है. और चोरी-चकारी और बेईमानी नहीं कर सकता. 

"देश का नियम,कानून और धर्म ही सर्वश्रेष्ठ"

जो लोग देश की परंपराओं से अनभिज्ञ हैं उन्हें मैं ये बताना चाहती हूं कि हर वो चीज जो भली चीज है, वो सबके लिए है, वो किसी धर्म विशेष के लिए नहीं है. इस देश के परंपरा के अनुसार वैदिक काल से मध्यकालिन भारत तक राजा का जब राज्याभिषेक होता था तो राजा खड़ा होकर कहता था कि मैं सर्वश्रेष्ठ हूं तो राज्यपुरोहित उसके सर पर ये राज्यदंड मारता था और कहता था कि तुम सर्वश्रेष्ठ नहीं हो. देश का नियम,कानून, धर्म सर्वश्रेष्ठ है और धर्म की रक्षा के लिए तुम्हे ये पद मिला है. 

"सेंगोल धर्म का प्रतीक है"

मीनाक्षी लेखी ने आगे कहा कि इस देश में 'कानून का शासन' की परंपरा काफी पुरानी है. अपनी जो लोकतांत्रिक परंपराएं हैं अपनी जो अच्छी चीजें हैं, उसे आप याद नहीं रखते. अगर आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए भी अमृत काल में भी देश की जो जनता है उसतक नहीं पहुंचे तो इसका मतलब कि आप क्या कर रहे हैं. देश की जो अच्छी चीजें हैं उसे सबको बतानी है और धर्म को संकीर्णता से नहीं लेना है. आप निजी जीवन में आपको कोई भी धर्म है लेकिन राज्य व्यवस्था में एक ही धर्म है और वो है देशभक्ति. और उस देशभक्ति में चोरी-चकारी, मारपीट, गुंडागर्दी, बेईमानी जैसी चीज नहीं कर सकते आप. राजा भ्रष्टाचारी नहीं हो सकता. मगर इस देश ने वो भी देखा है. तो जो लोग इस देश की परंपरा से अनभिग्य हैं वो लोग ही ऐसी बातें करते हैं. मैं आपको बता दूं कि सेंगोल धर्म का प्रतीक है. जो सेंगोल है अभी है, इसे दक्षिण भारतीय परंपरा से बनवाया गया है. 

"प्रधानमंत्री देश की आत्मा को समर्पित हैं"

उस समय सी राजगोपालाचार्य गवर्नर जनरल रह चुके थे. उनसे बात हुई तो दक्षिण भारतीय परंपराओं से अवगत थे. तो उन्होंने दक्षिण भारतीय मठ और स्वर्णकार से उनसे बात करके उन्होंने इस सेंगोल को बनवाया. वो इस व्यवस्था को चोल साम्राज्य की व्यवस्था से जोड़ रहे थे. लेकिन ये सिर्फ चोल साम्राज्य तक सीमित नहीं है, इससे पहले भी शिवाजी, अशोक और जितने भी रहे सबने इसे माना. ऐसा इसलिए क्योंकि ये धर्म दंड का प्रतीक है. और चोल साम्राज्य की व्यवस्था से चोल के समय पर वो शिव भक्त थे, तो नंदी जो हैं वो शिव जी के सेवक हैं.

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यानी जब राजा के हाथ में सेंगोल है तो उसे याद रखना है कि शिव जो हैं वो इस देश की आत्मा हैं. तो जैसे शिवजी को समर्पित है नंदी वैसे ही देश का प्राधनमंत्री समपर्ति होगा इस देश की आत्मा को. और समर्पण का जो भाव है, चार पैर जो हैं नंदी के. वो चार सिद्धांतों को दिखाता है. जिनमें सत्य, नियम, न्याय और तपस. नंदी जो है वो समपर्ण का भाव और चार सिद्धांत है. जिसके ऊपर ही राजशासन चलेगा उस व्यवस्था को दर्शाने का प्रतीक है. जो प्रतीक है उसका सही समझ औऱ उसका ज्ञान सबकी दृष्टि बदले, ये उसी का प्रतीक है.