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...तो फिर तमिल फिल्मों की हिंदी में डबिंग क्यों? पवन कल्याण के सवाल का डीएमके ने दिया जवाब

Pawan Kalyan's Question On Tamil Films Dubbing: भाजपा ने कल्याण की टिप्पणी का समर्थन किया. पार्टी ने तर्क दिया कि भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी को दक्षिणी राज्यों में और अधिक आक्रामक तरीके से बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

...तो फिर तमिल फिल्मों की हिंदी में डबिंग क्यों? पवन कल्याण के सवाल का डीएमके ने दिया जवाब

Pawan Kalyan's Question On Tamil Films Dubbing: द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने आज अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण के भाषा विवाद पर किए सवाल का जवाब दिया. आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने तमिलनाडु के राजनेताओं पर पाखंड का आरोप लगाया था. उन्होंने सवाल किया था कि वे हिंदी थोपने का विरोध क्यों करते हैं, जबकि तमिल फिल्मों को व्यावसायिक लाभ के लिए हिंदी में डब करने की अनुमति देते हैं.

डीएमके प्रवक्ता डॉ. सैयद हफीजुल्लाह ने कल्याण के तर्क को खारिज करते हुए इसे भाषाई नीतियों पर तमिलनाडु के रुख की खोखली समझ बताया. उन्होंने कहा, "तमिलनाडु ने कभी भी हिंदी या किसी अन्य भाषा को सीखने वाले व्यक्तियों का विरोध नहीं किया है. हम अपने राज्य के लोगों पर हिंदी या किसी भी भाषा को थोपने का विरोध करते हैं."

डीएमके का यह खंडन राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और केंद्र द्वारा हिंदी को बढ़ावा दिए जाने पर बहस के बीच आया है, जिसका तमिलनाडु ने ऐतिहासिक रूप से विरोध किया है. डीएमके नेताओं का कहना है कि भाषा नीति को व्यावसायिक निर्णयों - जैसे फिल्मों की डबिंग - के बराबर मानना ​​एक अति सरलीकरण है, जो राज्य की दीर्घकालिक भाषाई स्थिति की अनदेखी करता है.

पवन कल्याण ने क्या कहा

जनसेना पार्टी के संस्थापक, एनडीए के एक प्रमुख सहयोगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक कल्याण ने हिंदी के प्रति उनके विरोध के लिए तमिलनाडु के राजनेताओं पर निशाना साधा. उन्होंने सवाल किया कि तमिलनाडु के नेता हिंदी का विरोध क्यों करते हैं, जबकि तमिल फिल्मों को राष्ट्रीय दर्शकों को ध्यान में रखते हुए हिंदी में डब किया जाता रहा है.

कल्याण ने पूछा, “मुझे समझ में नहीं आता कि कुछ लोग संस्कृत की आलोचना क्यों करते हैं. तमिलनाडु के राजनेता हिंदी का विरोध क्यों करते हैं, जबकि वित्तीय लाभ के लिए अपनी फिल्मों को हिंदी में डब करने की अनुमति देते हैं? वे बिहार से मजदूर चाहते हैं, लेकिन हिंदी का विरोध कर रहे हैं. यह किस तरह का तर्क है?”

डीएमके ने जवाब देते हुए कहा कि तमिलनाडु में पहले से ही हिंदी प्रचार सभाएं हैं, जो इच्छुक लोगों को स्वेच्छा से हिंदी सिखाती हैं. हफीजुल्लाह ने कहा, "अगर लोग हिंदी सीखना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है. मुद्दा तब उठता है जब केंद्र सरकार एनईपी या पीएम श्री स्कूलों जैसी नीतियों के माध्यम से हिंदी सीखने को अनिवार्य बनाती है." वरिष्ठ डीएमके नेता टीकेएस एलंगोवन ने हफीजुल्लाह के बयान को दोहराया और कहा कि भाषा के मुद्दे पर तमिलनाडु की हमेशा यही स्थिति रही है.

डीएमके नेता अडिग

एलंगोवन ने कहा, "हम 1938 से ही हिंदी का विरोध कर रहे हैं. हमने राज्य विधानसभा में कानून पारित किया था कि तमिलनाडु हमेशा दो-भाषा फार्मूले का पालन करेगा, क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र के विशेषज्ञों की सलाह और सुझाव के कारण ऐसा किया गया था, न कि अभिनेताओं की. यह विधेयक 1968 में ही पारित हो गया था, जब पवन कल्याण का जन्म भी नहीं हुआ था. उन्हें तमिलनाडु की राजनीति का पता नहीं है. यह पहली बार नहीं है जब हमने हिंदी का विरोध किया है, क्योंकि हमें लगता है कि मातृभाषा में शिक्षा लोगों को प्रशिक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका है. वह (पवन कल्याण) किसी तरह भाजपा का समर्थन करना चाहते हैं, ताकि उन्हें भाजपा सरकार से कुछ लाभ मिल सके."

भाजपा ने कल्याण की टिप्पणी का समर्थन किया. पार्टी ने तर्क दिया कि भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी को दक्षिणी राज्यों में और अधिक आक्रामक तरीके से बढ़ावा दिया जाना चाहिए. भाजपा नेता विक्रम रंधावा ने कहा, "हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है और सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि यह आम जनता तक पहुंचे. दुर्भाग्य से, पिछली सरकारों ने राष्ट्रवाद की संस्कृति को दबाने की कोशिश की है. हिंदी का उपयोग दक्षिण में भी मजबूती से लागू किया जाना चाहिए."
 

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