Pappu Yadav Lalu Yadav Tejashwi Yadav Politics : राकेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को बिहार क्या अब देश में भी ज्यादातर लोग जानने लगे हैं. कभी बाहुबली की पहचान रखने वाले पप्पू यादव ने लालू यादव से राजनीति का ककहरा सीखा, लेकिन लंबे समय तक दोनों का साथ टिक नहीं पाया. पप्पू यादव अपनी शर्तों पर राजनीति करते रहे, लेकिन कभी लालू यादव के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाए. खुद को लालू यादव का तीसरा बेटा तक कहने वाले पप्पू यादव की उनसे अदावत भी कम नहीं रही है. फिर भी पप्पू यादव क्यों खुद को उनसे दूर नहीं कर पाते?
खट्टे-मीठे रिश्ते में आई कड़वाहट
पप्पू यादव की जन्मस्थली मधेपुरा है. वही मधेपुरा जो लालू यादव और शरद यादव की सबसे लड़ाई का केंद्रबिंदु बनी थी. पप्पू यादव चौथी बार पूर्णिया से सांसद बने हैं और दो बार मधेपुरा से सांसद रह चुके हैं. मगर इस बार की जीत से पहले वह फूट-फूट कर रोए. जिसे पिता कहते थे, उस पर सवाल दागे. दरअसल, पप्पू यादव ने अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी जन अधिकार पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया. इससे पहले उन्हें आश्वासन मिला था कि पूर्णिया से गठबंधन के वही प्रत्याशी बनेंगे. लालू यादव को साधने के लिए वह उनसे मिलने भी गए लेकिन लालू यादव ने खेल कर दिया. लालू प्रसाद यादव ने पूर्णिया सीट अपने पास रख ली. पार्टी ने वहां से रूपौली की जदयू विधायक बीमा भारती को अपना टिकट दे दिया. इसके बाद कांग्रेस ने भी अपने हाथ पीछे खींच लिए और पप्पू यादव अकेले पड़ गए. हालांकि, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और निर्दलीय के तौर पर नामांकन कर दिया. इस अवसर पर वह फूट-फूट कर रोए और बोले कि उनके साथ राजनीति हुई है. पप्पू यादव ने कहा, ‘‘मुझे कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है, मैं एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहा हूं... कई लोगों ने मेरी राजनीतिक हत्या करने की साजिश रची. पूर्णिया की जनता ने हमेशा पप्पू यादव को जाति-धर्म से ऊपर रखा है. मैं इंडिया गठबंधन को मजबूत करूंगा... और मेरा संकल्प राहुल गांधी को मजबूत बनाना है.''
तेजस्वी ने बात और बढ़ाई
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पूर्णिया में राजद की प्रत्याशी बीमा भारती के समर्थन में चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे. इस दौरान उन्होंने कहा कि यह चुनाव दो विचारधारा के बीच की लड़ाई है. उन्होंने कटिहार जिले के कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र में कहा, "आप इंडिया गठबंधन को चुनिए. अगर आप इंडिया गठबंधन की बीमा भारती को नहीं चुनते हैं, तो साफ बात है कि आप एनडीए को चुनो. उन्होंने लोगों को सचेत करते हुए कहा कि किसी के धोखे में नहीं रहना है. यह किसी एक व्यक्ति का चुनाव नहीं है या तो इंडिया या तो एनडीए." इसके बाद एनडीटीवी से बातचीत में पप्पू यादव ने राजद सुप्रीमो लालू यादव पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी वजह से ही उन्हें कांग्रेस का चुनाव चिन्ह नहीं मिला है. उन्होंने आगे कहा कि मुझे तो ये भी नहीं पता कि आखिर तेजस्वी यादव मुझसे इतनी नफरत क्यों करते हैं. मुझे चुनाव में हराने के लिए वह पूर्णिया हेलीकॉप्टर से आए और प्रचार किया. मैं लालू यादव का केवल ब्लेसिंग लेना चाहता हूं. मुझे लगातार 14 दिनों से राजनीतिक तौर पर टॉर्चर किया जा रहा है. हालात ऐसे हैं कि मुझे फ्रेंडली फाइट भी नहीं लड़ने दिया जा रहा. पप्पू यादव ने आगे कहा कि अगर आप पहले के लोकसभा चुनाव को देखेंगे तो हम कांग्रेस के खिलाफ नहीं लड़ना चाहते थे, इसलिए हम मधेपुरा चले गए. बीते 20 साल से राजद का रिकॉर्ड देखेंगे तो इस क्षेत्र से वह कभी चुनाव नहीं जीते हैं. ऐसे में एकाएक मेरे खिलाफ यहां से अपना उम्मीदवार उतार देना कहीं से भी जायज नहीं था. मैं हमेशा लालू यादव के साथ रहा हूं. मैं उनके बड़े बेटे की तरह हूं. मैं उनके बुरे वक्त में हमेशा साथ खड़ा रहा हूं. लालू यादव मुझे मधेपुरा भेजना चाहते थे पर मैंने कहा कि पूर्णिया मेरी मां की तरह है. मैं इसे छोड़कर नहीं जाऊंगा. इतना सब होने के बाद भी पप्पू यादव चुनाव जीत गए.
अब समझिए पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का गणित
पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा हैं. 2020 में इस क्षेत्र के कस्बा विधानसभा में कांग्रेस के एमडी अफाक आलम जीते. वहीं अन्य सभी सीटों पर भाजपा-जदयू ने कब्जा कर लिया. बनमबखी सीट पर भाजपा के कृष्ण कुमार ऋषि, रुपौली से जदयू की बीमा भारती, धमदाहा से जदयू की लेशी सिंह, पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के विजय कुमार खेमका और कोरहा से भाजपा की कविता देवी ने जीत दर्ज की. इनमें कोरहा और बनमनखी एससी रिजर्व सीट हैं. पूर्णिया लोकसभा सीट पर 1977 का चुनाव छोड़ दें तो 1984 तक कांग्रेस जीतती रही. 1977 में जनता पार्टी ने चुनाव जीत और 1989 में जनता दल ने. इसके बाद 1991 में पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव यहां से जीता और 1996 में समाजवादी पार्टी के दम पर. 1998 में भाजपा पहली बार यहां जीती. मगर 1999 में पप्पू यादव फिर निर्दलीय चुनाव जीत गए. इसके बाद 2004 और 2009 में भाजपा जीती. फिर 2014 और 2019 में जदयू जीता. 2024 में फिर पप्पू यादव निर्दलीय जीत गए. पप्पू यादव को 5,67,556 वोट मिले तो जदयू के संतोष कुमार कुशवाह को 5,43,709 वोट मिले. वहीं सांसद का चुनाव लड़ने के लिए जदयू की विधायक बीमा भारती ने राजद का दामन थामकर महज 27,120 वोट पाए. पूर्णिया लोकसभा सीट पर करीब 18 लाख मतदाता हैं.पूर्णिया सीट के मतदाताओं में करीब 60 फीसदी हिंदू और करीब 40 फीसदी मुसलमान हैं. पूर्णिया में ओबीसी और दलित मतदाताओं की संख्या पांच लाख से ऊपर बताई जाती हैं. साफ है कि पप्पू यादव यहां से तभी जीत सकते हैं जब यादव, मुसलमान और कुछ अन्य वोट मिले.
मधेपुरा का गणित समझ जान जाएंगे मजबूरी
मधेपुरा सीट पर लालू यादव खुद भी दो बाद चुनाव जीत चुके हैं. साथ ही शरद यादव के हाथों 1999 में हार का मुंह देखना पड़ा. इस सीट पर राजद का दबदबा था लेकिन शरद यादव ने लालू यादव को हराकर जदयू के लिए भी रास्ते खोल दिए. शरद यादव इस सीट से 4 बार जीते और 4 बार ही हारे. इस सीट से भी पप्पू यादव दो बार जीत का स्वाद चख चुके हैं. मधेपुरा में सबसे बड़ी आबादी यादवों की है. इनकी संख्या करीब साढ़े तीन लाख है. मुस्लिम करीब दो लाख, ब्राह्मण करीब डेढ़ लाख, राजपूत करीब सवा लाख, मुसहर करीब एक लाख और वैश्य या बनिया या पचपनिया जातियां करीब 4 लाख के ऊपर है. बाकी जातियां पचास-साठ हजार हैं. जाहिर है यहां यादवों और मुस्लिमों की सहायता के बगैर जदयू और भाजपा का गठबंधन ही जीत सकता है. तो अब तक आपको समझ आ चुका होगा कि लाख लालू यादव और तेजस्वी यादवों से समर्थन नहीं मिलने के बाद भी पप्पू यादव क्यों उनके खिलाफ नहीं जा पाते. यह पप्पू यादव की मजबूरी है कि उनके कोर वोटर भी मुस्लिम और यादव ही हैं. ऐसे में अपनी सीट पर लड़ने तक के लिए तो वे लालू यादव से भिड़ सकते हैं लेकिन मुद्दों पर लालू यादव के साथ रहना उनकी मजबूरी है. यही कारण है कि उन्होंने अपने खिलाफ हाल ही में लोकसभा चुनाव लड़ने वाली और अब विधानसभा उपचुनाव लड़ रही बीमा भारती से मुलाकात कर अपने वोटरों को संदेश दिया कि वो भाजपा को हराने के लिए खून के घूंट भी पी सकते हैं.
लालू और तेजस्वी को पप्पू से क्या है दिक्कत?
लालू यादव अब उम्र की उस सीमा पर है कि खुद राजनीति नहीं कर पा रहे. उन्होंने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी छोटे बेटे तेजस्वी को बना दिया है. नीतीश कुमार भी उम्र के उसी पड़ाव पर हैं. ऐसे में लालू यादव को लगता है कि अगर उन्होंने किसी नये उभरते नेता को मौका लेने दिया और उसने काम कर दिखा दिया तो बिहार में फिर उसका राज आ जाएगा. वैसे भी बिहार में मुख्यमंत्री पद पर लंबे समय तक लालू और नीतीश का ही राज रहा है. ऐसे में बिहार की जनता भी अभी इन दोनों के विकल्प को लेकर कशमकश में है. इसी कारण लालू यादव कभी पप्पू यादव को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए पूरा जोर लगा देते हैं तो कभी कन्हैया कुमार को. यह लालू यादव ही थे, जिनके कारण इस चुनाव में कांग्रेस को कन्हैया कुमार को दिल्ली से चुनाव लड़ना पड़ा. पिछले लोकसभा चुनाव में वामपंथी दलों ने उन्हें बिहार से लड़े भी तो राजद का सहयोग नहीं मिला. अब आप सोच रहे होंगे कि फिर चिराग पासवान कैसे बच गए? तो जवाब यह है कि रामविलास पासवान ने अपनी सेहत देखते हुए ही एनडीए से नाता जोड़ लिया था. उन्हें पता था कि बिहार में चिराग के उभार से भाजपा को कोई खास दिक्कत नहीं होगी. हालांकि, उनके नहीं रहने पर भी चिराग से खेल तो हो ही गया था. अब न जाने उस खेल में पर्दे के पीछे से कौन-कौन शामिल था?
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