सचिन तेंदुलकर अपने कोच रमाकांत आचरेकर का आशीर्वाद लेते हुए (फाइल फोटो)
क्रिकेट में अपनी उपलब्धियों के कारण सचिन तेंदुलकर भारत ही नहीं, दुनियाभर की बड़ी हस्ती बन चुके हैं. खेल में इतनी ऊंचाई तक पहुंचने में मास्टर ब्लास्टर की मेहनत के साथ कोच रमाकांत आचरेकर के परिश्रम को भी कम करके नहीं आंका जा सकता. खुद सचिन कई बार कह चुके हैं कि अगर 'आचरेकर सर' नहीं होते तो शायद वे इस मुकाम पर नहीं होते. विभिन्न अवसरों पर सचिन ने रमाकांत आचरेकर की कोचिंग के तरीके, उनकी साफगोई और सरल स्वभाव के बारे में विस्तार से बताया है.
सचिन ने जब क्रिकेट खेलना शुरू किया था तभी गेंद को बल्ले के बीचोंबीच खेलने और अपने टाइमिंग के कारण लोगों की नजरों में आने लगे थे. सचिन की इस काबलियत को सबसे पहले उनके बड़े भाई अजित तेंदुलकर ने पहचाना. दरअसल क्रिकेट का अच्छा खासा ज्ञान रखने वाले अजित ही सचिन के 'शुरुआती गुरु' रहे. अजित को जब यह लगा कि सचिन के टेलेंट को तराशने के लिए एक उच्च स्तरीय कोच की जरूरत है तो वे अपने भाई को रमाकांत अाचरेकर के पास लेकर गए थे. यह अलग बात है कि सचिन अपनी पहली मुलाकात में आचरेकर पर कोई खास असर नहीं छोड़ पाए थे.
आचरेकर सर ने जब करीब 11 साल के सचिन को बैटिंग के लिए बुलाया तो उनका यह शिष्य बेहद नर्वस था और गेंद को ठीक से टाइम नहीं कर पा रहा था. जानकारी के अनुसार, आचरेकर ने तब अजित तेंदुलकर से कहा था कि वे कुछ वर्षों के बाद इस बच्चे को कोचिंग के लिए लेकर आएं. इस पर अजित ने सचिन को एक मौका और देने का आग्रह किया. बहरहाल, सचिन ने दूसरी बार हासिल हुआ यह अवसर अपने हाथ से नहीं जाने दिया और अपने बल्लेबाजी कौशल से आचरेकर को प्रभावित कर लिया.
बस फिर क्या था, सचिन जल्द ही आचरेकर के खास शिष्य बन गए. कोच की पारखी नजर ने इस बात को अच्छी तरह से पढ़ लिया था कि सचिन खास टेलेंट है और उनके इस टेलेंट को तराशने में उन्होंने जी-जान लगा दी. बचपन में सचिन शरारती भी थे, ऐसे में आचरेकर ने अपने शिष्य का ध्यान क्रिकेट से भटकने नहीं दिया और जरूरत पड़ने पर उन्हें डांट लगाने से भी नहीं चूके.
सचिन जल्द ही ऐसे बल्लेबाज बन गए कि कोचिंग के दूसरे खिलाड़ियों को उन्हें आउट करना बेहद मुश्किल लगने लगा, ऐसे में आचरेकर सर ने एक नया तरीका ईजाद किया. सचिन को बल्लेबाजी की प्रैक्टिस कराते समय स्टंप पर एक रुपए का सिक्का रख देते थे. ये गेंदबाजों के लिए सचिन को आउट करने का चेलेंज हुआ करता था. सेशन में सचिन को जो भी गेंदबाज आउट करता यह सिक्का उस गेंदबाज का हो जाता था. यह बात अलग है कि सचिन ने कम गेंदबाजों को ही यह सिक्का जीतने का मौका दिया. आउट करने में नाकाम रहने पर यह सिक्का सचिन तेंदुलकर का हो जाता था.
सचिन तेंदुलकर ने बचपन में ऐसे कई सिक्के इकट्ठे कर लिए थे और वे इसे अपने कोच की अमूल्य भेंट मानते थे. इंटरनेशनल क्रिकेट में 100 शतक पूरे करने वाले इकलौते बल्लेबाज सचिन को बाद में कई तोहफे, शोहरत और धनराशि मिली, लेकिन इन सिक्कों को अभी वे अपने लिए बेहद खास मानते हैं. सचिन की बल्लेबाजी में समर्पण भाव भरने में आचरेकर सर की कोचिंग के इस खास स्टाइल का बड़ा हाथ रहा.
सहवाग ने अपने कोच के योगदान को याद किया
सचिन ने जब क्रिकेट खेलना शुरू किया था तभी गेंद को बल्ले के बीचोंबीच खेलने और अपने टाइमिंग के कारण लोगों की नजरों में आने लगे थे. सचिन की इस काबलियत को सबसे पहले उनके बड़े भाई अजित तेंदुलकर ने पहचाना. दरअसल क्रिकेट का अच्छा खासा ज्ञान रखने वाले अजित ही सचिन के 'शुरुआती गुरु' रहे. अजित को जब यह लगा कि सचिन के टेलेंट को तराशने के लिए एक उच्च स्तरीय कोच की जरूरत है तो वे अपने भाई को रमाकांत अाचरेकर के पास लेकर गए थे. यह अलग बात है कि सचिन अपनी पहली मुलाकात में आचरेकर पर कोई खास असर नहीं छोड़ पाए थे.
आचरेकर सर ने जब करीब 11 साल के सचिन को बैटिंग के लिए बुलाया तो उनका यह शिष्य बेहद नर्वस था और गेंद को ठीक से टाइम नहीं कर पा रहा था. जानकारी के अनुसार, आचरेकर ने तब अजित तेंदुलकर से कहा था कि वे कुछ वर्षों के बाद इस बच्चे को कोचिंग के लिए लेकर आएं. इस पर अजित ने सचिन को एक मौका और देने का आग्रह किया. बहरहाल, सचिन ने दूसरी बार हासिल हुआ यह अवसर अपने हाथ से नहीं जाने दिया और अपने बल्लेबाजी कौशल से आचरेकर को प्रभावित कर लिया.
बस फिर क्या था, सचिन जल्द ही आचरेकर के खास शिष्य बन गए. कोच की पारखी नजर ने इस बात को अच्छी तरह से पढ़ लिया था कि सचिन खास टेलेंट है और उनके इस टेलेंट को तराशने में उन्होंने जी-जान लगा दी. बचपन में सचिन शरारती भी थे, ऐसे में आचरेकर ने अपने शिष्य का ध्यान क्रिकेट से भटकने नहीं दिया और जरूरत पड़ने पर उन्हें डांट लगाने से भी नहीं चूके.
सचिन जल्द ही ऐसे बल्लेबाज बन गए कि कोचिंग के दूसरे खिलाड़ियों को उन्हें आउट करना बेहद मुश्किल लगने लगा, ऐसे में आचरेकर सर ने एक नया तरीका ईजाद किया. सचिन को बल्लेबाजी की प्रैक्टिस कराते समय स्टंप पर एक रुपए का सिक्का रख देते थे. ये गेंदबाजों के लिए सचिन को आउट करने का चेलेंज हुआ करता था. सेशन में सचिन को जो भी गेंदबाज आउट करता यह सिक्का उस गेंदबाज का हो जाता था. यह बात अलग है कि सचिन ने कम गेंदबाजों को ही यह सिक्का जीतने का मौका दिया. आउट करने में नाकाम रहने पर यह सिक्का सचिन तेंदुलकर का हो जाता था.
सचिन तेंदुलकर ने बचपन में ऐसे कई सिक्के इकट्ठे कर लिए थे और वे इसे अपने कोच की अमूल्य भेंट मानते थे. इंटरनेशनल क्रिकेट में 100 शतक पूरे करने वाले इकलौते बल्लेबाज सचिन को बाद में कई तोहफे, शोहरत और धनराशि मिली, लेकिन इन सिक्कों को अभी वे अपने लिए बेहद खास मानते हैं. सचिन की बल्लेबाजी में समर्पण भाव भरने में आचरेकर सर की कोचिंग के इस खास स्टाइल का बड़ा हाथ रहा.
सहवाग ने अपने कोच के योगदान को याद किया
शिक्षक दिवस पर टीम इंडिया के जबर्दस्त बल्लेबाज रहे वीरेंद्र सहवाग ने भी कोच एएन शर्मा के साथ सोशल मीडिया पर फोटो शेयर की है. वीरू भी सचिन की ही स्टाइल में बल्लेबाजी करते थे. वीरू यह कई मौके पर कह चुके हैं कि वे सचिन के जबर्दस्त फैन रहे हैं और उनकी ही तरह बल्लेबाजी करना चाहते थे.The best teacher is d one who can nurture people&make d student better dan dey themselves r.
— Virender Sehwag (@virendersehwag) September 5, 2016
Thank You AN Sharma Sir pic.twitter.com/AeQ0Mmuq3t
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