उच्च न्यायालय के तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और एक पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद नीत उच्चस्तरीय समिति के परामर्श के दौरान 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के विचार का विरोध किया था.
समिति ने बृहस्पतिवार को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी. समिति ने पहले कदम के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की तथा इसके बाद 100 दिनों के भीतर एक साथ स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश की है.
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रिपोर्ट के अनुसार समिति ने उच्चतम न्यायालय के चार पूर्व प्रधान न्यायाधीशों - न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे और न्यायमूर्ति यूयू ललित - से परामर्श किया तथा वे सभी एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में थे.
उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों में से नौ ने एक साथ चुनाव के विचार का समर्थन किया और इसके संभावित लाभों को रेखांकित किया जबकि तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने आपत्ति जताई.
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दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह ने एक साथ चुनाव के विचार का विरोध किया और कहा कि इससे लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति पर अंकुश लग सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव राजनीतिक जवाबदेही में बाधक हैं, क्योंकि निश्चित कार्यकाल से जन प्रतिनिधियों को उनके काम की समीक्षा के बिना अनुचित स्थिरता मिलती है. कलकत्ता उच्च के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गिरीश चंद्र गुप्ता ने एक साथ चुनाव विचार का विरोध करते हुए कहा कि यह विचार लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है.
रिपोर्ट के अनुसार मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी ने एक साथ चुनाव विचार का विरोध किया और कहा कि यह देश के संघीय ढांचे को कमजोर करेगा और यह क्षेत्रीय मुद्दों के लिए हानिकारक होगा. तमिलनाडु के पूर्व निर्वाचन आयुक्त वी पलानीकुमार ने भी एक साथ चुनाव के विचार का विरोध किया.
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