
केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि निजी टेलीविजन चैनल की सामग्री के नियमन के लिए कोई वैधानिक शून्यता नहीं है, बल्कि एक मजबूत तंत्र मौजूद है. शीर्ष अदालत के समक्ष दाखिल एक हलफनामे में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने कहा कि भारत ने हमेशा पत्रकारिता की स्वतंत्रता की रक्षा की है और पत्रकारिता के क्षेत्र में आत्म-संयम एवं आत्म-नियमन को बढ़ावा देने की नीति को प्रोत्साहित किया है.
सरकार ने कहा कि इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मीडिया संस्थान और पत्रकार समाज के प्रति अपनी महत्वपूर्ण भूमिका और जिम्मेदारियों को स्वीकार करें और स्वयं-विकसित तरीकों के माध्यम से अपने कामकाज के मानकों को ऊंचा उठाएं. हलफनामे में कहा गया कि यह सुनिश्चित करता है कि मीडिया के कामकाज में सरकारी अधिकारियों द्वारा न्यूनतम हस्तक्षेप हो और केवल राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में ही सरकार का वैधानिक तंत्र काम करता है.
मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा, ‘‘जहां तक गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग के प्रसारण के नियमन और दर्शकों के लिए शिकायत निवारण तंत्र का सवाल है, इसमें कोई वैधानिक शून्यता नहीं है. निजी टेलीविजन चैनल की सामग्री के विनियमन का एक मजबूत तंत्र है जो कि केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत निर्धारित किया गया है.''
हलफनामे में कहा गया, ‘‘इस प्रकार, केंद्र सरकार ने शुरुआत से ही जानबूझकर खुद पर आत्म-संयम लगाया है और मीडिया संस्थानों और पत्रकारों द्वारा स्व-नियमन के तंत्र को बढ़ावा देने के लिए संयम की व्यवस्था अपनाई है.''
यह हलफनामा बंबई उच्च न्यायालय की जनवरी 2021 की टिप्पणियों के खिलाफ न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनबीडीए) की याचिका के जवाब में दायर किया गया.
उच्च न्यायालय ने कहा था कि ‘मीडिया ट्रायल' अदालत की अवमानना है और प्रेस से आग्रह किया था कि वह ‘‘लक्ष्मण रेखा'' को पार न करे, क्योंकि उसे कुछ समाचार चैनल द्वारा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की कवरेज ‘‘अवमाननापूर्ण'' लगी. उच्च न्यायालय ने कहा था कि मौजूदा स्व-नियामक तंत्र वैधानिक तंत्र का स्वरूप नहीं ले सकता है.
मंत्रालय ने हलफनामे में कहा कि सरकार के दृष्टिकोण को हालांकि, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) जैसे स्वैच्छिक संघों द्वारा गलत समझा गया, जिसने जोर दिया कि केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा स्वतंत्र रूप से बनाए जा सकने वाले वैधानिक नियमों के बजाय, सरकार को इसे समाचार प्रसारण के क्षेत्र में एकमात्र प्राधिकरण के रूप में मान्यता देनी चाहिए.
एनबीए को अब न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनबीडीए) के रूप में जाना जाता है. हलफनामे में कहा गया, ‘‘इस प्रकार एनबीडीए ने अपने आंतरिक स्व-नियामक तंत्र के माध्यम से पूरे उद्योग के शिकायत निवारण तंत्र पर एकाधिकार का दावा किया.''
मंत्रालय ने शीर्ष अदालत को बताया कि 31 अगस्त, 2023 तक 394 समाचार चैनल थे जो अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग नीति दिशानिर्देशों के तहत केंद्र सरकार द्वारा पंजीकृत और लाइसेंस प्राप्त हैं.
हलफनामे में कहा गया, ‘‘इसके अलावा मनोरंजन चैनल, खेल चैनल, भक्ति चैनल समेत 511 गैर-समाचार चैनल भी हैं जो अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग नीति दिशानिर्देशों के तहत केंद्र सरकार द्वारा पंजीकृत और लाइसेंस प्राप्त हैं.''
इसमें कहा गया कि जहां तक सामान्य मनोरंजन चैनल का सवाल है, इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ) नामक एक प्रमुख संगठन है जिसके (अप्रैल 2023 तक) 313 सदस्य हैं.
हलफनामे में कहा गया, ‘‘आईबीएफ ने इस श्रेणी के प्रसारकों में प्रसारित होने वाली सामग्री से संबंधित शिकायतों की जांच के लिए एक स्व-नियामक तंत्र के रूप में एक प्रसारण सामग्री शिकायत परिषद (बीसीसीसी) की स्थापना की है. जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल प्रसारण सामग्री शिकायत परिषद की अध्यक्ष हैं.''
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