केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
जमीन और पानी दोनों पर चलने में सक्षम और केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की पसंदीदा ‘एंफिबियस बस’ का परिचालन फिलहाल मुश्किल लग रहा है. गडकरी इसका उपयोग पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए करना चाहते हैं. अभी यह बस भारत के सबसे बड़े बंदरगाह जेएनपीटी पर ना केवल खड़ी हुई है बल्कि प्रायोगिक आधार पर पंजाब और गोवा में इसे चलाने का प्रस्ताव भी यूंही ठंडे बस्ते में पड़ा है क्योंकि एक तो इसे लेकर शुल्क ढांचे इसके ठीक ठाक होने का प्रमाणन स्पष्ट नहीं है. इस परियोजना से जुड़े विभिन्न लोगों का कहना है कि शुल्क संरचना, पंजीकरण मुद्दे पर अस्पष्टता और इसे चलाने के लिए उपयुक्त स्थानों पर रैंप के अभाव से यह योजना कहीं अटक सी गई है.
नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) ने तीन करोड़ रुपये की लागत से एक एंफीबियस बस आयात की है. यह करीब एक साल से यहां ऐसे ही खड़ी हुई है क्योंकि बंदरगाह इसे लेकर नियमों में स्पष्टता चाहता है. अधिकारी ने कहा, ‘‘सीमा शुल्क एक मुद्दा है. कोई भी इसका भारत में विनिर्माण नहीं करता है. सड़क पर यात्रा के लिए इसका सुरक्षा प्रमाणन एक अलग मुद्दा है.’’
हालांकि समुद्री परिवहन प्रमाणन कोई मुद्दा नहीं है. इसके अलावा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मरीन ड्राइव के पास जहां पर इन बसों को पानी में चलाया जा सकता है वहां पर रैंप का निर्माण भी एक अलग मुद्दा है क्योंकि यहां पर स्थायी ढांचे के निर्माण पर नियंत्रण है. साथ ही गाद निकाले जाने की भी जरुरत है क्योंकि पानी में चलने के लिए इसे 1.5 मीटर की गहराई की जरुरत है.
एक सूत्र ने बताया कि जेएनपीटी ने इसे तीन करोड़ रुपये में खरीदा है और सीमाशुल्क विभाग इस पर करीब 225% का शुल्क वसूलना चाहता है क्योंकि वह इसे एक नौका के तौर पर देख रहा है. इस प्रकार इसकी कीमत नौ करोड़ रुपये से ऊपर जाने की संभावना है. जबकि परिवहन मंत्रालय इसके बस होने पर जोर दे रहा है और इस प्रकार इस पर 45% कर लगाया जा सकता है. गडकरी ने अप्रैल में लोकसभा में कहा था कि सरकार ने एक जल बस आयात की है. सीमाशुल्क विभाग इस पर 225% कर मांग रहा है जबकि बस होने के नाते इस पर 45% ही कर होना चाहिए. अब पोत परिवहन मंत्रालय के इस पर शुल्क माफी में मांग के बाद यह मामला वित्त मंत्रालय के पास लंबित पड़ा है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) ने तीन करोड़ रुपये की लागत से एक एंफीबियस बस आयात की है. यह करीब एक साल से यहां ऐसे ही खड़ी हुई है क्योंकि बंदरगाह इसे लेकर नियमों में स्पष्टता चाहता है. अधिकारी ने कहा, ‘‘सीमा शुल्क एक मुद्दा है. कोई भी इसका भारत में विनिर्माण नहीं करता है. सड़क पर यात्रा के लिए इसका सुरक्षा प्रमाणन एक अलग मुद्दा है.’’
हालांकि समुद्री परिवहन प्रमाणन कोई मुद्दा नहीं है. इसके अलावा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मरीन ड्राइव के पास जहां पर इन बसों को पानी में चलाया जा सकता है वहां पर रैंप का निर्माण भी एक अलग मुद्दा है क्योंकि यहां पर स्थायी ढांचे के निर्माण पर नियंत्रण है. साथ ही गाद निकाले जाने की भी जरुरत है क्योंकि पानी में चलने के लिए इसे 1.5 मीटर की गहराई की जरुरत है.
एक सूत्र ने बताया कि जेएनपीटी ने इसे तीन करोड़ रुपये में खरीदा है और सीमाशुल्क विभाग इस पर करीब 225% का शुल्क वसूलना चाहता है क्योंकि वह इसे एक नौका के तौर पर देख रहा है. इस प्रकार इसकी कीमत नौ करोड़ रुपये से ऊपर जाने की संभावना है. जबकि परिवहन मंत्रालय इसके बस होने पर जोर दे रहा है और इस प्रकार इस पर 45% कर लगाया जा सकता है. गडकरी ने अप्रैल में लोकसभा में कहा था कि सरकार ने एक जल बस आयात की है. सीमाशुल्क विभाग इस पर 225% कर मांग रहा है जबकि बस होने के नाते इस पर 45% ही कर होना चाहिए. अब पोत परिवहन मंत्रालय के इस पर शुल्क माफी में मांग के बाद यह मामला वित्त मंत्रालय के पास लंबित पड़ा है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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