NHRC ने अरुणाचल प्रदेश सरकार को कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की छात्राओं को मुआवजा देने को कहा है.
नई दिल्ली:
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने अरुणाचल प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि वह कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की उन 88 छात्राओं को 5,000 रुपये प्रत्येक के हिसाब से मुआवज़ा दे, जिन्हें सज़ा के रूप में तीन शिक्षकों ने स्कूल के सामने कपड़े उतारने के लिए विवश किया गया था. घटना पिछले साल 30 नवंबर को हुई थी, जब इटानगर के न्यू सागाली इलाके के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय के दो असिस्टेंट टीचर और एक जूनियर टीचर ने इन छात्राओं को सबके सामने कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया था. इन छात्राओं को सज़ा इसलिए दी गई थी, क्योंकि उनके पास से एक कागज़ बरामद हुआ था, जिस पर स्कूल के हेड टीचर के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया था.
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जिन छात्राओं को सज़ा दी गई थी, वे सभी पांचवीं और आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं. समाचारपत्र 'टेलीग्राफ' ने पीसीसी प्रवक्ता मीना टोको के हवाले से बताया था कि 'इस मामले में FIR दर्ज कर ली गई है, और इस तरह के जघन्य कुकृत्य से बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से गंभीर प्रभाव पड़ता है... बच्चों की इज़्ज़त से खेलना कानून और संविधान के खिलाफ है... विद्यार्थियों को अनुशासित बनाना प्रत्येक टीचर की ज़िम्मेदारी और प्रतिबद्धता है...' सज़ा के बारे में बातचीत करते हुए मीना टोको ने बताया था कि बच्चों के कपड़े उतरवाना किसी भी लिहाज़ से सही नहीं हो सकता. इस तरह की सज़ा दिया जाना बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है. आपको बता दें कि पिछले साल जब यह मामला प्रकाश में आया था तब चौतरफा इसकी निंदा हुई थी. देशभर में लोगों ने इस मामले में कड़ी कार्रवाई की मांग की थी.
उत्तर प्रदेश : सरकारी स्कूल के बच्चों के उतरवाए गए कपड़े, आरोपी गिरफ्तार
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जिन छात्राओं को सज़ा दी गई थी, वे सभी पांचवीं और आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं. समाचारपत्र 'टेलीग्राफ' ने पीसीसी प्रवक्ता मीना टोको के हवाले से बताया था कि 'इस मामले में FIR दर्ज कर ली गई है, और इस तरह के जघन्य कुकृत्य से बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से गंभीर प्रभाव पड़ता है... बच्चों की इज़्ज़त से खेलना कानून और संविधान के खिलाफ है... विद्यार्थियों को अनुशासित बनाना प्रत्येक टीचर की ज़िम्मेदारी और प्रतिबद्धता है...' सज़ा के बारे में बातचीत करते हुए मीना टोको ने बताया था कि बच्चों के कपड़े उतरवाना किसी भी लिहाज़ से सही नहीं हो सकता. इस तरह की सज़ा दिया जाना बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है. आपको बता दें कि पिछले साल जब यह मामला प्रकाश में आया था तब चौतरफा इसकी निंदा हुई थी. देशभर में लोगों ने इस मामले में कड़ी कार्रवाई की मांग की थी.
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