वरिष्ठ वकील नीला केदार गोखले ने अब बॉम्बे हाईकोर्ट में जज के तौर पर शपथ ली हैं. नीला गोखले को सैनिकों के अधिकार और न्याय की अदालती लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाता हैं. महाराष्ट्र के पुणे में जन्मी व कानून की स्नातक उपाधि लेने वालीं नीला गोखले ने अपने वकालत के करियर में सैन्य अधिकारियों के लिए अनगिनत मुकदमे लड़े और जीते. जिनमें से कई में तो अदालत ने मील के पत्थर माने जाने वाले फैसले दिए. विधि और न्याय शास्त्र में PHD हासिल कर चुकी नीला गोखले के नाम दो ऐसी जनहित याचिकाएं जुड़ी हैं. जिनसे आर्म्ड फोर्सेज को सक्षमता के साथ अपने दायित्व और अधिकार का निर्वाह करने का दायरा बढ़ाने और उन्हें मजबूत करने की ताकत मिली.
सैन्य अधिकारी की पत्नी नीला गोखले ने 2013 में सुदूर सीमाओं पर तैनात सैनिकों के मतदान के अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ी. जिसके बाद व्यवस्था बनी कि सीमाओं पर देश की रक्षा कर रहे सैनिकों को भी मतदान करने का अधिकार मिले. साथ ही, दूसरी पीआईएल पर कोर्ट का आदेश आया जिसके जरिए संसद सदस्यों के विशेषाधिकार और इम्यूनिटी को संहिताबद्ध किया गया. लेफ्टिनेंट कर्नल पीके चौधरी, कर्नल रजनीश भंडारी, लेफ्टिनेंट कर्नल सुनील कुमार और कर्नल टीवाईएस बेदी सहित कई सैन्य अधिकारियों के मुकदमों की पैरवी कर चुकी हैं.
कुछ मामलों में सेना में उच्च पदों पर पदोन्नति के फैसलों में भी उनकी भूमिका रही. इसके अलावा नीला गोखले मालेगांव धमाके के आरोपी कर्नल प्रसाद पुरोहित का केस भी लड़ चुकी हैं. क्रिकेट एसोसिएशन और बीसीसीआई, केंद्रीय गांधी स्मारक निधि और महाराष्ट्र की गांधी स्मारक निधि के बीच की कानूनी लड़ाई में भी जोरदार पक्ष रख चुकी हैं. नीला केदार गोखले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सलाहकार भी रह चुकी हैं. समाज के लगभग हरेक क्षेत्र मसलन पिछड़े वर्ग, महिलाओं और खास कर सैन्य अधिकारियों के अधिकार और न्याय के लिए नीला गोखले ने खास दिलचस्पी दिखाई.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके इन्हीं गुणों और विधि व न्याय शास्त्र के प्रति अलग नज़रिए और दृष्टिकोण की वजह से बॉम्बे हाईकोर्ट का जज बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए उनके नाम की सिफारिश की. सरकार ने भी कॉलेजियम का ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने उनकी नियुक्ति का वारंट जारी कर दिया. सोमवार को शपथ लेकर
जस्टिस नीला केदार गोखले अपनी नई पारी शुरू करने जा रही हैं उसी बॉम्बे हाईकोर्ट से जहां उन्होंने सालों तक कई अहम मुकदमों की पैरवी भी की है.
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