
देश में विभिन्न बीमारियों का उपचार महंगा होने तथा स्वास्थ्य बीमा नहीं होने से लोग इलाज में देरी करते हैं. जिनके पास स्वास्थ्य बीमा है, उनमें से कई उसे समझ पाने में कठिनाई महसूस करते हैं. एक अध्ययन में यह कहा गया है. प्रिस्टीन केयर डाटा लैब्स की बुधवार को जारी एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, करीब 60 प्रतिशत प्रतिभागियों ने स्वास्थ्य बीमा नहीं होने के कारण बीमारी के इलाज में देरी की, वहीं जिनके पास चिकित्सा बीमा था, उसमें से 67 प्रतिशत ने उसे समझने में असमर्थता जताई. स्टार्टअप कंपनी के एक अगस्त से 25 अगस्त, 2022 के बीच किये गये अध्ययन से पता चलता है कि बहुसंख्यक लोग स्वास्थ्य बीमा के तहत आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, होम्यापैथी और प्राकृतिक चिकित्सा जैसे इलाज के दूसरे विकल्प चाहते हैं.
प्रिस्टीन केयर के सह-संस्थापक हरसिमरबीर सिंह ने एक बयान में कहा, ‘‘भारत में स्वास्थ्य बीमा पहुंच की दर सबसे कम है और कोविड-19 के कारण बीमारी के इलाज का खर्च बढ़ा है. इससे लोग सर्जरी में देरी कर रहे हैं. हालांकि, कुछ सर्जरी ऐसी होती है, जिसे व्यक्ति को जरूरत के अनुसार कराने की आवश्यकता होती है. इससे जीवन के लिए खतरा तो नहीं हैं, लेकिन किसी भी तरह की देरी जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है.''सर्वेक्षण पर आधारित अध्ययन के अनुसार, देश में बीमारी के इलाज की बढ़ती लागत को देखते हुए करीब 60 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि वे स्वास्थ्य बीमा नहीं होने से इलाज में देरी कर रहे हैं.
यह अध्ययन रिपोर्ट 1,100 से अधिक लोगों से प्राप्त जानकारी और चार लाख से अधिक रोगियों के आंकड़ों पर आधारित है. सर्वेक्षण में पाया गया कि 24 प्रतिशत रोगियों को दावा करते समय पैसे का काटा जाना काफी चुनौतीपूर्ण लगता है. वहीं 17 प्रतिशत का मानना है कि प्रक्रिया में जो कागजी कार्यवाही है, वह काफी जटिल है. सिंह ने कहा, ‘‘स्वास्थ्य बीमा से जुड़े कई मामले हैं, जिसे दूर करने की जरूरत है. इसमें दावा मंजूरी में लगने वाला समय सबसे बड़ी चुनौती है. साथ ही उनका मानना है कि इसमें इलाज से जुड़े खर्चों को बहुत कम करके आंका जाता है.''
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