- देश के 12 राज्यों में पांच लाख से अधिक बूथ लेवल SIR के तहत वोटर्स के गणना प्रपत्र भर रहे हैं
- कई बीएलओ की आत्महत्या के मामले सामने आए हैं, अधिकांश ने सुसाइड नोट में एसआईआर प्रक्रिया का दबाव बताया है
- SIR के काम के दौरान बीएलओ को वोटर्स तक पहुंचने और गलत या अनुपलब्ध पते जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है
सुबह करीब 6:30 बजे किचन में टिफिन बनाकर और बच्चों को तैयार कर 7:30 बजे स्कूल के लिए रवाना किया फिर परिवार के सदस्यों का नाश्ता और फिर खुद तैयार हुई तो इतने देर में घड़ी ने 9 बजे का इशारा किया.. जल्दी से खुद भी कुछ खाया और ऑटो लेकर गणना प्रपत्र लोगों के घर से लेने के लिए निकल गईं... कुछ इस तरह से अभी बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) करुणा अग्रवाल की सुबह हो रही है. देश के 12 राज्यों में चल रहे एसआईआर के दूसरे चरण में 5.3 लाख बीएलओ इसी तरह से लगे हुए है जो 50.8 करोड़ मतदाताओं का गणना प्रपत्र भर रहे है.
चुनाव आयोग बिहार के बाद देश में दूसरे चरण के तहत 12 राज्यों में स्पेशल इनटेंसिव रिविजन (SIR) करवा रहा है. जिसका पहला चरण 11 दिसंबर को पूरा होगा जो कि पहले 4 दिसंबर को होने वाला था लेकिन आयोग ने एसआईआर की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 7 दिन और बढ़ा दिया. इस बीच जब से इस प्रक्रिया की शुरूआत हुई है तब से कई राज्यों में BLO के आत्महत्या के मामले सामने आ रहे है. 5 मामले उत्तर प्रदेश, 4 गुजरात, 4 पश्चिम बंगाल, 2 मध्य प्रदेश, 1 केरल, 1 राजस्थान से अभी तक सामने आए है. यह वह मामले हैं जिसमें बीएलओ ने आत्महत्या से पहले सुसाइड नोट छोड़ा और कुछ मामलों में उनके परिजनों ने एसआईआर के वजह से आत्महत्या करने की बात कही है.

एनडीटीवी ने उत्तर प्रदेश के नोएडा के एक बीएलओ के साथ पूरा दिन गुजारा और यह समझने की कोशिश की आखिर कैसे एसआईआर का काम किया जा रहा है, किन चुनौतियों से बीएलओ गुजर रहे हैं कि वह आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं साथ ही इस प्रक्रिया को लेकर वोटर्स क्या सोचते है और उन्हें क्या दिक्कतें हो रही है.
कैसे होती हैं BLO के दिन की शुरूआत?
बूथ लेवल ऑफिसर यानी BLO अपने दिन की शुरुआत अमूमन फ़ील्ड पर सुबह 9 बजे जाने से करते है. हर बीएलओ के पास अधिकतम 1200 लोगों के जिम्मेदारी दी गई हैं लेकिन कुछ के पास कम भी है. बीएलओ करूणा के पास 706 वोटर्स की जिम्मेदारी है. वह सुबह नोएडा के सेक्टर 30 पहुंची जहां वह लोगों के घर जाकर उनसे गणना प्रपत्र को लेती है जिन्होंने सारी जानकारी को भर दिया है. उसके बाद वह अपने बूथ पर जाती हैं जहां पर बाकी लोग जिन्होने अभी तक गणना प्रपत्र नहीं भरा हैं वह फॉर्म भरने के लिए आते है तो वहीं कुछ लोग फॉर्म भर कर जमा करते है.

एक बीएलओ से पहले करुणा एक मां भी है. जिससे उनकी जिम्मेदारियां और भी बढ़ जाती है. बच्चों और परिवार का ध्यान रखना और फिर चुनाव आयोग की जिम्मेदारी निभाना. वह साल 2016 से बीएलओ के तौर पर काम कर रही है. जब चुनाव नहीं होता हैं तो वह निठारी गांव के पास बने स्कूल में पढ़ाती है. वह कहती हैं, स्कूल और बीएलओ के काम में फर्क हैं और समय भी ज्यादा लगता है. अभी हमारे पास जिम्मेदारी हैं जिसकी वजह से बहुत से लोग दवाब भी महसूस कर रहे है.
करुणा की तरह ही देश में लाखों बीएलओ की शुरूआत सुबह से होती हैं, पहले वह लोगों के घर जाते हैं कुछ को फॉर्म देते है तो कुछ से फॉर्म को वापस जमा करते है फिर जाकर अपने बूथ पर सभी जमा फॉर्म को ऑनलाइन चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड भी करते है.

किन चुनौतियों का सामना BLO करते हैं?
BLO के पास 1200 लोगों की जिम्मेदारी होती है जो उन्हें एक महीने के दिए समय के अंदर पूरा करना है. सबसे बड़ी चुनौती जो बीएलओ सामना करते हैं वह हैं लोगों के घर जाना और उनतक गणना प्रपत्र पहुंचाना. करुणा बताती हैं कि, अधिकतर बीएलओ के लिए सबसे बड़ी चुनौती वोटर्स को ढूढ़ना है. गणना प्रपत्र में दिए पते पर जाते हैं तो पता चलता हैं कि वह वोटर तो वहां हैं ही नहीं या कई बार तो गलत पता प्रपत्र में दिया होता हैं जिससे हमें वोटर्स तक पहुंचने में दिकक्त होती है.
निठारी गांव के सरकारी स्कूल की प्रिसिंपल विभा देवी अगले साल रिटायर होने वाली है. उन्हें भी इस साल बीएलओ बना दिया गया है. वह परेशान हैं कि स्कूल का काम करें या बतौर बीएलओ. वह कहती हैं, "अभी सुबह जब स्कूल आकर पहले स्कूल की जिम्मेदारी संभालते हैं फिर दोपहर के बाद गणना प्रपत्र लेकर लोगों के घर जाते है. इतना काम का दवाब हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है. बोला गया हैं कि काम पूरा करना है लेकिन अभी तक मेरा 60 प्रतिशत ही काम हुआ है 8 दिन बचा हैं उम्मीद हैं कि पूरा हो जाएगा. घर में भी कोई नहीं है जो मेरी मदद कर सके, स्कूल में सभी शिक्षक खुद ही बीएलओ बने हैं तो किसी और से मदद भी नहीं मिल पा रही है."

विभा देवी कहते हैं, "इस तरह से काम का दवाब बहुत ज्यादा है. गांव के लोगों और राजनीतिक पार्टियों के बीएलए को बुलाकर जो लोग घर पर नहीं मिले हैं उनसे मदद लेकर काम को पूरा कर रहे है."
शिक्षक बने BLO, बच्चों की नहीं हो रही पढ़ाई
स्पेशल इंटेसिंव रिविजन (एसआईआर) में शिक्षक, आगनवाड़ी, शिक्षामित्र, लेखपाल, जेई, राजस्व विभाव के अधिकारी समेत कई विभागों के लोग लगाए गए है. इस पूरे काम से सबसे ज्यादा नुकसान स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की हो रही है. निठारी गांव के सरकारी स्कूल के 16 शिक्षकों को बीएलओ बनाया गया है. सभी टीचर्स चुनाव आयोग के काम में व्यस्त है. नाम के लिए बच्चे स्कूल आते है लेकिन पढ़ाई नहीं हो रही है. बच्चे सिर्फ स्कूल में खेलते हैं और मिड डे मिल का खाना खाकर घर चले जाते है.
कई बीएलओ का बूथ स्कूल ही हैं तो ऐसे में वह स्कूल तो आते है लेकिन वहां बैठकर वह गणना प्रपत्र को भरने और ऑनलाइन जमा करने का काम करते है और बच्चे स्कूल में खेलते है. 6वीं कक्षा की एक छात्रा कहती हैं, पिछले कई दिनों स्कूल में पढ़ाई नहीं हो रही है. कभी-कभी एक दो क्लास हो जाता हैं लेकिन और दिनभर खाली जाता है. किसी दिन कम्प्यूटर की क्लास की पढ़ाई होती है और कई बार टीचर्स टेस्ट लेती है और बाकी समय खाली रहता है. इन दिनों स्कूल का टाइम सुबह 9 बजे से शाम के 3 बजे तक है छोटे बच्चों के लिए.

बीएलओ करूणा जो इसी स्कूल की शिक्षक भी है. वह कहती हैं, सरकार को चाहिए था कि इस समय जब सभी टीचर चुनाव आयोग का काम कर रहे हैं ऐसे में बाद में मिलने वाली सर्दियों की छुट्टियां अभी दे देना चाहिए ताकि बच्चों की शिक्षा पर असर ना पड़े और टीचर्स भी बीएलओ की ड्यूटी पूरी करने के बाद स्कूल आकर पढ़ा सके. वह आगे कहती हैं, भले ही टीचर्स बच्चों को पढ़ा नहीं रही हैं लेकिन स्कूल में टीचर्स जब होती हैं तो बच्चों की चिंता बनी रहती हैं कि कई वह चोटिल ना हो जाए ऐसे में अगर स्कूल की छुट्टियां हो जाए तो कम से कम टीचर्स का मानसिक दवाब भी कम हो जाएगा.
टाइम बढ़ा देते तो शायद नहीं होती आत्महत्याएं!
एसआईआर की प्रक्रिया की शुरूआत 4 नवंबर से हुई है जिसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों से बीएलओ के आत्महत्या करने के मामले सामने आए है. हमने कई बीएलओ से मिलकर यह जानने की कोशिश की आखिर ऐसा क्या मुश्किल आ रही हैं कि लोग आत्महत्या कर रहे है. करूणा कहती हैं, चुनाव आयोग ने जो समय सीमा एक सप्ताह बढ़ाया है अगर वह पहले बढ़ा दिया जाता तो जितने भी बीएलओ के फॉर्म पूरे नहीं हुए थे वह आराम से पूरा कर लेते. अधिकतर बीएलओ ने अपना 60 प्रतिशत काम नवंबर के आखिरी सप्ताह तक कर लिया था ऐसे में समय सीमा अगर समय पर बढ़ा दी गई होती तो जिन बीएलओ ने काम के दवाब में आकर आत्महत्या की वह नहीं करते. प्रशासन ने बीएलओ की मदद के लिए जो प्राधिकरण या अन्य लोग लगाए हैं वह पहले से भी लगाया जा सकता था.

क्या अधिकारियों के दबाव से परेशान हैं बीएलओ?
बीएलओ के आत्महत्या करने का दूसरा कारण, ऊपर के अधिकारियों का दवाब भी है. नोएडा में सेक्टर 92 में बने कंट्रोल रूम में दादरी क्षेत्र के बीएलओं के लिए एक कमांड सेंटर बनाया गया है. बिल्डिंग में लिफ्ट से नीचे जा रही दो महिलाओं के चेहरे पर चिंता और निराशा थी. उसमें से एक महिला किसी से तेज आवाज में बात कर रही थी, इतने देर में जब हम पूछते क्या आप बीएलओ हैं, तबतक उसमें से एक महिला कहती हैं, "देखकर तो आप समझ ही गए होगें की हम बीएलओ हैं" यह लाइन बता रही थी कि बीएलओ क्यों परेशान है. वह कहती हैं हम अपने बूथ पर काम कर रहे थे, तकरीबन 12 बजे हमारे सुपरवाइजर का फोन आता हैं कि कंट्रोल रुम जल्दी आ जाओं बड़े अधिकारी मिलेगें...अगर नहीं आओंगे तो नोटिस जारी होगा...जब हम यहां पहुंचे तो दो घंटे बैठे रहे और कुछ काम नहीं हुआ...अब 3 बज गए है..वापस बूथ जाएंगे तो क्या काम करेगें.. पूरा दिन इस तरह से खराब हो गया.

तीसरा - ट्रेंनिंग की कमी. बीएलओ को एसआईआर की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ट्रेंनिंग दी गई थी फील़्ड में जब काम शुरू हुआ तो उन्हें दिक्कत आने लगी. ट्रेनिंग में जो बातें जो बताई गई उससे ग्राउंड पर स्थितियां अलग थी जिससे कई बीएलओ को दिक्कत आ रही थी जैसे की क्या जानकारी वोटर्स से लेनी है. इस बात की तस्दीक खुद एक वोटर ने भी की. गणना प्रपत्र को लेकर जानकारी लेने आई 50 साल की प्रिया कहतीं है, हर बीएलओ गणना प्रपत्र भरने को लेकर अलग-अलग बात करता है. कुछ कहते हैं, सिर्फ जन्म तारीख, माता-पिता का नाम भर दो.. तो कुछ कहते हैं 2003 वाली जानकारी भी भर दो. अब 2003 की जानकारी हमारे पास नहीं है.. ऐसे में जल्दी फॉर्म भरने के चक्कर में सब अलग-अलग जानकारी देते है.
एक और कारण हैं वह हैं जागरुकता की कमी, वोटर्स और बीएलओ दोनों में. ग्राउंड पर कई वोटर्स ने गणना प्रपत्र में भरने वाली जानकारी को लेकर जागरूकता की कमी बताई. साथी ही बीएलओ ने भी कहा कि वोटर्स को पुरानी जानकारी निकालने और भरने में दिक्कत हो रही है. कई बार बताने के बाद जाकर वह गणना प्रपत्र भर पा रहे है जिससे उनका काम भी धीरे हो रहा है.

दिक्कतें हैं लेकिन देश सेवा का काम कर रहे
एसआईआर की प्रक्रिया में इतनी दिक्कतें होने के बावजूद भी बीएलओ अपना काम कर रहे है. तीन दिसंबर तक के चुनाव आयोग के आंकड़ो के मुताबिक, 50.9 करोड़ गणना प्रपत्र बांट दिया गया हैं जिसमें से 93 प्रतिशत यानी की 47.5 करोड़ फॉर्म आयोग की वेबसाइट पर जमा होकर आनलाइन भी हो गए है. सुपरवाइजर का काम कर रहें लेखपाल मनोज दूबे कहते हैं, हमारे अंदर कुल 9 बीएलओ काम कर रहे है. जो भी दिक्कतें होती है उसे हम तुंरत दूर करने का प्रयास करते है. पिछले एक महीने से बीएलओ से लेकर जिला चुनाव अधिकारी सभी का काम बढ़ चुका है लेकिन यह देश सेवा का काम हैं इसलिए तमाम दिक्कतों के बावजूद इसे पूरा कर रहे हैं और उम्मीद हैं कि तय समय सीमा के अंदर हम इसे पूरा कर लेगें.
एसआईआर की प्रक्रिया से दिक्कतें वोटर्स को भी नहीं है लेकिन जल्दबाजी और जागरुकता की कमी से सभी को दिक्कतें आ रही है. बीएलओ जो आत्महत्या कर रहे हैं वह अलग-अलग मानसिक दवाब के कारण ऐसा कदम उठा रहे है लेकिन जमीन पर एसआईआर के काम को पूरा करने के लिए बीएलओ पूरी मेहनत कर रहे है. चुनाव आयोग ने कहा कि बिहार के बाद दूसरे चरण के एसआईआर की प्रक्रिया में बदलाव किया गया है ताकि लोगों को सहूलियत हो लेकिन लगता हैं कि अभी इस मामले में आयोग को और सोचना होगा ताकि सहूलियत बीएलओ और वोटर्स तक पहुंचे..जिनके वोट की ताकत ही इस देश की सरकार को चुनती है.
ये भी पढ़ें-: ममता के लिए नई चुनौती? हुमायूं कबीर खड़े कर रहे हैं मुश्किलें, क्या मुस्लिम वोट बैंक में दरार पड़ने वाली है?
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं